राज कुमारी ओर दैत्य
राज कुमारी ओर दैत्य
हिमालय की तराई में कभी एक साधु रहता था, जिसका उपदेश सुनने एक आम आदमी आता था। उसका नाम बिंदा था. जो अपनी निजी जिंदगी को लेकर बेहद दुखी था, और दर्द के आवेश में वह न करने के कार्य करता था . वो राहगीरों को लूटता था और उन्हें मार कर खा जाता था। एक बार उसने काशी के एक धनी सेठ की पुत्री और उसके अनुचरों की सवारी पर आक्रमण किया। बिंदा को देखते ही उस कन्या के सारे अनुचर अपने अस्र-शस्र छोड़ भाग खड़े हुए। सेठ की कन्या को देखकर बिंदा उस पर मुग्ध हो गया। उसने उसकी हत्या न कर उसके साथ ब्याह रचाया। इस डर से कि वह सुन्दर कन्या कहीं भाग न जाय , उसने लकडियों का एक बड़ा सा संदूक बनाया जिसमे वो कन्या को अच्छे से रख सके. फिर कन्या को संदूक में बंद कर दिया। वह उस संदूक को हमेशा अपने पास छुपा कर रखता। एक दिन बिंदा साधु से मिलने जा रहा था। तभी उसकी नज़र एक सुन्दर झील पर पड़ी। गर्मी बहुत थी। इसलिए वह झील में उतर आया। उसने संदूक को खोलकर कन्या को बाहर निकाला और उसे जलाशय में अपने हाथों से स्नान कराया। उसके बाद वह स्वयं जलाशय में स्नान करने लगा। मुक्त हो कन्या जलाशय के कनारे विचरण करने लगी। तभी कन्या की नज़र एक राजकुमार पर पड़ी जो पास की जाडियों में टहल रहा था. वह देखने में बहुत आकर्षक था.
उस अत्यंत सुन्दर राजकुमार को देख कन्या ने उसे इशारों से अपने पास बुलाया। फिर प्रेम-क्रीड़ा करने के लिए उसने उसे संदूक में चले जाने को कहा। राजकुमार भी कन्या के मोहपाश में आकर संदूक में अन्दर छुप के बैठ गया. नहा कर दैत्य जब लौटा तो उसने संदूक को बंद कर फिर से अपने पास छुपा लिया ।
बिंदा जब साधु के आश्रम में पहुँचा तो साधु ने उसका स्वागत करते हुए कहा, "आप तीनों का स्वागत है"। साधु की बात सुन बिंदा चौंक गया क्योंकि वह नहीं जानता था कि कन्या और उसके अतिरिक्त भी कोई तीसरा उनके साथ था।
साधु की बात सुनते ही उसने संदूक को संभाल के खोला। ठीक उसी समय राजकुमार उसमे से बाहर निकल रहा था। बिंदा को बहुत गुस्सा आया . यहाँ तक की वह अपनी तलवार म्यान से पूरी तरह खींच भी नहीं पाया। अगर और कुछ क्षणों का विलम्ब होता तो वह निश्चित रुप से वह राजकुमार का पेट फाड़ देता। लेकिन साधू के रोकने पर बिंदा रुक गया.
साधू ने बिंदा को बताया की ". बिंदा , हम जिसको प्यार करते है , वो जरुरी नहीं की हमें भी प्यार करे. यही कुदरत का नियम है. हमें यह बात का स्वीकार करना रहता है. बहुत कम लोग एसे होते है जो कमनसीब होते है और जिनको कठोर बन जीवन जीना पड़ता है. तुम्हारे साथ भी वही हुआ है. तुम जो कन्या को चाहते हो वो कन्या तुम्हे नहीं चाहती है. उसको छोड़ दो. उसके पीछे मत भागो."
साधु के वचन एवं ज्ञान को सुनने के कारण बिंदा की आँखे खुल गई. उस दिन के बाद से बिंदा शीलवान बन गया. उसकी शादी एक अति योग्य कन्या से हुई और उसने अपना बाकि का जीवन हँसते हुए गुजारा.
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