अलादीन और जादुई चिराग की कहानी (The story of Aladdin and the magic lamp) :- (अलिफ लैला)
अलादीन और जादुई चिराग की कहानी (The story of Aladdin and the magic lamp) :- अलिफ लैला (Alif laila)
चीन की राजधानी में मुस्तफा नाम का एक दरजी रहता था। वह गरीब आदमी था और बड़ी कठिनाई से अपने परिवारवालों का पेट भरता था। उस के पुत्र का नाम अलादीन था जो कुछ काम-काज नहीं करता था सिर्फ खेल-कूद में समय बिताता था। माता-पिता की बातों की उपेक्षा कर के सवेरे ही घर से निकल जाता और अपनी ही तरह के आवारा लड़कों के साथ दिन भर खेलता रहता। वह कुछ बड़ा हुआ तो उस के पिता ने उसे अपना काम सिखाने के लिए अपनी दुकान पर बिठाना शुरू किया किंतु न प्यार से न मार से, उसे कुछ भी सिखाया न जा सका। वह पिता की आँख बचा कर दुकान से भाग जाता और दिन भर खेल-कूद में बिता कर शाम को घर लौटता और मार खाता। मुस्तफा बहुत खीझता और परेशान होता कि मेरे मरने के बाद यह क्या करेगा। इसी चिंता में वह बीमार हो गया और कुछ महीनों बाद उस की मृत्यु हो गई।
अलादीन की माँ जानती थी कि अलादीन से दुकान न चल सकेगी इसलिए उस ने दुकान बेच दी और रूई खरीद कर सूत कातने का धंधा करने लगी। बूढ़ी माँ के इस कष्ट का भी अलादीन पर कोई प्रभाव न पड़ा। जब वह उस से कुछ काम करने को कहती तो वह उस से गाली-गलौज और झगड़ा करता। उस का साथ तो आवारा लोगों का था कि वह किसी भले आदमी की बात भी नहीं सुनता था।
कुछ दिन और बीते। अलादीन चौदह वर्ष का हो गया किंतु उस में बिल्कुल बुद्धि न आई, उसे यह विचार तक नहीं आया कि कुछ कमाई करके अपना और माँ का पेट पालना उस का कर्तव्य है। एक दिन वह बाजार में खिलंदड़ापन कर रहा था कि एक परदेशी ने कुछ देर तक उसे गौर से देखा और फिर उस के बारे में पूछताछ की कि यह किसका लड़का है और कहाँ रहता है।
वास्तव में वह परदेशी अफ्रीका का रहनेवाला एक जादूगर था और एक खास उद्देश्य से चीन आया हुआ था। वह जादू के अलावा रमल इत्यादि कई और विद्याएँ भी जानता था। वह जिस काम के लिए आया था उस में सहायता देने के लिए उसे यही लड़का उपयुक्त मालूम हुआ। एक दिन अकेले में अलादीन को पा कर वह बोला, बेटे, तुम मुस्तफा दरजी के लड़के तो नहीं हो? उस ने कहा, हूँ तो, किंतु कई वर्ष पूर्व मेरे पिता का देहांत हो गया है। यह सुन कर अजनबी ने उसे खींच कर अपने सीने से लगा लिया और खूब प्यार किया और आहें भर कर रोने लगा। अलादीन को इस पर आश्चर्य हुआ और उस ने पूछा कि तुम क्यों रो रहे हो।
जादूगर आहें भरता हुआ बोला, हाय बेटा, क्या कहूँ। तुम्हारा पिता मेरा बड़ा भाई था। मैं कई वर्षों तक देश-विदेश की यात्रा करने के बाद चीन आया हूँ। इस नगर में आने का मेरा उद्देश्य यही था कि मैं अपने बड़े भाई से मिलूँ। मैं इस खयाल से बहुत खुश था और मुझे विश्वास था कि इतने लंबे समय के बाद मुझे देख कर वे भी बड़े प्रसन्न होंगे। तुम्हारे मुँह से उनकी मृत्यु का समाचार सुन कर मुझे ऐसा दुख हुआ है जो कहा नहीं जा सकता। मेरे यहाँ आने का उद्देश्य तो मिट्टी में मिल गया और मार्ग का सारा श्रम वृथा हुआ। अब मेरी भगवान से प्रार्थना है कि तुम्हें लंबी उम्र दे। मैं तुम में तुम्हारे पिता के सारे हाव-भाव और चाल-ढाल देखता हूँ। तुम्हारी सूरत भी उनसे मिलती है, तुम्हें देख कर मुझे बड़ा संतोष होता है। यह कह कर उस ने जेब से कुछ पैसे निकाले और उसे दे कर कहा, बेटा, तुम्हारी माँ कहाँ रहती है? तुम उन से मेरा सलाम कहना और कहना कि कल अवकाश मिलने पर मैं तुम्हारे घर अवश्य आऊँगा और फिर उस जगह पर बैठूँगा जहाँ भाई साहब बैठते थे और इस तरह मन को संतोष दूँगा। अलादीन ने उसे अपने घर का पता बता दिया।
