वेताल पच्चीसी :- चौदहवा व्रतांत ( चोर ज़ोर-ज़ोर से क्यों रोया और फिर हँसा? )
इसी बीच नगर में खूब चोरियां होने लगी। प्रजा दुखी हो गई। कोशिश करने पर भी जब चोर पकड़ में न आया, तो राजा स्वयं उसे पकड़ने के लिए निकला। एक दिन रात को जब राजा भेष बदल कर घूम रहा था, तो उसे परकोटे के पास एक आदमी दिखाई दिया।
राजा चुपचाप उसके पीछे चल दिया। चोर ने कहा, ‘तब तो तुम मेरे साथी हो। आओ, मेरे घर चलो।’
दोनो घर पहुंचे। उसे बिठा कर चोर किसी काम के लिए चला गया। इसी बीच उसकी दासी आई और बोली, ‘तुम यहां क्यों आए हो? चोर तुम्हें मार डालेगा। भाग जाओ।’
राजा ने ऐसा ही किया। फिर उसने फौज लेकर चोर का घर घेर लिया। जब चोर ने यह देखा तो वह लड़ने के लिए तैयार हो गया। दोनों में खूब लड़ाई हुई। अंत में चोर हार गया।
राजा उसे पकड़ कर राजधानी में लाया और सूली पर लटकाने का हुक्म दे दिया।
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संयोग से रत्नवती ने उसे देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। पिता से बोली, ‘मैं इसके साथ ब्याह करूंगी, नहीं तो मर जाऊंगी।
पर राजा ने उसकी बात नहीं मानी और चोर सूली पर लटका दिया। सूली पर लटकने से पहले चोर पहले तो बहुत रोया, फिर खूब हंसा। रत्नवती वहां पहुंच गई और चोर के सिर को लेकर सती होने के लिए चिता में बैठ गई। उसी समय देवी ने आकाशवाणी की, ‘मैं तेरी पतिभक्ति से प्रसन्न हूं। जो चाहे सो मांग।’
रत्नवती ने कहा, ‘मेरे पिता के कोई पुत्र नहीं है। सो वर दीजिए, कि उनसे सौ पुत्र हो।’
देवी प्रकट होकर बोलीं, ‘यही होगा…..। और कुछ मांगो।’
वह बोली, ‘मेरे पति जीवित हो जाएं।’
देवी ने उसे जीवित कर दिया। दोनों का विवाह हो गया। राजा को जब यह मालूम हुआ तो उन्होंने चोर को अपना सेनापति बना लिया।
इतनी कहानी सुनाकर वेताल ने पूछा, ‘हे राजन्, यह बताओ कि सूली पर लटकने से पहले चोर क्यों तो जोर-जोर से रोया और फिर क्यों हंसते-हंसते मर गया?’
राजा ने कहा, ‘रोया तो इसलिए कि वह राजा रत्नदत्त का कुछ भी भला न कर सकेगा। हंसा इसलिए कि रत्नवती बड़े-बड़े राजाओं और धनिकों को छोड़कर उस पर मुग्ध होकर मरने को तैयार हो गई। स्त्री के मन की गति को कोई नहीं समझ सकता।’
इतना सुनकर वेताल गायब हो गया और पेड़ पर जा लटका। राजा फिर वहां गया और उसे लेकर चला तो रास्ते में उसने पंद्रहवीं कहानी सुनाई।
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