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    राजा राजा होता है

                राजा राजा होता है


    रात्रि का तीसरा पहर, राजा महल के बड़े से हॉल में चहलकदमी कर रहा है बिलकुल उसी तरह जिस तरह कि फिल्मों में दिखाया जाता है, ऊपर जिस्म पर अँगरखानुमा ढीला ढाला सा नक्काशीदार कीमती भारी भरकम वस्त्र, नीचे टाइट पजमिया सी, पैरों में जड़ाऊ जूतियाँ, कानों में रत्नजड़ित कुण्डल, हाथ की सभी अँगुलियों में अलग अलग रत्नों की मोटी मोटी अंगूठियाँ, गले में कई भारी भारी सोने और मोतियों की मालायें, वैसे भी यह सब पहनकर नींद आना दुष्कर ही है, खैर लेकिन अभी नींद न आने की वजह कुछ अलग ही है वरना रात दिन सुरा और सुन्दरी में डूबा रहने वाला यह अय्याश राजा इस तीसरे पहर माथे पर सलवटें और पसीना लिये नथुनों से भैंसे की सी गहरी साँसें छोड़ते हुए यूँ न टहल रहा होता, वजह यह है कि पड़ोसी राज्य के राजा ने पिछले महीने भर से नगर और किले पर घेरा डाला हुआ है न तो किसान अपने खेतों में जा पा रहे हैं और न ही व्यापारी व अन्य लोग व्यापार या अन्य जरुरी कामों के लिये अन्य नगरों और राज्यों को जा पा रहे हैं और तो और चरवाहे मवेशियों को जंगल तक नहीं ले जा पा रहे हैं, ऐसे हालातों के चलते राजा ने अपने अनाजों के सब गोदाम प्रजा के लिये खुलवा दिये हैं इसलिये नहीं कि राजा बड़ा दयालु या प्रजापालक है बल्कि इसलिये क्योंकि वह जानता है कि प्रजा पहले ही उसकी अय्याशियों से त्रस्त है अगर उसे खाने पीने को नहीं मिला तो हो सकता है कि प्रजा ही नगर के दरवाज़े खोलकर दुश्मन सेना को अन्दर दाखिल कर ले, अब अभी राजा की परेशानी की वजह यह है कि अनाज के सभी गोदाम भी अब खाली से हो गये हैं मुश्किल से तीन चार दिन का अनाज और शेष है उसके बाद क्या होगा यही चिन्ता उसे खाये जा रही है, उसकी आँखों के सामने कभी बन्दीगृह तो कभी हाथी के पैरों तले कुचलवाये जाने के दृश्य बारी बारी से आ जा रहे हैं, सामने वाले राजा ने शर्त भी ऐसी रख दी है राजकुमारी से विवाह की, जिसे कि राजा किसी भी हालत में स्वीकार करने को तैयार नहीं है, एक तो राजकुमारी बमुश्किल सोलह साल की और पड़ोसी राजा पैंसठ पार, ऐसा नहीं है कि राजा को अपनी बेटी से बहुत प्यार है इस वजह से उसे इस खूसट राजा से शादी करने में दिक्कत हो बल्कि उसका दाँव तो यह है कि राजकुमारी का विवाह धनराजगढ़ के महाराज से हो जाये तो धनराजगढ़ के महाराज की छत्रछाया में उसका राज्य और उसकी अय्याशियाँ सलामत बनी रहें वैसे धनराजगढ़ के महाराज भी आयु में पड़ोसी राज्य के राजा से बीस ही होंगे।