जादूगर के जाने के बाद अलादीन माँ के पास पहुँचा और बोला, अम्मा, क्या मेरे कोई चचा भी है। माँ ने इस से इनकार किया तो वह बोला, अभी एक आदमी मुझ से कह रहा था कि मैं तुम्हारा चचा हूँ। जब मैं ने उसे पिताजी के मरने की बात बताई तो वह मुझे गले लगा कर बहुत रोया और उस ने मुझे बहुत प्यार भी किया और पैसे भी दिए। उस ने तुम्हें सलाम कहा है और कहा है कि कल फुरसत मिली तो आऊँगा और उस जगह बैठ कर अपने मन को संतोष दूँगा जहाँ मेरा भाई बैठता था। उस की माँ ने कहा, तुम्हारे पिता का तो एक ही भाई था जो उस के जीवनकाल ही में मर गया। मैं ने तुम्हारे पिता से किसी और भाई के बारे में कुछ नहीं सुना।
दूसरे दिन अलादीन बाजार में अन्य लड़कों के साथ खेल रहा था तो उसे वही जादूगर मिला। उसे गले से लगा कर दो अशर्फियाँ दीं और कहा, इनसे खाद्य सामग्री ले कर अपनी माँ से खाना पकवा रखना, मैं शाम को तुम्हारे घर आऊँगा और हम सब लोग मिल कर भोजन करेंगे। तुम एक बार फिर अपने घर का ठीक-ठीक पता बताओ जिस से मैं शाम को वहाँ पहुँच सकूँ। अलादीन ने समझा कर पूरा पता बता दिया और जादूगर चला गया। अलादीन भी तुरंत अपने घर गया और उस ने अपनी माँ को दो अशर्फियाँ दे कर सारा हाल बताया। उस की माँ बाजार से अच्छी खाद्य सामग्री लाई और पड़ोसियों से पकाने और खाने के लिए अच्छे बरतन उधार माँग कर सारी दोपहर और तीसरे पहर भोजन बनाने में लगी रही।
भोजन तैयार होने पर उस ने अलादीन से कहा, अब शाम हो गई है। तुम्हारा चचा मकान की तलाश में भटक रहा होगा, तुम बाजार जा कर उसे अपने घर ले आओ। अलादीन ने जादूगर को अच्छी तरह घर का पता बताया था फिर भी वह उसे लेने के लिए उठा। किंतु द्वार पर पहुँच कर उसे लगा जैसे कोई दरवाजा खुलवा रहा है। दरवाजा खोलने पर उस ने देखा कि वही जादूगर दो बोतल शराब और कुछ फल हाथों में लिए खड़ा है। उस ने यह चीजें अलादीन को दीं और खुद मकान के अंदर चला गया। उस ने अलादीन की माँ को नम्रतापूर्वक नमस्कार किया और उस से पूछा कि मेरा भाई किस जगह बैठा करता था। उस ने जादूगर को वह जगह दिखा दी।
जादूगर ने वहाँ जा कर सिर झुकाया, फिर उस जगह को कई बार चूमा। इस के बाद वह रोते हुए कहने लगा, हाय हाय, मैं कैसा भाग्यहीन हूँ, भाई साहब। मैं इतनी दूर से यात्रा में तरह-तरह का कष्ट उठा कर यहाँ इसीलिए आया था कि तुम्हारे दर्शन करूँ। किंतु तुम्हारे दर्शन मेरे भाग्य में न थे, तुम पहले ही महायात्रा पर चले गए। अलादीन की माँ ने उसे उसी जगह बैठने को कहा तो वह बोला कि मैं अपने भाई की जगह कैसे बैठ सकता हूँ। अलादीन की माँ ने इस बारे में और आग्रह न किया और कहा, जहाँ जी चाहे बैठो। वह एक जगह बैठ गया और उस ने बातचीत शुरू कर दी।
उस ने कहा, भाभी, तुम्हें आश्चर्य तो हो रहा होगा कि यह कौन है लेकिन मैं तुम्हें सारी बात बताए देता हूँ। मैं इसी नगर में पैदा हुआ था किंतु चालीस वर्ष पूर्व मैं ने यह शहर छोड़ दिया। पहले मैं हिंदोस्तान गया। फिर फारस गया और इस के बाद मिस्र देश। इन महान देशों में कई वर्षों तक रह कर मैं अफ्रीका के बड़े देशों में जा कर रहा। वहाँ मैं ने देखे कि बड़े अच्छे लोग रहते हैं इसलिए मैं वहीं जा कर बस गया। इस के बावजूद मैं अपने जन्मस्थान को नहीं भूला। मुझे परिवारवालों और इष्ट मित्रों की बड़ी याद आती रही, विशेषतः अपने बड़े भाई की। मेरी सदैव आकांक्षा बनी रही कि जा कर उन से मिलूँ इस बार मैं ने अपना कारोबार गुमाश्तों के सुपुर्द कर दिया और लंबी यात्रा करके यहाँ आया तो यह कुसमाचार मिला कि वे परलोकवासी हो गए हैं। इस से मुझे इतना दुख हुआ जिस का मैं वर्णन नहीं कर सकता। कितने दुख की बात है कि मैं ने इतनी लंबी यात्रा के कष्ट उठाए और सब कुछ बेकार गया। खैर, मुझे अलादीन को देख कर तसल्ली हुई। यह मेरे प्रिय भाई की निशानी है। इसीलिए इसे पहली ही बार देख कर समझ लिया कि यह मेरे भतीजे के अलावा और कोई नहीं हो सकता। इस ने तुम्हें यह भी बताया होगा कि इस के पिता की मृत्यु की बात सुन कर मुझे कितना रोना आया था। भगवान को धन्यवाद है कि मैं ने उन के पुत्र को देखा, जैसे उन्हीं को दूसरे रूप में देख लिया।
