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    वेताल पच्चीसी :- पहला व्रतांत ( पापी कौन ? )




                              

    काशी में प्रतापमुकुट नाम का राजा राज्य करता था। उनका वज्रमुकुट नाम का एक लड़का था।

    एक दिन राजकुमार दीवान के लड़के को साथ लेकर शिकार खेलने जंगल में गया। घूमते-घूमते उन्हें तालाब मिला। उसके पानी में कमल खिले थे और हंस किलोल कर रहे थे। किनारों पर घने पेड़ थे, जिन पर पक्षी चहचहा रहे थे।

    दोनों मित्र वहां रुक गए और तालाब के पानी में हाथ-मुंह धोकर ऊपर महादेव के मंदिर पर गए। घोड़ों को उन्होंने मंदिर के बाहर बांध दिया। मंदिर में दर्शन करके बाहर आए तो देखते क्या हैं कि तालाब के किनारे राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ स्नान करने आई है।

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    दीवान का लड़का तो वहीं एक पेड़ के नीचे बैठा रहा, पर राजकुमार से न रहा गया। वह आगे बढ़ गया। राजकुमारी ने उसकी ओर देखा तो वह उस पर मोहित हो गया। राजकुमारी भी उसकी तरफ देखती रही।

    फिर उसने किया क्या कि जूड़े में से कमल का फूल निकाला, कान से लगाया, दांत से कुतरा, पैर के नीचे दबाया और फिर छाती से लगा, अपनी सखियों के साथ चली गई।

    उसके जाने पर राजकुमार निराश हो अपने मित्र के पास आया और सब हाल सुनाकर बोला, ‘मैं इस राजकुमारी के बिना नहीं रह सकता। पर मुझे न तो उसका नाम मालूम है, न ठिकाना। वह कैसे मिलेगी?’

    दीवान के लड़के ने कहा, ‘राजकुमार, आप इतना घबराएं नहीं। वह सब कुछ बता गई है।’

    राजकुमार ने पूछा, ‘कैसे?’

    वह बोला, ‘उसने कमल का फूल सिर से उतारकर कानों से लगाया तो उसने बताया कि मैं कर्नाटक की रहने वाली हूं। दांत से कुतरा तो उसका मतलब था कि मैं दंतबाट राजा की बेटी हूं। पांव से दबाने का अर्थ था कि मेरा नाम पद्मावती है और छाती से लगाकर उसने बताया कि तुम मेरे दिल में बस गए हो।’

    इतना सुनना था कि राजकुमार खुशी से फूल उठा। बोला, ‘अब मुझे कर्नाटक देश में ले चलो।’

    दोनों मित्र वहां से चल दिए। घूमते-फिरते, सैर करते, दोनों कई दिन बाद उसी शहर में पहुंचे। राजा के महलों के पास गए तो एक बुढ़िया अपने द्वार पर बैठी चरखा कातती मिली।

    उसके पास जाकर दोनों घोड़ों से उतर पड़े और बोले, ‘माई, हम सौदागर हैं। हमारा सामान पीछे आ रहा है। हमें रहने को थोड़ी जगह दे दो।’

    उनकी शक्ल-सूरत देखकर और बात सुन कर बुढ़िया के मन में ममता उमड़ आई। बोली, ‘बेटा, तुम्हारा घर है। जब तक जी में आए, रहो।’

    दोनों वहीं ठहर गए। दीवान के बेटे ने उससे पूछा, ‘माई, तुम क्या करती हो? तुम्हारे घर में कौन-कौन है? तुम्हारी गुजर कैसे होती है?’