    कब राजकुमारी का प्रवेश उस हॉल में हो जाता है राजा को पता ही नहीं चला वह तो अपनी चिन्ताओं में डूबा तेज चाल चलने की प्रतियोगिता की तैयारी सी में लगा पूरी तन्मयता से उस हॉल का फर्श रौंदने में व्यस्त है, राजकुमारी भी बिलकुल वैसी ही जैसी कि फिल्मों में होतीं हैं नाज़ुक सी सौन्दर्य की प्रतिमा आकर चुपचाप उस हॉल के एक बड़े से गवाक्ष से बाहर झाँकने लगती है, दूर नगर के परकोटे के बाहर कुछ अलाव से जल रहे हैं कुछ अस्पष्ट सी आकृतियाँ भी उन अलावों के आसपास मंडराती सी दिख रही हैं निश्चित ही वह पड़ोसी सेना के डेरे और उसके रात्रि प्रहरी सैनिक ही होंगे, राजकुमारी से पिता की यह हालत देखी नहीं जा रही बड़ी हिम्मत जुटाकर वह राजा को सम्बोधित करती है पिताश्री अब सो जाइये रात्रि गुजरने को ही है, राजा एकदम चौंक सा जाता है अरे बेटी तुम कब आईं अभी तक सोईं नहीं, राजा के स्वर में इतना प्यार पाकर राजकुमारी की हिम्मत बड़ जाती है, पिताश्री आपके जागते हुए मुझे कैसे नींद आ सकती है परन्तु आपकी इस चिन्ता की वजह क्या है आपने रात्रि में भोजन भी नहीं किया, अब राजा ने बड़े प्यार से राजकुमारी के कन्धे पर हाथ रखकर कहा कि बेटी अब तुम सयानी हो गयी हो सब कुछ जानती और समझती तो हो हमारे राज्य पर दुश्मन राजा ने घेरा डाला हुआ है अभी तक तो जैसे तैसे समय गुजर गया पर अब राज्य के सभो अन्न भण्डार भी खाली हो चुके हैं तीन चार दिन बाद तो भुखमरी की नौबत आ जायेगी ऐसे में प्रजा भी विद्रोह कर सकती है बस यही सोच सोच कर चिन्तित हूँ कि अब किया तो क्या किया जाये, बरसों बाद राजा के इतने स्नेह से उसके कन्धे पर हाथ रखने से राजकुमारी की हिम्मत कई गुना बड़ आई, वह अत्यन्त ही भोलेपन से बोली तो पिताश्री अपनी भी तो इतनी विशाल सेना है हम क्यों नहीं उस पिद्दी से राजा की सेना पर हमला करके उसे खदेड़ देते और प्रश्नवाचक निगाहों से राजा की आँखों में देखा, राजा ने एक लम्बा उच्छ्वास सा छोड़ा और बोला बेटी हमारी सेना विशाल जरूर है पर किसी काम की नहीं है बरसों से कोई युद्ध नहीं लड़ा आधे से ज्यादा सिपाही अफीमची हो चुके हैं मुफ़्त की पगार खा खा कर, राजकुमारी को तो जैसे इसी उत्तर की प्रतीक्षा थी उसके अधरों पर एक हल्की सी मुस्कराहट खेल गयी लेकिन उसने उसे दबाकर और भी भोलेपन से कहा कि पिताश्री हमने सुना है कि अपने राज्य में बहुत से ऐसे युवक हैं जो कि सेना में न होते हुए भी सैन्य अभ्यास करते हैं और बड़े ही साहसी और वीर हैं इनका नायक कोई भद्रसेन नामक युवक है