यह बातें सुन कर अलादीन की माँ का भी जी भर आया और वह अपने पति की याद में फूट-फूट कर रोने लगी। अब जादूगर ने यह बातें छोड़ दीं और अलादीन से पूछा, बेटा, तुम जीविका के लिए क्या करते हो, तुमने कौन-सा धंधा अपनाया है और कौन-सा हुनर सीखा है? अलादीन ने शर्मा कर गर्दन झुका ली। उस की माँ ने कहा, यह बिल्कुल निकम्मा है। इस के पिता ने बहुत कोशिश की कि यह कुछ सीख जाए लेकिन इस ने कुछ न सीखा। इस ने सारा समय खेल-कूद ही में बरबाद किया है। आप ने भी इसे खेलते ही पाया होगा। आप इसे समझाएँ कि कुछ ढंग की बात सीखे और किसी कारआमद काम के सीखने में जी लगाए। इसे अच्छी तरह मालूम है कि इस का बाप कोई जायदाद नहीं छोड़ गया है। इसे यह भी मालूम है कि मैं दिन भर चरखा कातती हूँ और किसी प्रकार रूखी-सूखी का जुगाड़ करती हुँ। कई बार मैं ने झुँझला कर चाहा कि इसे घर से निकाल बाहर करूँ ताकि भूखों मरने लगे तो कुछ काम-काज करे। लेकिन अपना ही पैदा किया हुआ बेटा होने की वजह से इस के साथ निर्दयता नहीं कर सकती। यह कह कर बुढ़िया फिर रोने लगी। जादूगर ने अलादीन से कहा, बेटा, क्या तुम्हारी माँ ठीक कह रही है? तुम अब बड़े हो गए हो। तुम्हें चाहिए कि कोई व्यापार करो। जरूरी नहीं है कि कोई एक खास काम ही करो, जिस पेशे में तुम्हारा जी लगता हो वही शुरू करो। तुम अपने मन की बात खुल कर मुझ से कहो, मुझ से जितनी भी हो सकेगी तुम्हारी सहायता करूँगा।
अलादीन इतना सुन कर भी चुप रहा। जादूगर ने फिर कहा, बेटे, अगर तुम चाहते हो कि ऐसा काम करो जिस में धन और प्रतिष्ठा दोनों मिले तो वह बजाजी का काम है। तुम चाहो तो मैं तुम्हें बजाजे की बड़ी दुकान खुलवा दूँ जिस में देश-विदेश के थान और तरह-तरह का कपड़ा हो और तुम उस में आराम से बैठ कर धन कमाओ। मैं सिर्फ यह चाहता हूँ कि तुम अपने मन की बात खुल कर मुझ से करो ताकि मैं तुम्हारी इच्छा के अनुसार तुम्हारी सहायता कर सकूँ। अलादीन ने इशारे से कहा कि मुझे बजाजी का काम पसंद है और वही करना चाहता हूँ। उस ने देखा था कि कपड़े के व्यापारी बड़ी शान-शौकत से रहते हैं, अच्छे-अच्छे कपड़े पहनते हैं और भाँति-भाँति का स्वादिष्ट भोजन करते हैं। जादूगर ने कहा, अगर तुम्हें यह काम पसंद है तो बड़ी अच्छी बात है। कल मैं तुम्हारे लिए अच्छे कपड़े खरीद दूँगा क्योंकि इन कपड़ों में तुम्हारा व्यापारी समाज में प्रवेश नहीं हो सकेगा। मैं तुम्हारा परिचय एक बड़े व्यापारी से करा दूँगा और एक दुकान तुम्हें किराए पर ले दूँगा।
अलादीन की माँ, जो अब तक उस के अलादीन के चचा होने पर विश्वास न करती थी, उस की बातें सुन कर खुश हो गई। उस ने अलादीन का हाथ उसे पकड़ाया और कहा, अब तुम्हीं इसे राह पर लगाओगे तो लगेगा। यह कह कर उस ने भोजन निकाल कर परोसा और तीनों ने जी भर कर खाना खाया और बाद में मद्य, फल आदि खाए। फिर जादूगर कहने लगा कि अब रात काफी हो गई है, मैं जाता हूँ। कल सुबह फिर आऊँगा।
