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    काशगर के बादशाह के सामने दरजी की कहानी (Story of Darji in front of the emperor of Kashgar) :- अलिफ लैला (Alif Laila)

    काशगर के बादशाह के सामने दरजी की कहानी (Story of Darji in front of the emperor of Kashgar) :- अलिफ लैला (Alif Laila) 


    दरजी ने कहा कि इस नगर के व्यापारी ने एक बार अपने मित्रों को भोज दिया और उनके लिए भाँति-भाँति के व्यंजन बनवाए। मुझे भी बुलाया गया। मैं जब वहाँ पहुँचा तो देखा कि बहुत-से निमंत्रित लोग मौजूद हैं किंतु मकान मालिक नहीं है। थोड़ी देर में हम लोगों ने देखा कि मकान मालिक एक लँगड़े किंतु अति सुंदर व्यक्ति को ले कर यहाँ आया और अतिथियों के बीच बैठ गया। लँगड़ा आदमी वहाँ बैठनेवाला ही था कि उस की दृष्टि वहाँ पर उपस्थित एक नाई पर पड़ी। वह बैठने के बजाय सभा से बाहर जाने लगा। आतिथ्यकर्ता व्यापारी ने आश्चर्य से पूछा कि मित्र, तुम जा क्यों रहे हो, अभी भोजन आनेवाला है, तुम भोजन के बिना कैसे चले जाओगे। किंतु उस लँगड़े ने, जो परेदशी जान पड़ता था, कहा, 'श्रीमान, मुझे आपके घर पर ठहर कर मरने की इच्छा नहीं है। मैं इस मनहूस नाई का मुँह नहीं देखना चाहता जिसे आप ने अपनी दावत में बुलाया है। मुझे जाने ही दीजिए।'

    दरजी ने कहा कि उस लँगड़े की यह बात सुन कर हम सब को और भी आश्चर्य हुआ। हमारी समझ में नहीं आ रहा था कि उस नाई से उस लँगड़े को इतनी नाराजगी किस कारण हो सकती है।

    हम लोग उत्सुकतावश उस लँगड़े के चारों ओर जमा हो गए और पूछने लगे कि क्या बात है। उस लँगड़े ने कहा, 'मित्रो, मैं इसी कमबख्त नाई के कारण लँगड़ा हुआ हूँ और इस के कारण अन्य विपत्तियाँ भी झेली हैं। मैं ने प्रण किया था कि न केवल इसका मुख न देखूँगा बल्कि यह जहाँ रहेगा वहाँ रहूँगा भी नहीं। मैं बगदाद का रहनेवाला हूँ, मैं ने बगदाद नगर इसीलिए छोड़ा कि यह वहाँ रहता था। अपने नगर को छोड़ कर मैं यहाँ आया, लेकिन यह मेरी जान का दुश्मन यहाँ भी मौजूद है। इसीलिए अब मैं इस सभा या इस नगर में बिल्कुल नहीं ठहर सकता। मुझे आप लोग क्षमा करें। मुझे यह देश छोड़ना पड़ेगा वरना यह दुष्ट न जाने मेरी क्या-क्या दुर्गति करेगा।'

    यह कह कर लँगड़ा अतिथि गृह स्वामी की अनुमति के बगैर ही सभा से बाहर जाने लगा। हम लोगों ने उसे दौड़ कर रोका और दूसरे मकान में ले जा कर भोजन कराया। फिर गृह स्वामी ने कहा कि कृपापूर्वक हमें यह बताएँ कि इस नाई ने आपके साथ क्या दुष्टता की है। वह बड़ी मुश्किल से यह कहानी कहने को तैयार हुआ, लेकिन कहानी सुनाते समय नाई की ओर पीठ करके बैठ गया। नाई भी सिर झुकाए हुए चुपचाप सब कुछ सुनता रहा। लँगड़े ने अपना वृत्तांत इस प्रकार कहा।




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