माली और मूर्ख बंदर (Gardener and silly monkey) जातक कथाएँ
वाराणसी नरेश के राज-बगीचे में कभी एक माली रहता था। वह दयावान् था और उसने बगीचे में बंदरों को भी शरण दे रखी थी। बंदर उसके कृपापात्र और कृतज्ञ थे।
एक बार वाराणसी में कोई धार्मिक त्यौहार मनाया जा रहा था। वह माली भी सात दिनों के उस जलसे में सम्मिलित होना चाहता था। अत: उसने बंदरों के मुखिया को अपने पास बुलाया और अपनी अनुपस्थिति में पौधों को पानी देने का आग्रह किया।
मुखिया ने तुरंत हामी भरते हुए कहा, "अवश्य
करेंगे ! हमें क्या करना है बताइए ?"
माली ने उत्तर दिया, "तुम सबको मिलकर यहां के पेड़-पौधों को पानी देना होगा। धूप कम होने के बाद शाम को पानी देना होगा।
माली ने उन्हें सावधान किया, "पर ध्यान रखना पानी ठीक मात्रा में देना। जरूरत से ज्यादा नहीं। " फिर वह निश्चिंत होकर गांव
चला गया।
शाम होते ही पानी के घड़े लेकर बंदर चुस्ती से काम पर लग गए।
बंदरों के मुखिया ने चेतावनी दी, "हर पौधे को सही मात्रा में पानी देना। " एक बंदर ने पूछा, "हमें कैसे मालूम पड़ेगा कि हमने पौधे को सही मात्रा में पानी दिया है कि नहीं ?"
मुखिया सोच में पड़ गया, फिर उसने बोला - हर एक पौधे को
जड़ से उखाड़ कर उन की जड़ को देखो। लंबी जड़ वाले पौधे
को ज्यादा पानी देना, छोटी जड़ वाले पौधे को कम पानी देना।
यह सुनते ही बंदरों ने एक-एक करके सारे पौधे उखाड़ दिए।
तभी उधर से गुजरते एक बुद्धिमान् राहगीर ने उन्हें ऐसा करते देख टोका और पौधों को बर्बाद न करने की सलाह दी। फिर उसने बुदबुदा कर यह कहा-"जब कि करना चाहता है अच्छाई। मूर्ख कर जाता है सिर्फ बुराई।"
फलत: पल भर में बंदरों ने सारा बाग ही उजाड़ दिया।
अगले दिन माली काम पर लौट आया।
अफसोस ! सभी पौधे जमीन पर मुरझाए पड़े थे।
शिक्षा :- कभी अपना काम किसी मूर्ख के हवाले नही करना चहिये ,, क्यो की मूर्ख भले अच्छे काम की सोचे पर उससे अच्छा होता ही नही है !!
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