बाज ओर सर्प
वेसे तो वेताल की पच्चीस कहानिया मशुर है पर बहुत ही कहानिया इसी नाम से प्रसिद्ध हूई । उन्ही में से एक
बनारस में देवस्वामी नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसके यहां हरिदास नाम का पुत्र था।
हरिदास की बड़ी सुंदर पत्नी थी। नाम था लावण्यवती।
एक दिन वे महल के ऊपर छत पर सो रहे थे कि आधी रात के समय एक गंधर्व-कुमार आकाश में घूमता हुआ उधर से निकला। वह लावण्यवती के रूप पर मुग्ध होकर उसे उड़ा कर ले गया।
जागने पर हरिदास ने देखा कि उसकी स्त्री नही है, तो उसे बड़ा दुख हुआ और वह मरने के लिए तैयार हो गया।
लोगों के समझाने पर वह मान तो गया; लेकिन यह सोचकर कि तीरथ करने से शायद पाप दूर हो जाए और स्त्री मिल जाए, वह घर से निकल पड़ा।
चलते-चलते वह किसी गांव में एक ब्राह्मण के घर पहुंचा। उसे भूखा देख ब्राह्मणी ने उसे कटोरा भरकर खीर दे दी और तालाब के किनारे बैठ कर खाने को कहा।
हरिदास खीर लेकर एक पेड़ के नीचे आया और कटोरा वहां रखकर तालाब मे हाथ-मुंह धोने गया।
इसी बीच एक बाज किसी सांप को लेकर उसी पेड़ पर आ बैठा ओर जब वह उसे खाने लगा तो सांप के मुंह से जहर टपक कर कटोरे में गिर गया।
हरिदास को कुछ पता न था। वह खीर को खा गया। जहर का असर होने पर वह तड़पने लगा और दौड़ा-दौड़ा ब्राह्मणी के पास आकर बोला, ‘तूने मुझे जहर दे दिया है।’ इतना कहने के बाद हरिदास मर गया।
पति ने यह देखा तो ब्राह्मणी को ब्रह्म घातिनी कहकर घर से निकाल दिया।
इतना कहकर बेताल बोला, ‘राजन्! बताओ कि सांप, बाज, और ब्राह्मणी, इन तीनों में अपराधी कौन है?’
राजा ने कहा, ‘कोई नहीं। सांप तो इसलिए नहीं कि शत्रु के वश में था। बाज इसलिए नहीं कि वह भूखा था। जो उसे मिल गया, उसी को वह खाने लगा। ब्राह्मणी इसलिए नहीं कि उसने अपना धर्म समझ कर उसे खीर दी थी और अच्छी दी थी। जो इन तीनों में से किसी को दोषी कहेगा, वह स्वयं दोषी होगा।’
इतना सुनकर वेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा को वहां जाकर उसे लाना पड़ा। वेताल ने चलते-चलते नई कहानी सुनाई।
बनारस में देवस्वामी नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसके यहां हरिदास नाम का पुत्र था।
हरिदास की बड़ी सुंदर पत्नी थी। नाम था लावण्यवती।
एक दिन वे महल के ऊपर छत पर सो रहे थे कि आधी रात के समय एक गंधर्व-कुमार आकाश में घूमता हुआ उधर से निकला। वह लावण्यवती के रूप पर मुग्ध होकर उसे उड़ा कर ले गया।
जागने पर हरिदास ने देखा कि उसकी स्त्री नही है, तो उसे बड़ा दुख हुआ और वह मरने के लिए तैयार हो गया।
लोगों के समझाने पर वह मान तो गया; लेकिन यह सोचकर कि तीरथ करने से शायद पाप दूर हो जाए और स्त्री मिल जाए, वह घर से निकल पड़ा।
चलते-चलते वह किसी गांव में एक ब्राह्मण के घर पहुंचा। उसे भूखा देख ब्राह्मणी ने उसे कटोरा भरकर खीर दे दी और तालाब के किनारे बैठ कर खाने को कहा।
हरिदास खीर लेकर एक पेड़ के नीचे आया और कटोरा वहां रखकर तालाब मे हाथ-मुंह धोने गया।
इसी बीच एक बाज किसी सांप को लेकर उसी पेड़ पर आ बैठा ओर जब वह उसे खाने लगा तो सांप के मुंह से जहर टपक कर कटोरे में गिर गया।
हरिदास को कुछ पता न था। वह खीर को खा गया। जहर का असर होने पर वह तड़पने लगा और दौड़ा-दौड़ा ब्राह्मणी के पास आकर बोला, ‘तूने मुझे जहर दे दिया है।’ इतना कहने के बाद हरिदास मर गया।
पति ने यह देखा तो ब्राह्मणी को ब्रह्म घातिनी कहकर घर से निकाल दिया।
इतना कहकर बेताल बोला, ‘राजन्! बताओ कि सांप, बाज, और ब्राह्मणी, इन तीनों में अपराधी कौन है?’
राजा ने कहा, ‘कोई नहीं। सांप तो इसलिए नहीं कि शत्रु के वश में था। बाज इसलिए नहीं कि वह भूखा था। जो उसे मिल गया, उसी को वह खाने लगा। ब्राह्मणी इसलिए नहीं कि उसने अपना धर्म समझ कर उसे खीर दी थी और अच्छी दी थी। जो इन तीनों में से किसी को दोषी कहेगा, वह स्वयं दोषी होगा।’
इतना सुनकर वेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा को वहां जाकर उसे लाना पड़ा। वेताल ने चलते-चलते नई कहानी सुनाई।
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