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    वेताल पच्चीसी :- चौथा व्रतांत ( ज्यादा पापी कौन ? )



    भोगवती नाम की एक नगरी थी। उसमें राजा रूपसेन राज्य करता था। उसके पास चिंतामणि नाम का एक तोता था। एक दिन राजा ने उससे पूछा, ‘हमारा ब्याह किसके साथ होगा?’

    तोते ने कहा, ‘मगध देश के राजा की बेटी चंद्रावती के साथ होगा।’ राजा ने ज्योतिषी को बुलाकर पूछा तो उसने भी यही कहा।

    उधर मगध देश की राज-कन्या के पास एक मैना थी। उसका नाम था मदन मञ्जरी। एक दिन राज-कन्या ने उससे पूछा कि मेरा विवाह किसके साथ होगा तो उसने कह दिया कि भोगवती नगर के राजा रूपसेन के साथ।

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    इसके बाद दोनों को विवाह हो गया।

    रानी के साथ उसकी मैना भी आ गई। राजा-रानी ने तोता-मैना का ब्याह करके उन्हें एक पिंजरे में रख दिया।

    एक दिन की बात कि तोता-मैना में बहस हो गई। मैना ने कहा, ‘आदमी बड़ा पापी, दगाबाज और अधर्मी होता है।’

    तोते ने कहा, ‘स्त्री झूठी, लालची और हत्यारी होती है।’

    दोनों का झगड़ा बढ़ गया तो राजा ने कहा, ‘क्या बात है, तुम आपस में लड़ते क्यों हो?’

    मैना ने कहा, ‘महाराज, मर्द बड़े बुरे होते हैं।’

    इसके बाद मैना ने एक कहानी सुनाई।इलापुर नगर में महाधन नाम का एक सेठ रहता था। बहुत दिनों के बाद उसके एक लड़का पैदा हुआ। सेठ ने उसका बड़ी अच्छी तरह से लालन-पालन किया, पर लड़का बड़ा होकर जुआ खेलने लगा। इस बीच सेठ मर गया। लड़के ने अपना सारा धन जुए में खो दिया।

    जब पास में कुछ न बचा तो वह नगर छोड़कर चंद्रपुरी नामक नगरी में जा पहुंचा। वहां हेमगुप्त नाम का साहूकार रहता था। उसके पास जाकर उसने अपने पिता का परिचय दिया और कहा कि मैं जहाज लेकर सौदागरी करने गया था। माल बेचा, धन कमाया; लेकिन लौटते में समुद्र में ऐसा तूफान आया कि जहाज डूब गया और मैं जैसे-तैसे बचकर यहां आ गया।

    उस सेठ के एक लड़की थी रत्नावती। सेठ को बड़ी खुशी हुई कि घर बैठे इतना अच्छा लड़का मिल गया। उसने उस लड़के को अपने घर में रख लिया और कुछ दिन बाद अपनी लड़की से उसका ब्याह कर दिया। दोनों वहां रहने लगे। अंत में एक दिन वहां से बिदा हुए। सेठ ने बहुत-सा धन दिया। रास्ते में एक जंगल पड़ता था। वहां आकर लड़के ने स्त्री से कहा, ‘यहां बहुत डर है, तुम अपने गहने उतार कर मेरी कमर में बांध दो, लड़की ने ऐसा ही किया। इसके बाद लड़के ने कहारों को धन देकर डोले को वापस करा दिया और दासी को मारकर कुएं में डाल दिया। फिर स्त्री को भी कुएं में पटक कर आगे बढ़ गया।

    स्त्री रोने लगी। एक मुसाफिर उधर जा रहा था। जंगल में रोने की आवाज सुनकर वह वहां आया उसे कुएं से निकाल कर उसके घर पहुंचा दिया। स्त्री ने घर जाकर मां-बाप से कह दिया कि रास्ते में चोरों ने हमारे गहने छीन लिए और दासी को मारकर, मुझे कुएं में ढंकेल कर, भाग गए।

    बाप ने उसे ढांढस बंधाया और कहा कि तू चिंता मत कर। तेरा स्वामी जीवित होगा और किसी दिन आ जाएगा।

    उधर वह लड़का जेवर लेकर शहर पहुंचा। उसे तो जुए की लत गली थी। वह सारे गहने जुए में हार गया। उसकी बुरी हालत हुई तो वह यह बहाना बनाकर कि उसके लड़का हुआ है, फिर अपनी ससुराल चला।

    वहां पहुंचते ही सबसे पहले उसकी स्त्री मिली। वह बड़ी खुश हुई। उसने पति से कहा, ‘आप कोई चिंता न करें, मैंने यहां आकर दूसरी ही बात कही है।’ जो कहा था, वह उसने बता दिया।

    सेठ अपने जमाई से मिलकर बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे बड़ी अच्छी तरह से घर में रखा।

    कुछ दिन बाद एक रोज जब वह लड़की गहने पहने सो रही थी, उसने चुपचाप छुरी से उसे मार डाला और उसके गहने लेकर चम्पत हो गया।

    मैना बोली, ‘महाराज, यह सब मैंने अपनी आंखों से देखा। ऐसा पापी होता है आदमी!’