दूसरे दिन वह फिर आया और अलादीन को उस दुकान में ले गया जहाँ सिले-सिलाऐ कपड़े बिकते थे। उस ने अलादीन से कहा कि तुम्हें इन में से जो भी कपड़े का जोड़ा पसंद हो वह ले लो, मैं उस के दाम दे दूँगा। अलादीन यह सोच कर बहुत खुश हुआ कि उस का चचा उस के लिए यह करने को तैयार है। उस ने एक मूल्यवान जोड़ा पसंद किया। जादूगर ने उसे वह दिलवा दिया और उस से मेल खाते हुए जूते, पटका, पगड़ी आदि भी दिलवा दी। अलादीन ने सारी चीजें पहन लीं और शीशे में अपने को देखा तो बहुत खुश हुआ। फिर जादूगर उसे उस बड़े बाजार में ले गया जहाँ बड़े-बड़े व्यापारियों का व्यवसाय था। उस ने अलादीन से कहा, अगर तुम चाहते हो कि इन लोगों की तरह बनो तो यहाँ अक्सर आया करो और इन लोगों के तौर-तरीके देखा करो। फिर उस ने अलादीन को शाही इमारतें और अन्य दर्शनीय स्थल दिखाए।
इस के बाद वह अलादीन को उस सराय में ले गया जहाँ वह ठहरा था। वहाँ कई व्यापारी भी ठहरे थे जिन से जादूगर ने मित्रता कर ली थी। जादूगर ने अलादीन को उन सब से मिलाया। सब ने एक साथ भोजन किया और सब लोग देर तक बातें करते रहे। शाम हुई तो अलादीन ने घर वापस जाना चाहा। जादूगर ने कहा कि तुम्हारा अकेले जाना ठीक नहीं है, मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ। यह कह कर वह उसे उस के घर ले आया। अलादीन की माँ ने अपने बेटे को बहुमूल्य वस्त्र पहने देखा तो अति प्रसन्न हुई और जादूगर की बड़ी प्रशंसा करने लगी और कहने लगी कि मेरा बेटा तो नालायक है फिर भी तुम इस पर इतने कृपालु हो। जादूगर बोला, यह अच्छा लड़का है। अच्छी राह चलेगा। कल तो शुक्रवार है, बाजार बंद रहेंगे। परसों मैं इस के लिए दुकान किराए पर लेने और उस में माल रखने का काम करूँगा। कल सभी व्यापारी सैर-तमाशे को जाएँगे। मैं भी इसे बड़े बागों और उत्तम स्थानों की सैर के लिए जाऊँगा।
यह कह कर जादूगर अपनी सराय को वापस चला गया। अलादीन बड़ा खुश था कि उसे शहर के बाहर के बड़े बाग देखने को मिलेंगे। अभी तक उस ने अपने घर के आसपास की गलियाँ और बाजार ही देखे थे और शहर के बाहर के बागों या गाँवों में कभी नहीं गया था। दूसरे दिन सुबह ही से कपड़े पहन कर वह जादूगर की प्रतीक्षा करने लगा। काफी देर तक वह न आया तो अलादीन दरवाजे के बाहर बैठ कर उस की प्रतीक्षा करने लगा। थोड़ी देर में जादूगर आता दिखाई दिया। अलादीन ने घर के अंदर आ कर माँ से कहा कि चचा आ गया है और मैं उस के साथ जा रहा हूँ।
वह आगे बढ़ कर रास्ते ही में जादूगर से मिला। जादूगर ने उस से प्यार से बातें की और कहा कि मैं तुम्हें आज बड़े शानदार भवन और सुंदर उद्यान दिखाऊँगा। दोनों आगे बढ़े और जादूगर ने उसे सारी सुंदर इमारतें और बाग-बगीचे दिखाए। अलादीन उन सब को देख कर बहुत खुश हुआ।
चलते-चलते वे लोग काफी दूर निकल गए और उन्हें थकन महसूस होने लगी। किंतु जादूगर को अपने काम के लिए अलादीन को आगे ले जाना था इसलिए एक जल स्रोत के पास बैठ कर उस ने एक पोटली निकाली जिस में बहुत से स्वादिष्ट फल और कुलचे थे। उस ने आधे कुलचे अलादीन को दिए और कहा कि फल जितने भी चाहो तुम खाओ। इस बीच वह तरह-तरह की उपदेश की बातें भी करता रहा जिस से मालूम हो कि उस से बढ़ कर अलादीन का और कोई हितचिंतक नहीं है। वह कहने लगा, बेटे, देखो अब तुम बड़े हो गए हो। अब तुम्हें बालकों के साथ खेल-कूद करना शोभा नहीं देता। तुम्हें चाहिए कि समझदार लोगों का साथ करो और उन के रंग-ढंग सीखो। उन्हीं की राह पर चलने से तुम्हें मान-प्रतिष्ठा मिलेगी और तुम धनवान भी हो जाओगे। इसी तरह की बहुत-सी बातें उस ने कीं।
नाश्ता करने के बाद जादूगर फिर अलादीन को आगे ले चला और नगर से बहुत दूर पर वे लोग पहुँच गए। अलादीन इतनी दूर कभी भी नहीं आया था। वह थक भी गया था। वह पूछने लगा कि और कितनी दूर जाना है। जादूगर बोला, थोड़ी ही दूर पर ऐसा सुंदर बाग है जिसके आगे अभी तक देखे हुए बाग कुछ भी नहीं हैं। जब तुम उसे देखोगे तो स्वयं ही उस में दौड़ कर चले जाओगे। इसी तरह वह उसे दम-दिलासा देता हुआ बड़ी दूर ले गया। वह उस का जी बहलाने के लिए मनोरंजक कहानियाँ भी कहता जाता था। अंत में वे एक घने जंगल में जा पहुँचे जो दो पर्वतों के बीच में था।