     क्यों न आप ऐसे युवकों को तैयार कर लड़ाई के लिये भेज देते, अब मुस्कराहट की राजा के होठों पर खेलने की बारी थी पर राजा ने भी उस मुस्कराहट को अन्दर ही अन्दर दबा लिया, राजा को अपने गुप्तचरों के माध्यम से कुछ महीनों से यह जानकारी मिल रही थी कि राजकुमारी का किसी विजातीय तथा अराजकुलीय युवक से प्रेम प्रसंग चल रहा है परन्तु नाम स्पष्ट नहीं हो पा रहा था जो कि अभी हुआ, राजा को यह भी जानकारी मिली थी कि मन्दिर और नगर भ्रमण के नाम पर दोनों की दो चार बार भेंट भी हो चुकी है साथ ही खास सखियों और विश्वसनीय परिचायिकाओं के माध्यम से गोपनीय प्रेमपत्र व्यवहार भी चल रहा है, परन्तु राजा ने पूर्णतः निर्लिप्त भाव से कहा बेटी परन्तु क्योंकर कोई भी व्यक्ति अपनी जान की बाज़ी ऐसे मौके पर लगायेगा जबकि उसे ख़ज़ाने से पगार या अन्य कोई सुविधा भी न मिलती रही हो और तिरछी सी निगाह राजकुमारी के चेहरे पर डाली, राजा के इस अत्यन्त प्रेम व्यवहार के चलते आज तो राजकुमारी की हिम्मत सातवें आसमान पर जा पहुँची थी उसने कहा पिताश्री आप एक काम करें पूरे राज्य में यह मुनादी करवा दें कि जो भी व्यक्ति इस युद्ध में सर्वाधिक वीरता का परिचय देकर इस राज्य को जय दिलवाएगा आप उसके साथ मेरा विवाह कर देंगे फिर देखिएगा आपकी यही सेना भी पूरे जोश के साथ लड़ने को तैयार हो जायेगी राजकुमारी के चेहरे पर अजब सी ख़ुशी छुपाये नहीं छुप रही थी लेकिन इतना बोलने के साथ ही अब उसके चेहरे पर संकोच सा दौड़ गया कि अरे यह मैं राजा के सामने क्या कुछ बोल बैठी उसने सहमती सी आँखों से राजा की ओर देखा परन्तु उन आँखों में क्रोध के स्थान पर वात्सल्य देख उसकी जान में जान आई, राजा ने बहुत ही प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा कि बेटी जाओ अब तुम विश्राम करो और मुझे इस पर विचार करने दो, राजकुमारी अपने अन्दर की तमाम खुशियों को दबाती सी जी पिताश्री कहकर अपने शयन कक्ष की ओर दौड़ सी गयी।

    रात्रि का अन्तिम पहर भी समाप्त होने को है, पौ फटने ही वाली है, राजा के मन्त्रणा कक्ष में राजा, महामन्त्री वा सेनापति के साथ गूढ़ मन्त्रणा में व्यस्त हैं।

    सुबह से ही नगर के सभी प्रमुख स्थलों, चौराहों और गली कूचों तक में घूम घूम कर यह मुनादी होने लगती है कि " राज्य संकट में है पड़ोसी राजा ने हमारे राज्य को हथियाने की नीयत से हमारे नगर पर घेरा डाला हुआ है और हमारी सेना इस संकट से निपटने के लिये अपर्याप्त है ऐसे में जो भी वीर पुरुष इस राज्य को बचाने के लिये युद्ध में जाने के इच्छुक हों वह खुद को प्रस्तुत करें, साथ ही राजा ने यह भी ऐलान किया है कि इस युद्ध में जो भी सर्वोच्च वीरता का प्रदर्शन करेगा राजा उसके साथ राजकुमारी रत्ना का विवाह कर इस राज्य का उत्तराधिकारी बना देंगे"।