    राजा ने तोते से कहा, ‘अब तुम बताओ कि स्त्री क्यों बुरी होती है?’

    इस पर तोते ने यह कहानी सुनाई।कंचनपुर में सागरदत्त नाम का एक सेठ रहता था। उसके श्रीदत्त नाम का एक लड़का था। वहां से कुछ दूर पर एक और नगर था श्रीविजयपुर। उसमें सोमदत्त नाम का सेठ रहता था। उसके एक लड़की थी वह श्रीदत्त को ब्याही थी। ब्याह के बाद श्रीदत्त व्यापार करने परदेस चला गया।

    बाहर बरस हो गए और वह न आया तो जयश्री व्याकुल होने लगी। एक दिन वह अपनी अटारी पर खड़ी थी कि एक आदमी उसे दिखाई दिया। उसे देखते ही वह उस पर मोहित हो गई। उसने उसे अपनी सखी के घर बुलवा लिया। रात होते ही वह उस सखी के घर चली जाती और रात-भर वहां रहकर दिन निकलने से पहले ही लौट आती। इस तरह बहुत दिन बीत गए।

    इस बीच एक दिन उसका पति परदेश से लौटा आया। स्त्री बड़ी दुखी हुईं अब वह क्या करें? आदमी हारा-थका था। जैसे ही उसकी आंख लगी कि स्त्री उठकर अपने दोस्त के पास चल दी।

    रास्ते में एक चोर खड़ा था। वह देखने लगा कि स्त्री कहां जाती है। धीरे-धीरे वह सहेली के मकान पर पहुंची। चोर भी पीछे-पीछे गया। संयोग से आदमी को सांप ने काट लिया था ओर वह मरा पड़ा था। स्त्री ने समझा सो रहा है।
    वहीं आंगन में पीपल का एक पेड़ था, जिस पर एक पिशाच बैठा यह लीला देख रहा था। उसने उस आदमी के शरीर में प्रवेश करके उस स्त्री की नाक काट ली औरा फिर उस आदमी की देह से निकलकर पेड़ पर जा बैठा। स्त्री रोती हुई अपनी सहेली के पास गई। सहेली ने कहा कि तुम अपने पति के पास जाओ ओर वहां बैठकर रोने लगो। कोई पूछे तो कह देना कि पति ने नाक काट ली है।

    उसने ऐसा ही किया। उसका रोना सुनकर लोग इकट्ठे हो गए। आदमी जाग उठा। उसे सारा हाल मालूम हुआ तो वह बड़ा दुखी हुआ।

    लड़की के बाप ने कोतवाल को खबर दे दी। कोतवाल उन सबको राजा के पास ले गया। लड़की की हालत देखकर राजा को बड़ा गुस्सा आया उसने कहा, ‘इस आदमी को सूली पर लटका दो।’

    वह चोर वहां खड़ा था। जब उसने देखा कि एक बेकसूर आदमी को सूली पर लटकाया जा रहा है, तो उसने राजा के सामने जाकर सब हाल सच-सच बता दिया। बोला, ‘अगर मेरी बात का विश्वास न हो तो जाकर देख लीजिए, उस आदमी के मुंह में स्त्री की नाक है।’

    राजा ने दिखवाया तो बात सच निकली।

    इतना कहकर तोता बोला, ‘हे राजा ! स्त्रियां ऐसी होती हैं! राजा ने उसका सिर मुंडवा कर, गधे पर चढ़ा कर, नगर में घुमवाया और शहर से बाहर छुड़वा दिया।’

    यह कहानी सुनाकर वेताल बोला, ‘राजा, बताओ कि दोनों में ज्यादा पापी कौन है?’

    राजा ने कहा, ‘स्त्री।’

    बेताल ने पूछा, ‘कैसे?’

    राजा ने कहा, ‘मर्द कैसा ही दुष्ट हो, उसे धर्म का थोड़ा-बहुत विचार रहता ही है। स्त्री को नहीं रहता। इसलिए वह अधिक पापिन है।’

    राजा के इतना कहते ही वेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा लौट कर गया और उसे पकड़ कर लाया। रास्ते में वेताल ने पांचवीं कहानी सुनाई।

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