यही वह स्थान था जहाँ वह दुष्ट जादूगर अलादीन को लाना चाहता था। यहीं उस का वह मनोरथ सिद्ध होना था जिसके लिए वह अफ्रीका से यहाँ तक भाँति-भाँति के कष्ट उठा कर आया था। यहाँ पहुँच कर वह बोला, यही वह सुंदर बाग है जिसका मैं ने जिक्र किया था किंतु वह आसानी से दिखाई नहीं देता। उस के लिए तरकीब करनी पड़ती है। आग जला कर उस में सुगंधियाँ डालनी पड़ती हैं। तुम यहाँ सूखी लकड़ियाँ इकट्ठी करो, मैं कहीं से आग ले कर आता हूँ। अलादीन ने लकड़ियाँ इकट्ठी कीं और जादूगर ने कहीं से आग ला कर उन्हें सुलगाया। वे जलने लगीं तो उस ने कुछ सुगंधित वस्तुएँ आग में छोड़ीं और मंत्र पढ़ा। कुछ देर में भूचाल आया और जहाँ वे खड़े थे वहाँ लगभग एक वर्ग गज का पत्थर दिखाई दिया जिसके बीच में लोहे का एक कड़ा लगा हुआ था।
अलादीन डर कर भागने लगा तो जादूगर ने उसे पकड़ कर जोर से एक तमाचा उस के मुँह पर मारा जिस से उस के दाँतों से खून निकलने लगा। अलादीन रो कर कहने लगा, मैं ने क्या अपराध किया जिस पर आप ने मुझे मारा? जादूगर उसे पुचकारते हुए बोला, मैं तुम्हारे पिता की जगह हूँ।
मैं ने बगैर बात भी तुम्हें मार दिया तो क्या हुआ। मैं तो तुम्हारी भलाई के लिए ही यह सब कर रहा हूँ जिस से तुम बड़े आदमी बनो और तुम इसी से भाग रहे हो। अब मैं जैसा कहता जाऊँ वैसा ही करते चलो। इस से तुम्हारा लाभ ही लाभ होगा। इसी प्रकार उस ने बहुत कुछ दिलासा देने के लिए कहा, जिस से अलादीन आश्वस्त हो गया। जादूगर ने उसे फिर समझाया, तुमने देखा कि मेरे मंत्र पढ़ने से भूचाल आ गया। अब तुम समझ लो कि इस पत्थर के नीचे एक गुप्त वस्तु तुम्हारे लिए रखी है जिस से तुम अत्यंत धनवान बन जाओगे।
अलादीन ने कहा, वह कैसे होगा? जादूगर बोला, बात यह है कि तुम्हारे अलावा कोई और आदमी उस चीज को हाथ भी नहीं लगा सकता। तुम यह पत्थर उठाओ और जो रास्ता दिखाई दे उस पर चले जाओ। लेकिन पहले मुझ से कुछ जरूरी बातें समझ लो। मैं तुम से यह सब इसलिए कह रहा हूँ कि वह दुर्लभ वस्तु तुम्हारे ही लिए है। अलादीन ने जादूगर की बातें मानना स्वीकार किया। न करता तो भी कोई रास्ता नहीं था। जादूगर ने उसे फिर प्यार से गले लगाया और कहा, तुम बड़े अच्छे लड़के हो। यह देखो यह एक लोहे का छल्ला है। इसे पहन कर इस शिला को उठाओ तो वह आसानी से उठ आएगी। अलादीन बोला, मैं इसे अकेला कैसे उठाऊँगा, आप भी हाथ लगाएँ। जादूगर बोला, अगर मैं इसे हाथ लगा पाता तो खुद ही उठा लेता, तुम से उठाने को क्यों कहता। यह सब मंत्रों की बात है, तुम नहीं समझ सकोगे। तुम भगवान का नाम ले कर उठाओ तो, यह तुरंत उठ जाएगी।
अलादीन ने कड़े को पकड़ कर जोर लगाया तो शिला बगैर दिक्कत के उठ आई। नीचे तीन-चार हाथ गहरा गढ़ा जो नीचे गई थीं। जादूगर ने अलादीन से कहा, बेटे, अब जो कुछ मैं कहूँ उसे ध्यान से सुनना और याद रखना। जब तुम इस सीढ़ी से नीचे उतरोगे तो आगे जा कर एक बड़ा सुंदर भवन मिलेगा। उस में तीन समानांतर दालान हैं। वहाँ कई ताँबे की देगें रखी हैं। उनमें अशर्फियाँ और रुपए भरे हैं। लेकिन तुम उन्हें हाथ न लगाना क्योंकि आगे तुम्हारे लिए इस से भी अच्छी चीज मिलेगी। जब तुम पहले दालान में जाओ तो अपने कपड़ों को कस कर अपने बदन से बाँध लेना। दूसरे और तीसरे दालान में भी इसी तरह कपड़ों को बदन से कसे हुए प्रवेश करना। खबरदार, दालान की दीवारों से तुम्हारा कोई अंग या तुम्हारा कपड़ा भी नहीं छूना चाहिए। इस बात का सब से पहले ध्यान रखना जरूरी है।