    दोपहर तक युद्ध में जाने के इच्छुक राज्य के दीवान के कार्यालय में एकत्रित होने लगे, दीवानजी और उनके कर्मचारी उनमे से इस कार्य के सक्षम लोगों के नाम एक रजिस्टर में दर्ज़ कर उन्हें सैनिक गणवेश तथा आवश्यक हथियार आदि प्रदान करने लगे जिसमें वह पारंगत थे, राजकुमारी से विवाह और राजपाट के लालच में कुछ अत्यंत वृद्ध, कमजोर और अपाहिज तक लाइनों में आ लगे जिन्हें सैनिकों द्वारा समझा बुझाकर वापिस किया गया कुछ को तो बलपूर्वक खदेड़ा गया। दोपहर बाद युवक भद्रसेन भी अपने दौ ढाई सौ साथियों के साथ नाम लिखवाने आ खड़ा हुआ नाम लिखवाने एवं सैनिक गणवेश आदि प्राप्त करने के पश्चात उसने राजा से व्यक्तिगत रूप से मिलने की इच्छा जाहिर की जिसे महामंत्री के माध्यम से राजा तक पहुँचाया गया राजा ने भी मिलने की अनुमति प्रदान कर दी, युवक भद्रसेन दरबार में राजा के सम्मुख उपस्थित हुआ अभिवादन वगैरह की औपचारिकताओं के बाद राजा ने उसके मिलने की वजह जानना चाही, भद्रसेन ने अत्यन्त ही विनम्रतापूर्वक राजा से निवेदन किया कि उसकी टुकड़ी के सभी युवक अश्व युद्धकला में निपुण है यदि उसे व उसकी टुकड़ी को अश्व दे दिये जायें तो वह और उसके साथी पलक झपकते ही दुश्मन सेना को तहस नहस कर डालेंगे, राजा ने एक बारगी में ही इस निवेदन को स्वीकार कर सेनापति को भद्रसेन व उसके साथियों को अश्व दिए जाने के निर्देश दे दिये, राजा सच में भद्रसेन के ज़ज़्बे से प्रभावित हुआ राजा की आँखों में प्रशंसा के भाव थे, दरबार में तय हुआ कि एक दिन बाद दुश्मन सेना पर हमला बोला जाए, अगला दिन तैयारियों एवं युद्ध की रणनीति बनाने के लिये मुकर्रर हुआ।
    उधर राजकुमारी रत्ना के महल में तो चहल पहल देखते ही बनती थी राजकुमारी को दरबार की पल पल की खबर मिल रही थी राजा और भद्रसेन की भेंट, उनके बीच हुए वार्तालाप तथा यहाँ तक कि राजा के आँखों के भावों तक की, सखियाँ राजकुमारी को यों चिड़ा रहीं हैं जैसे कि उसका विवाह ही होने वाला हो भद्रसेन के साथ और उसीकी तैयारियाँ हो रही हों, भद्रसेन की वीरता को लेकर किसी को रंचमात्र भी संदेह नहीं था सबको पूरा विश्वास था कि वह दुश्मन सेना को पराजित करके ही लौटेगा इसलिये किसी भी आँख या माथे पर चिन्ता का कोई भाव है ही नहीं।

    अगला पूरा दिन युद्ध की तैयारियों में गुजरा, राजा के आव्हान पर लगभग एक हज़ार युवकों, सैनिकों एवं कुछ पूर्व सैनिकों की फ़ौज़ तैयार हो गयी, यह फ़ौज़ उत्साह से लबरेज़ है क्योंकि राज्य और राजकुमारी को प्राप्त करने की लालसा कुछ कम नहीं होती, सेनापति ने सबको अच्छे से युद्ध रणनीति पर समझाइश दी और अगले दिन सवेरा होते ही भद्रसेन के नेतृत्व में दुश्मन सेना पर टूट पड़ने के निर्देशों के साथ बैठक समाप्त हुई।

    राजकुमारी ने भी आज दिन भर उपवास रखा राज्य की जय के लिये शाम को शिवमन्दिर जाकर शिव अर्चना की अनुमति राजा से प्राप्त कर शिवमन्दिर को सखियों एवं सेविकाओं के साथ प्रस्थान किया, राजा को पूरी खबर है कि राजकुमारी शिवमन्दिर के नाम पर कहाँ को प्रस्थित हुई हैं लेकिन राजा ने कोई रोकटोक नहीं की, राजकुमारी की भद्रसेन से भेंट सब कुछ बस वही फ़िल्मी सा राजकुमारी के लरजते होंठ और आँखों से छलकते आसूँ, भद्रसेन के होंठों पर आश्वस्त करती मुस्कुराहट और आँखों में आत्मविश्वास, राजकुमारी को बाहों में भरकर शीघ्र ही युद्ध में विजयी होकर लौटकर मिलने का वादा, खैर भेंट ज्यादा लम्बी नहीं चल सकती थी फिर मिलने के वादे के साथ आँखों में नमी और होठों पर स्मित सी मुस्कराहट के साथ राजकुमारी अपने दल सहित महल को वापिस को चल पड़ी।