    बुढ़िया ने जवाब दिया, ‘बेटा, मेरा लड़का राजा की चाकरी में है। मैं राजा की बेटी पद्मावती की धाय थी। बूढ़ी हो जाने से अब घर में रहती हूं। राजा खाने-पीने को दे देता है। दिन में एक बार राजकुमारी को देखने महल में जाती हूं।’

    राजकुमार ने बुढ़िया को कुछ धन दिया और कहा, ‘माई, कल तुम वहां जाओ तो राजकुमारी से कह देना कि जेठ सुदी पंचमी को तुम्हें तालाब पर जो राजकुमार मिला था, वह आ गया है।’

    अगले दिन जब बुढ़िया राजमहल गई तो उसने राजकुमार का संदेशा उसे दे दिया। सुनते ही राजकुमारी ने गुस्सा होकर हाथों में चंदन लगाकर उसके गाल पर तमाचा मारा और कहा, ‘मेरे घर से निकल जा।’

    बुढ़िया ने घर आकर सब हाल राजकुमार को कह सुनाया। राजकुमार हक्का-बक्का रह गया। तब उसके मित्र ने कहा, ‘राजकुमार, आप घबराएं नहीं, उसकी बातों को समझें। उसने दसों उंगलियां सफेद चंदन में मारीं, इससे उसका मतलब यह है कि अभी दस रोज चांदनी के हैं। उनके बीतने पर मैं अंधेरी रात में मिलूंगी।’

    दस दिन के बाद बुढ़िया ने फिर राजकुमारी को खबर दी, तो इस बार उसने केसर के रंग में तीन उंगलियां डुबो कर उसके मुंह पर मारीं और कहा, ‘भाग यहां से।’

    बुढ़िया ने आकर सारी बात सुना दी। राजकुमार शोक से व्याकुल हो गया। दीवान के लड़के ने समझाया, ‘इसमें हैरान होने की क्या बात है? उसने कहा है कि मुझे मासिक धर्म हो रहा है। तीन दिन और ठहरो।’

    तीन दिन बीतने पर बुढ़िया फिर वहां पहुंची। इस बार राजकुमारी ने उसे फटकार कर पश्चिम की खिड़की से बाहर निकाल दिया। उसने आकर राजकुमार को बता दिया। सुनकर दीवान का लड़का बोला, ‘मित्र, उसने आज रात को तुम्हें उस खिड़की की राह बुलाया है।’

    कहानी मारे खुशी के राजकुमार उछल पड़ा। समय आने पर उसने बुढ़िया की पोशाक पहनी, इत्र लगाया, हथियार बांधे। दो पहर रात बीतने पर वह महल में जा पहुंचा और खिड़की में से होकर अंदर पहुंच गया। राजकुमारी वहां तैयार खड़ी थी। वह उसे भीतर ले गई।

    अंदर के हाल देखकर राजकुमार की आंखें खुल गईं। एक-से-एक बढ़कर चीजें थीं। रात-भर राजकुमार राजकुमारी के साथ रहा। जैसे ही दिन निकलने को आया कि उसने उसे छिपा दिया। रात को फिर बाहर निकाल लिया। इस तरह कई दिन बीत गए। अचानक एक दिन राजकुमार को अपने मित्र की याद आई। उसे चिंता हुई कि पता नहीं, उसका क्या हुआ होगा।

    उदास देखकर राजकुमारी ने कारण पूछा तो उसने बता दिया। बोला, ‘वह मेरा बड़ा प्यारा दोस्त हैं, बड़ा चतुर है। उसकी होशियारी ही से तो तुम मिली हो।’

    राजकुमारी ने कहा, ‘मैं उसके लिए बढ़िया-बढ़िया भोजन बनवाती हूं। तुम उसे खिलाकर, तसल्ली देकर लौट आना।’

    खाना साथ में लेकर राजकुमार अपने मित्र के पास पहुंचा। वे महीने भर से मिले नहीं थे, राजकुमार ने मिलने पर सारा हाल सुना कर कहा कि राजकुमारी को मैंने तुम्हारी चतुराई की सारी बातें बता दी हैं, तभी तो उसने यह भोजन बनाकर भेजा है।