बदन या कपड़ा दीवारों से छुआ तो तुम वहीं भस्म हो जाओगे और तुम्हारी माँ तुम्हारे लिए रोती-पीटती रह जाएगी।
जब तुम तीसरे दालान से आगे बढ़ोगे तो एक बाग मिलेगा जिस में तरह-तरह से फलदार वृक्ष हैं।
अलादीन हिम्मत करके गढ़े में कूद पड़ा। सीढ़ियों से उतर कर वह पहले दालान के सामने पहुँचा। वहाँ उस ने अपने कपड़े को कस कर अपने शरीर से लपेट कर बाँध दिया और डरते-डरते दालान में प्रवेश किया कि कहीं उस का कोई वस्त्र दीवार से न छू जाए। दूसरे और तीसरे दालान को भी उस ने इसी तरह डरते-डरते पार किया और फिर बाग में आ कर चैन की साँस ली।
बाग के रास्ते से आगे बढ़ता हुआ वह ऊँचे चबूतरे पर बने कमरे में गया तो देखा एक ताक में एक दीया जल रहा है। उस ने उस का तेल-बत्ती फेंक कर उसे वस्त्रों के अंदर सीने से बाँध लिया। फिर वहाँ से उतर कर बाग के रास्ते वापस आने लगा और वहाँ के पेड़ों के फल तोड़े। वे दूर से तो लाल, पीले, हरे, आदि रंगों के फल लगते थे किंतु खेलने के लिए अपनी जेबों में तथा और जहाँ भी संभव हुआ उस ने यह रत्न भर लिए। उस ने अपनी ढीली आस्तीनों में भी यथासंभव फल भर लिए और कलाइयों के पास आस्तीनों को कस कर बाँध दिया ताकि फल गिर न पड़ें। अब यह हालत हो गई कि अंदर रखे रत्नों के कारण उस के कपड़े चारों ओर से फूल गए। किसी तरह दालान की दीवारों से बचता-बचाता एक-एक कदम सँभाल कर रखता हुआ वह सीढ़ियाँ चढ़ कर गढ़े में पहुँचा। वहाँ जा कर उस ने आवाज दी, चचा, मैं दीया ले कर आ गया हूँ, तुम मुझे हाथ बढ़ा कर बाहर निकालो।
जादूगर ने कहा, बेटा, मैं तुम्हें अभी निकालता हूँ लेकिन पहले तुम मुझे दीया दे दो। अलादीन ने कहा, मैं बाहर आ कर ही दीया निकाल सकता हूँ, इस जगह नहीं निकाल सकता। तुम मुझे बाहर निकालो। जादूगर ने कहा, नहीं, पहले चिराग दो, फिर मैं तुम्हें बाहर निकालूँगा। अब यही बहस शुरू हो गई। अलादीन कहता था कि बाहर निकालो तब चिराग दूँगा, जादूगर कहता था पहले चिराग दो फिर बाहर निकालूँगा। दरअसल अलादीन अपनी कठिनाई बता भी नहीं पा रहा था। चिराग उस ने सीने के पास रख कर उस के चारों ओर फल भर लिए थ। वैसे भी उस की आस्तीनें फलों के भार से फूली हुई थीं और गढ़े में इतनी जगह नहीं थी कि वह फलों (रत्नों) को बाहर निकाल कर सीने के पास से चिराग निकालता। गढ़े में जगह कम होने से उस का दम घुटा जा रहा था और वैसे भी थकावट से उस का बुरा हाल था।
जादूगर की समझ में भी यह बात न आई और वह अलादीन की बातों को उस की जिद समझ कर इतना क्रुद्ध हुआ कि जोर से चिल्लाया, तू मुझे चिराग नहीं देता तो यहीं चिराग को लिए मर जा। यह कह कर उस ने मंत्र पढ़ा जिस से शिला अपने आप उठ कर गढ़े के मुँह पर आ गई और उस के ऊपर मिट्टी भी इस तरह बराबरी से बिछ गई कि शिला का कोई चिह्न ऊपर से नहीं दिखाई देता था। जादूगर को चिराग तो नहीं मिला जिसे पाने के लिए उस ने यह सारा खटराग किया था किंतु उसे यह डर जरूर हुआ कि अलादीन गढ़े में मर जायगा और उस की मौत के लिए उसी को पकड़ा जाएगा। कारण यह था कि अलादीन की माँ रोती-पीटती और कई दूसरे लोगों ने भी उस के साथ अलादीन को वीरान जंगल की ओर जाते देखा था। वह सीधा अपनी सराय में गया और उसी दिन अपना सामान उठा कर अफ्रीका के लिए रवाना हो गया।