    रात का दूसरा प्रहर, राजा का मन्त्रणा कक्ष अगले दिन की अन्तिम रणनीति तय करते राजा, महामंत्री और सेनापति।

    सुबह सूरज के आसमान में आने के साथ ही नगर के और किले के दरवाजे खुल गये राज्य की एक हज़ारी सेना भद्रसेन के नेतृत्व में अपने से दस गुना बड़ी पड़ोसी राज्य की सेना पर टूट पड़ी, पड़ोसी सेना इस आकस्मिक हमले के लिये तैयार नहीं थी फिर भी संख्या बल की दम पर लोहा लेने लगी, दोनों ही तरफ से भीषण युद्ध होने लगा दोनों तरफ के सैनिक गाजर मूली की तरह कटने लगे, भद्रसेन ने सीधे ही राजा से युद्ध किया और दोपहर होते होते राजा को धराशायी कर दिया, राजा के मरते ही दुश्मन सेना में भगदड़ मच गयी, दुश्मन सेना का राजकुमार किसी तरह जान बचाकर अपने कुछ विश्वस्त सिपाहियों के साथ भाग निकला, भद्रसेन की सेना भी लगभग पूरी की पूरी मारी जा चुकी थी फिर भी बुरी तरह घायल होने के बावज़ूद उसने अपने बचे खुचे पचास साठ साथियों के साथ ही मीलों तक दुश्मन देश के राजकुमार का पीछा किया।

    रणनीति के मुताबिक दूर से युद्ध की निगरानी कर रहे सेनापति के नेतृत्व में इस सेना को सहयोग देने के इरादे से चार-पाँच सौ घुड़सवारों की सेना युद्ध स्थल की तरफ रवाना हुई, युद्धस्थल पर चारोँ ओर बस लाशों ही लाशों का ढेर और सूखे हुए रक्त की मोटी मोटी परतें, तभी सामने से धूल उड़ाती हुई घोड़ों पर सवार भद्रसेन की टुकड़ी आती नज़र आई घायल, खून पसीने से तरबतर, भूखे प्यासे, थकान से बुरा हाल फिर भी चेहरों पर जीत का उत्साह, थोड़ा सा नज़दीक आने पर दृष्टिपटल स्पष्ट होने पर भद्रसेन ने हवा में तलवार लहराकर विजयी होने का संकेत दिया इधर से सेनापति ने भी उतने ही उत्साह से तलवार लहराकर जीत की बधाई दी, सेनापति की सेना अपने वीर जवानों की अगवानी के लिये आगे बड़ने लगी, युवक बिलकुल नज़दीक आ चुके थे एक युवक ने नज़दीक आते ही राज्य का परचम हवा में लहराया और इधर सेनापति ने अपने सैनिकों को इशारा दिया पलभर में ही यह सैनिक इन थके माँदे, भूखे प्यासे, घायल युवकों पर टूट पड़े, आधे से भी कम घड़ी में सभी युवक भद्रसेन सहित खेत रहे। अब राज्य का परचम इस टुकड़ी के हाथों में था जो कि उसे हवा में लहराते हुए जीत के नारे लगाते हुए नगर की ओर बड़ चली।

