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    खरदीय हिरण के वध की कथा (Tale of the slaughter of a Khardiya deer) जातक कथा


    एक वन में एक हिरण रहता था जो हिरणों के गुर और कलाबाजियों में अत्यंत पटु था। एक दिन उसकी बहन अपने एक नन्हे हिरण खरदीय को लेकर उसके पास आई और उससे कहा, "भाई! तुम्हारा भाँजा निठल्ला है; और हिरणों के गुर से भी अनभिज्ञ। अच्छा हो यदि तुम इसे अपने सारे गुर सिखला दो।" हिरण ने अपने नन्हे भाँजे को एक निश्चित समय पर आने के लिए कहा और फिर उनका आदर सत्कार कर विदा कर दिया।

    दूसरे दिन निश्चित समय पर वह अपने भाँजे के आने की राह तकता रहा, मगर वह नहीं पहुँचा। इस प्रकार सात दिनों तक उसकी प्रतीक्षा करता रहा मगर वह नहीं आया। किन्तु आठवें दिन उसकी माँ आई। वह रो-बिलख रही थी और अपने भाई को ही बुरा-भला सुना रही थी कि उसने अपने भतीजे को कोई भी गुर नहीं सिखाया था, जिससे वह शिकारियों के जाल में फँसा था। वह अपने पुत्र को हर हालत में मुक्त कराना चाहती थी।

    तब हिरण ने अपनी बहन को बताया कि उसका बेटा दुष्ट था, जिसमें सीखने की लगन भी नहीं थी। इसलिए वह उसके पास सीखने के लिए कभी भी नहीं पहुँचा था और अपनी माँ की आँखों में ही धूल झोंकता रहा था। वह अब अपने कर्मों के अनुरुप ही दण्ड का भागी था, क्योंकि जिस जाल में वह फँसा था वहाँ से उसे निकाल पाना असंभव था।

    दूसरे दिन शिकारियों ने खरदीय को पकड़ एक पैनी छुरी से उसका वध कर दिया और उसकी खाल और मांस अलग-अलग कर शहर में बेचने चले गये।

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