    दीवान का लड़का सोच में पड़ गया। उसने कहा, ‘यह तुमने अच्छा नहीं किया। राजकुमारी समझ गई कि जब तक मैं हूं, वह तुम्हें अपने बस में नहीं रख सकती। इसलिए उसने इस खाने में जहर मिलाकर भेजा है।’

    यह कहकर दीवान के लड़के ने थाली में से एक लड्डू उठाकर कुत्ते के आगे डाल दिया। खाते ही कुत्ता मर गया।

    राजकुमार को बड़ा बुरा लगा। उसने कहा, ‘ऐसी स्त्री से भगवान् बचाए! मैं अब उसके पास नहीं जाऊंगा।’

    दीवान का बेटा बोला, ‘नहीं, अब ऐसा उपाय करना चाहिए, जिससे हम उसे घर ले चलें। आज रात को तुम वहां जाओ। जब राजकुमारी सो जाए तो उसकी बाईं जांघ पर त्रिशूल का निशान बनाकर उसके गहने लेकर चले आना।’राजकुमार ने ऐसा ही किया। उसके आने पर दीवान का बेटा उसे साथ ले, योगी का भेस बना, मरघट में जा बैठा और राजकुमार से कहा कि तुम यह गहने लेकर बाजार में बेच आओ। कोई पकड़े तो कह देना कि मेरे गुरु के पास चलो और उसे यहां ले आना।

    राजकुमार गहने लेकर शहर गया और महल के पास एक सुनार को उन्हें दिखाया। देखते ही सुनार ने उन्हें पहचान लिया और कोतवाल के पास ले गया। कोतवाल ने पूछा तो उसने कह दिया कि यह मेरे गुरु ने मुझे दिए हैं। गुरु को भी पकड़वा लिया गया। सब राजा के सामने पहुंचे।

    राजा ने पूछा, ‘योगी महाराज, यह गहने आपको कहां से मिले?’

    योगी बने दीवान के बेटे ने कहा, ‘महाराज, मैं मसान में काली चौदस को डाकिनी-मंत्र सिद्ध कर रहा था कि डाकिनी आई। मैंने उसके गहने उतार लिए और उसकी बाईं जांघ में त्रिशूल का निशान बना दिया।’

    इतना सुनकर राजा महल में गया और उसने रानी से कहा कि पद्मावती की बाईं जांघ पर देखो कि त्रिशूल का निशान तो नहीं है। रानी देखा, तो था। राजा को बड़ा दुख हुआ। बाहर आकर वह योगी को एक ओर ले जाकर बोला, ‘महाराज, धर्मशास्त्र में खोटी स्त्रियों के लिए क्या दंड है?’

    योगी ने जवाब दिया, ‘राजन्, ब्राह्मण, गऊ, स्त्री, लड़का और अपने आसरे में रहने वाले से कोई खोटा काम हो जाए तो उसे देश-निकाला दे देना चाहिए।’ यह सुनकर राजा ने पद्मावती को डोली में बिठाकर जंगल में छुड़वा दिया। राजकुमार और दीवान का बेटा तो ताक में बैठे ही थे। राजकुमारी को अकेली पाकर साथ ले अपने नगर में लौट आए और आनंद से रहने लगे।

    इतनी बात सुनाकर बेताल बोला, ‘राजन्, यह बताओ कि पाप किसको लगा है?’

    राजा ने कहा, ‘पाप तो राजा को लगा। दीवान के बेटे ने अपने स्वामी का काम किया। कोतवाल ने राजा को कहना माना और राजकुमार ने अपना मनोरथ सिद्ध किया। राजा ने पाप किया, जो बिना विचारे उसे देश-निकाला दे दिया।’

    राजा का इतना कहना था कि वेताल फिर उसी पेड़ पर जा लटका। राजा वापस गया और वेताल को लेकर चल दिया। वेताल बोला, ‘राजन्, सुनो, एक कहानी और सुनाता हूं।’

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