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    राज कुमारी कनक का अपूर्ण प्रेम

                               अपूर्ण प्रेम


    एक कनक नाम की राजकुमारी थी. बिलकुल नाम जैसे गुण. हुबहू सोने का टुकड़ा. वो बड़ी सुन्दर थी. जब उसकी शादी की उम्र हो गई तो कई देशों के राजकुमार के रिश्ते आने लगे. लेकिन वो सेनापति के बेटे कुशल से प्यार करती थी. और यह विवाह राजा उमेद को बिलकुल स्वीकार नहीं था. लेकिन राजकुमारी ने एक न सुनी. जो भी राजकुमार आता वो उसको अपमानित कर देती और रिश्ता वापस चला जाता. लेकिन राजा ने भी हार नहीं मानी.

    यह सब दो साल तक चलता रहा. राजा के हठीले स्वाभाव को देखते हुए राजकुमारी और सेनापति के बेटे ने एक योजना बनाई. एक दिन वीर नाम का राजकुमार कनक को देखने आया. उसने कनक के बर्ताव के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था. और उसको यह भी पता था की कनक किसी और को चाहती है. फीर भी वो कनक का हाथ मांगने आ पहुंचा. योजना के अनुसार कनक वीर से शादी करने को राजी हो गई.  राजा ने सोचा की अब उसकी अक्ल ठिकाने आ गई है. वो अपनी बेटी को एक अच्छे राज्य में राज करती देखना चाहते थे. कनक की शादी धूमधाम से हुई.

    शादी कर के कनक वीर के राज्य अलकापुरी में आई. कनक की बिदाई के तुरंत बाद राजा ने कुशल को राज्य से निकल बाहर किया. सब कुछ उन दोनोंकी योजना के मुताबिक ही चल रहा था. शादी की पहली रात जब महल में जश्न हो रहा था कनक ने बेहोश हो जाने का स्वांग किया. उसको अपने शयनगृह में ले जाया गया. कुशल भी अलकापुरी पहुँच चूका था. दोनों की योजना उस रात कही दूर भाग निकलने की थी. जैसे ही राजकुमारी ने खुद को अकेला पाया वो उठकर सारे गहने और कुछ कपडे बाँधने लगी. तभी उसको किसकी आवाज सुनाई दी. वो आवाज उसी के शयनगृह  में पिंजड़े में बंद तोते की थी. लेकीन कनक उसके बारे में जानने को उत्सुक न थी.

    तभी वो तोता बोला --

    "कनक, तू जिसके साथ भाग रही है उसकी जान खतरे में है, तू मत भाग."

    कनक ने आश्चर्य से तोते को पूछा --

    "तुझे कैसे मालूम मैं भाग रही हूँ?"

    तोता बोला ---

    " कनक, मैं भी कभी तुम्हारी तरह प्यार में था. मैं जुहार हूँ. आज से दोसों साल पहले मैं मगद राज्य का राजकुमार था. मैं सिर्फ उन्ही को सुनाई देता हूँ जो सच्चा प्यार करना जानते है."

    कनक सब सुन रही थी, उसने पूछा --

    "तुम्हारा यह हाल कैसे हुआ ?"

    तोते ने बताया --

    " राजा वीर कोई  राजकुमार नहीं है ..वो मैली विद्या जानता  है..वो ५०० साल का बुढ्ढा है जो खुद को जवान बनाए रखा है. आज से कुछ साल पहले एक लड़की ने मुझे चाहा था लेकिन राजकुमार वीर उससे शादी करना चाहते थे इसलिए उन्हों ने मुझे तोते में परिवर्तित कर दिया और खुद उसके संग शादी रचा ली."

    कनक ने पूछा --

    " तो अब मै क्या करू ?"

    तोता  बोला -

    " उस दीवान के पीछे एक चोर दरवाजा है, वहा राजकुमार वीर की युवान रहने वाली दवाई है उसको कही पर फेंक दे और गाँव के बाहर पश्चिम की और एक बड़ा बरगद का पेड़ है उसमें कही एक गुडिया छिपी है जिसमे राजकुमार वीर की सारी काली शक्तिया बसती है. उसको जला देने से उसका सारा कला जादू नष्ट हो जायेगा."

    कनक ने देखा कुशल योजना के मुताबिक उसके शयन की खिड़की तक आ चूका था उसने सारी बात कुशल को बताई. दोनों ने मिलकर तय किया की कुशल वो गुडिया को ठिकाने लगाएगा और वह खुद दवाई को मिटा देंगी...कुशल निकल पड़ा. उसने वो बरगद का पेड़ ढूंढ निकाला. और उसमे छीपी वह गुडिया को भी. लेकिन तोता सबकुछ पूरी तरह नहीं जनता था आखिर वो कई सालों से कैद में था..

    कनक के बताने के अनुसार कुशल ने वो गुडिया को मसल डाला और उसको आग लगा दी. गुडिया जलकर राख हो गई. और वो खुद मूर्छित हो गया. इस और कनक ने चोर दरवाजा खोल के ज्यादा जीने की लालच में वो दवाई खुद पी ली. दवाई के पीते ही वह और भी ज्यादा खुबसूरत हो गई. इधर राजकुमार वीर एकदम से ही जल उठा और दरबार के सामने जल कर राख हो गया. महल में हाहाकार हो गया. सब शौक में थे. कनक बैठकर कुशल का इन्तजार कर रही थी. जैसे वह तोते ने बताया सबकुछ वैसे ही उसने किया था. दुसरे दिन सुबह के प्रथम प्रहर में शोकातुर महल में कुशल ने प्रवेश किया. उसने राजकुमारी कनक से मिलने की इच्छा व्यक्त की और उससे शादी का प्रस्ताव भी प्रजा के समक्ष रखा. क्यूंकि कनक ने एक भी रात राजकुमार वीर के साथ नहीं गुजारी थी, प्रजा ने उसके दुसरे विवाह की अनुमति दे दी. वो कुशल से ब्याही. कुशल को वहां का नया राजा घोषित किया गया.

    जब कनक तोते का शुक्रिया अदा करने आयी तो वो तोता अभी भी पिंजड़े में ही कैद था. कनक ने आशचर्य से पूछा --

    "अगर सारा काला जादू मिट गया है तो तुम क्यों फिर से राजकुमार नहीं बने ?"

    लेकिन अब वो तोते को सुन नहीं पा रही थी... तोता कुछ बोल रहा था लेकिन वो सुनने को सक्षम नहीं थी. कनक को कुछ भी समझ में नहीं आया. उतनी देर में कुशल ने शयन में प्रवेश किया. कनक कुशल की बाहों में जा गिरी. लेकिन कुशल ने गंदा सा अटहास्य किया.  कनक ने कुशल के मुँह से एकदम राजकुमार वीर जैसी आवाज सुनी.

    ---- अब तुम हमेशा के लिए मेरी हो गई, कनक. मै वीर हूँ, राजकुमार वीर. मैं कुशल के शरीर में हूँ. अब तुम चाह कर भी मुझ से जुदा नहीं हो सकती ...मर कर भी नहीं ... हा ...हा ....हा .....असल में वो गुडिया का नाश करनेवाले ने  ही खुद के शरीर में उन काली शक्ति को हमेशा के लिए स्थापित कर लिया और मुझे मेरा नया शरीर मिल गया.... हा ...हा ...ह ........

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