    सेनापति के नेतृत्व में सैनिकों की टुकड़ी के राज्य में प्रवेश के साथ ही पूरे नगर में जीत की खबर जंगल में आग की तरह फ़ैल गयी लोग अपने अपने घरों से निकलकर नाचने गाने लगते हैं, सभी मन्दिरों में विशेष पूजा अर्चना शुरू हो जाती है, घन्टे घड़ियाल बजने लगते हैं, हाथी सजा दिए गए हैं जिस पर सवार हो राजा की विजयी शोभायात्रा नगर भ्रमण के लिये चल पड़ी है, लोग राजा और सेनापति की जयघोष के नारों से आसमान गुँजा रहे हैं, आतिशबाज़ी का शोर अलग, बस उन कुछ घरों को छोड़कर जिन्होंने अपने बेटों, भाइयों, पिता या पतियों को गवाँ दिया है लेकिन उन घरों की चीत्कारें और सिसकियाँ विजय के नाद में दबकर सुनाई नहीं दे रहीं यही हर काल में विजय का सनातन सत्य है।

    उधर राजकुमारी बदहवास सी इस सखी से उस सखी के पास दौड़ रही है परन्तु कोई भी सखी यह नहीं बता पा रही कि उस विजय जुलूस में भद्रसेन है या नहीं शाम होते होते एक गुप्तचर के माध्यम से आखिर वह समाचार मिल ही जाता है जिसकी कि आशंका सी थी भद्रसेन के वीरगति को प्राप्त होने का, इस समाचार को सुन राजकुमारी जड़वत सी हो जाती है उसका कोमल ह्रदय भावशून्य सा हो जाता है, वह खुद अपराधबोध से व्यथित सी है क्योंकि यह सुझाव उसी का तो था, सखियाँ और सेविकाएँ उसे समझाबुझा रही हैं, कल से जो उत्सव का सा माहौल इस महल में था पल भर में ही शौक में तब्दील हो गया है।

    रात्रि का दूसरा पहर, नगर भर में हुई दीपमाला के दिये एक एक कर बुझते जा रहे हैं बस कुछ ही दिये बचे हैं जो अब भी हवाओं से दो दो हाथ कर रहे हैं, राजकुमारी पूरी तरह हताश सी उसी हाल के उसी गवाक्ष से बाहर ताक रही है जहाँ परकोटे के बाहर आज भी कुछ अलाव से जलते दिख रहे हैं आज शायद वह चिताएँ हैं, उन वीरों की जिन्होंने राज्य की खातिर अपने प्राण न्योछावर कर दिये, आज राजकुमारी के शरीर पर रेशमी वस्त्रो की जगह सादा सा परिधान है, केश भी खुले हुए हैं, शरीर पर न कोई आभूषण है न कोई श्रृंगार, आँखें भी सूजी हुई लाल सीं, होशोहवाश खोई सी वह लगातार उन दूर जलती चिताओं में जैसे अपने भद्रसेन की चिता ढूँढ रही हो तभी कन्धे पर अचानक एक भारी भरकम हाथ की छुहन से उसकी चीख सी निकलने को होती है, घूमकर देखती है तो राजा उसके सम्मुख खड़े थे उनकी आँखों और होठों पर एक विजयी साथ ही कुटिल सी मुस्कान है जिसे वह आज दबाने की कोशिश भी नहीं कर रहे थे पर फिर भी आवाज़ में पर्याप्त आत्मीयता लाते हुए बोले बेटी अभी तक सोईं नहीं और बगैर प्रत्युत्तर प्राप्त किये ही राजा पुनः पूर्ण वात्सल्य से बोले जाओ बेटी अब सो जाओ अब कोई डर भय नहीं है इतना कहकर राजा मुस्कुराते हुए थोड़े डगमगाते क़दमों से अपने रंगमहल की ओर चल पड़ते हैं जहाँ से आज कई दिनों के बाद घुंघरुओं की आवाज़ें रात की नीरवता को तोड़ रही हैं, राजकुमारी बुत सी खड़ी राजा को जाते हुए देखती रह जाती है, राजा आखिर राजा होता है, राजा राजा ऐसे ही नही होता।

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