यह तो पहले ही कहा जा चुका है कि यह आदमी न तो मुस्तफा का भाई था न अलादीन का चचा। वह अफ्रीका का ही निवासी था। उस ने चालीस वर्ष तक वहाँ पर जादू सीखा। इस के अलावा ज्योतिष, रमल आदि कई विद्याएँ भी उस ने पढ़ीं जिसके कारण उसको गुप्त रहस्यों की जानकारी हो गई थी। इन्हीं विद्याओं के बल पर उसे ज्ञात हुआ कि चीन देश में एक स्थान पर एक ऐसा जादू का चिराग है जिसके स्वामी के अधीन कई जिन्न हो जाते हैं। इसी कारण वह अफ्रीका से इतनी लंबी यात्रा कर के चीन आया था और अपनी रहस्यमयी विद्याओं से पता लगाते-लगाते अलादीन के नगर में पहुँचा था। इन विद्याओं से उसे यह भी मालूम हुआ कि उस चिराग के पास किसी पूर्णतः निष्कपट बालक के अलावा और कोई नहीं जा सकता, कम से कम वह जादूगर खुद तो हरगिज नहीं जा सकता था। एक बात यह भी थी कि जादूगर खुद मोटा-ताजा था और चाहे जितने कसे कपड़े पहनता दालानों की दीवारों से वह छू ही जाता और वहीं भस्म हो कर रह जाता। उस ने अलादीन को इसीलिए पटाया था और उस पर इतना धन इसलिए व्यय किया था कि अलादीन के द्वारा उसे चिराग की प्राप्ति हो जाए। उस का यह भी इरादा था कि अलादीन से चिराग ले कर अपने मंत्रबल से उसे वहीं मार डाले और उस की आकस्मिक मृत्यु की बात कह कर निर्दोष बना हुआ अफ्रीका चला जाए।
जब अलादीन ने उसे चिराग न दिया, या वह चिराग न दे सका तो जादूगर निराशा और क्रोध के कारण यह भी भूल गया कि उस का दिया हुआ जादुई छल्ला अभी अलादीन के पास है। जादूगर को शायद खुद उस छल्ले की इतनी जरूरत भी न थी, इसलिए वह छल्ले को भूल गया।
किंतु अलादीन का जीवन इसी छल्ले के कारण बचा। जादूगर तो मंत्रबल से गढ़े पर शिला रख कर चला गया, अलादीन यही समझता रहा कि मेरा चचा बाहर खड़ा है। वह लगातार रोता-पीटता और चचा की मनुहार करता रहा कि मुझे वापस निकाल लीजिए, मैं किसी तरह सीने के ऊपर से चिराग निकाल कर आप को दे दूँगा।, इस के बाद ही मुझे गढ़े से निकालिएगा। लेकिन अब उस की कौन सुनता। जादूगर तो इतने में मीलों आगे चला गया था। बेचारा अलादीन घंटों तक चिल्लाता रहा जब तक प्यास ने उस का गला बंद नहीं कर दिया।
अंत में फिर वह सीढ़ी से उतर कर दालान के बाहर बैठ गया। यहाँ कम से कम उस के हाथ-पाँव हिलाने की जगह तो थी। वह यह देख कर और परेशान हुआ कि दालान, बाग आदि धीरे-धीरे गायब होने लगे क्योंकि वे सब जादू के खेल थे। हाँ, उस के पास चिराग और बटोरे हुए रत्न जैसे के तैसे थे। किंतु अब वह इनका क्या करता। वह अँधेरे में इधर-उधर भटकने लगा और फूट-फूट कर रोने लगा। अंत में वह एक जगह थक कर बैठ गया। उस ने सोना चाहा किंतु उसे नींद भी नहीं आई। एक पूरा दिन इसी तरह गुजर गया हालाँकि अलादीन को दिन-रात का अंतर क्या मालूम होता।
अब उस ने समझ लिया कि अब मुझे यहीं भूखे-प्यासे मर जाना है और मेरी माँ को मेरी कोई खबर नहीं लगेगी और वह भी रो-रो कर मर जाएगी। वह निपट निराशा में अपने हाथ मलने लगा। इसी में उस के हाथ का छल्ला किसी चीज से रगड़ खा गया और इस के साथ ही एक महाभयानक जिन्न उस के सामने प्रकट हो गया और बोला, मेरे लिए क्या आज्ञा है? मैं आप का गुलाम हूँ। अलादीन भय के मारे कुछ बोल नहीं सका तो जिन्न ने फिर कहा, स्वामी, आप डरें नहीं। मैं उस आदमी का सेवक हूँ जो यह लोहे का छल्ला पहने हुए है। उस की आज्ञा पर मैं सब कुछ कर सकता हूँ। अलादीन जीवन से निराश तो हो ही चुका था, डर को छोड़ कर बोला, अगर ऐसे ही बलवान हो तो मुझे यहाँ से निकाल कर ऐसी जगह खड़ा कर दो जहाँ से मैं अपने घर को जा सकूँ। जिन्न ने एक क्षण ही में उसे उस के सारे सामान के साथ बाहर निकाल दिया और गायब हो गया।
अलादीन को बड़ा आश्चर्य हुआ कि यह क्या हो रहा है। उस ने आँखें मल कर चारों ओर देखा तो पहचान गया कि यह वही रास्ता है जिस से वह अपने नगर से आया था। बहुत देर तक इसी आश्चर्य में पड़ा रहा कि उस अँधेरे से मैं किस प्रकार बाहर निकला और वह महाभयानक आदमी कौन था जो स्वयं को मेरा दास कहता था। लेकिन अधिक सोच-विचार से लाभ भी क्या था। वह दो दिन का भूखा-प्यासा था और यह भी भूल गया था कि रत्नों को फेंक-फाक कर अपना बोझ हलका करे। उसी तरह लदा-फँदा धीरे-धीरे रेंगता हुआ-सा अपने घर की ओर चलने लगा और दो-तीन घंटे में वहाँ पहुँच गया।
