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    वेताल पच्चीसी :- छटा व्रतांत ( स्त्री किसकी ? )




    धर्मपुर नाम की एक नगरी थी। उसमें धर्मशील नाम का राजा राज्य करता था। उसके यहां अंधक नाम का दीवान था। एक दिन दीवान ने कहा, ‘महाराज, एक मंदिर बनवा कर देवी को बिठा कर पूजा किया जाए। बड़ा पुण्य मिलेगा।’राजा ने ऐसा ही किया। एक दिन देवी ने प्रसन्न होकर उससे वर मांगने को कहा। राजा के घर कोई संतान नहीं थी। उसने देवी से पुत्र मांगा। देवी बोली, ‘अच्छी बात है, तेरा बड़ा प्रतापी पुत्र प्राप्त होगा।’

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    कुछ दिन बाद राजा के एक लड़का हुआ। सारे नगर में बड़ी खुशी मनाई गई।

    एक दिन एक धोबी अपने मित्र के साथ उस नगर में आया। उसकी निगाह देवी के मंदिर में पड़ी। उसने देवी को प्रणाम करने का इरादा किया। उसी समय उसे एक धोबी की लड़की दिखाई दी, जो बड़ी सुंदर थी। उसे देखकर वह इतना पागल हो गया कि उसने मंदिर में जाकर देवी से प्रार्थना की, ‘हे देवी! यह लड़की मुझे मिल जाए। अगर मिल गई तो मैं अपना सिर तुझ पर चढ़ा दूंगा।’

    इसके बाद वह हर घड़ी बेचैन रहने लगा। उसके मित्र ने उसके पिता से सारा हाल कहा। अपने बेटे की यह हालत देखकर वह लड़की के पिता के पास गया और उसके अनुरोध करने पर दोनों का विवाह हो गया।

    विवाह के कुछ दिन बाद लड़की के पिता यहां उत्सव हुआ। इसमें शामिल होने के लिए न्यौता आया। मित्र को साथ लेकर दोनों चले। रास्ते में वही देवी का मंदिर पड़ा, तो लड़के को अपना वादा याद आ गया। उसने मित्र और स्त्री को थोड़ी देर रूकने को कहा और स्वयं जाकर देवी को प्रणाम कर इतने जोर-से तलवार मारी कि उसका सिर धड़ से अलग हो गया। देर हो जाने पर जब उसका मित्र मंदिर के अंदर गया तो देखता क्या है कि उसके मित्र का सिर धड़ से अलग पड़ा है। उसने सोचा कि यह दुनिया बड़ी बुरी है। कोई यह तो समझेगा नहीं कि इसने अपने-आप शीश चढ़ाया है। सब यही कहेंगे कि इसकी सुंदर स्त्री को हड़पने के लिए मैंने इसकी गर्दन काट दी। इससे कहीं मर जाना अच्छा है।

    यह सोच उसने तलवार लेकर अपनी गर्दन उड़ा दी।

    उधर बाहर खड़ी-खड़ी स्त्री हैरान हो गई, तो वह मंदिर के भीतर गई। देखकर चकित रह गई। सोचने लगी कि दुनिया कहेगी, यह बुरी औरत होगी, इसलिए दोनों को मार आई, इस बदनामी से मर जाना अच्छा है। यह सोच उसने तलवार उठाई और जैसे ही गर्दन पर मारनी चाही कि देवी ने प्रकट होकर उसका हाथ पकड़ लिया और कहा, ‘मैं तुझ पर प्रसन्न हूं। जो चाहो, सो मांगो।’

    स्त्री बोली, ‘हे देवी! इन दोनों को जिंदा कर दो।’

    देवी ने कहा, ‘अच्छा, तुम दोनों के सिर मिला कर रख दो।’

    घबराहट में स्त्री ने सिर जोड़े तो गलती से एक का सिर दूसरे के धड़ पर लग गया। देवी ने दोनों को जिंदा कर दिया। अब वे दोनों आपस में झगड़ने लगे। एक कहता था कि यह स्त्री मेरी है, दूसरा कहता मेरी।

    वेताल बोला, ‘हे राजन्! बताओ कि यह स्त्री किसकी हो?’

    राजा ने कहा, ‘नदियों में गंगा उत्तम है, पर्वतों में सुमेरू, वृक्षों में कल्पवृक्ष और अंगों में सिर। इसलिए शरीर पर पति का सिर लगा हो, वही पति होना चाहिए।’

    इतना सुनकर वेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा उसे फिर लाया तो उसने सातवीं कहानी कही।

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