घर पहुँच कर उसे बड़ी प्रसन्नता हुई। किंतु वह माँ से कुछ कह न सका, भूख, प्यास और कमजोरी की वजह से बेहोश हो कर गिर पड़ा। उस की माँ भी उस की चिंता में दो दिन से सोई न थी। उसे बेहोश होते देख कर दौड़ी और उस के मुँह पानी के छींटे दे कर और पंखा करके उसे थोड़ी देर में होश में लाई। होश में आ कर उस ने माँ से कहा कि कुछ खाने को लाओ, मैं ने दो-तीन दिन से कुछ खाया नहीं है। खाना तैयार था और उस की माँ उसे ले भी आई और बोली, बेटा, थोड़ा-सा खाना। बहुत भूख में एकदम बहुत-सा खा लेने से मृत्यु तक हो सकती है। अलादीन ने थोड़ा-सा खा कर थोड़ा पानी पिया और बोला, मैं भगवान की दया ही से जीवित बचा। जिस आदमी को तुम अपना देवर समझे थी और जिसके हाथ में तुमने मुझे सौंपा था उस ने मेरे साथ बड़ी दुश्मनी की और अपनी समझ में मुझे जान से मार कर चला गया था। वह मुझ से झूठा स्नेह दिखा कर मुझ से अपना कोई काम निकलवा कर फिर मेरी हत्या कर देना चाहता था।
थोड़ी देर आराम करके अलादीन ने विस्तृत रूप से अपने ऊपर बीती हुई बातें अपनी माँ को बताईं। यह सुन कर उस की माँ ने जादूगर को बहुत गालियाँ दीं और ईश्वर को धन्यवाद दिया कि अलादीन सही-सलामत घर लौट आया। उसे अलादीन ने फल लगनेवाले रत्न भी दिए।
वह बेचारी भी उनका मूल्य नहीं जानती थी इसलिए उस ने उन्हें एक ओर रख दिया। किंतु उसे यह देख कर आश्चर्य हुआ कि अँधेरे में वे रोशनी देने लगते हैं। खैर, इन बातों पर अधिक ध्यान देना उस ने जरूरी न समझा। बेटे के अलग होने पर वह भी दो रातों से नहीं सोई थी और रोते-रोते निढाल हो गई थी। अब बेटा वापस आ गया तो वह घर के एक कोने में लेटी रही और गहरी नींद सो गई।
अलादीन भी सो गया और सारी रात सोता रहा। सुबह वह जागा तो भूख से उस का बुरा हाल हो गया था। उस ने माँ से कहा कि मुझे कुछ खाने को दो। वह बोली, इस समय तो घर में कुछ भी नहीं है। कल मैं ने कुछ सूत काता था, उसे ले कर बाजार जाती हूँ। उसे बेच कर कुछ खाने को खरीदूँगी। अलादीन को कुछ याद आया। उस ने कहा, सूत बाद में बेच लेना। अभी तो वह ताँबे का दीया ले जाओ जो मैं लाया हूँ। उसे बेच कर कुछ ले आओ। बुढ़िया बोली, अच्छी बात है। लेकिन यह दीया गंदा हो रहा है। मैं इसे साफ करके चमका दूँ तो इस के अधिक दाम मिलेंगे।
यह कहने के बाद बुढ़िया चिराग को साफ करने बैठ गई। उस ने पानी और रेत से उसे साफ करना शुरू किया। ज्यों ही उस ने दीये को जोर से रगड़ा कि एक महाभयानक विशालकाय जिन्न धरती फाड़ कर निकला और बादल की गरज जैसी आवाज में बोला, तुम मुझे क्या आज्ञा देती हो? मैं उस व्यक्ति का दास हूँ जिस के पास यह चिराग होता है। और केवल मैं ही नहीं, बहुत-से दूसरे जिन्न भी उस व्यक्ति के अधीन होते हैं जिस के पास यह चिराग होता है।
बुढ़िया उस भयानक जिन्न को देखते ही डर के मारे बेहोश हो गई। डर तो अलादीन को भी लगा किंतु चूँकि वह पहले भी अँगूठी रगड़ने पर सामने आनेवाले जिन्न को देख चुका था इसलिए वह बेहोश नहीं हुआ। उस ने एक हाथ से अपनी गिरती हुई माँ को सँभाला और दूसरे हाथ में चिराग उठा लिया। फिर उस ने जिन्न को कहा, मैं बहुत भूखा हूँ, मुझे तुरंत भोजन चाहिए। जिन्न यह सुन कर गायब हो गया और दो क्षणों बाद एक बड़ा-सा सोने का थाल अपने सिर पर रख कर प्रकट हो गया। उस ने थाल को भूमि पर रखा। उस में बारह चाँदी की तश्तरियाँ थीं जिन में स्वादिष्ट व्यंजन थे। इस के अलावा यह दोनों हाथों में दो शीशे की सुराहियाँ शराब की और दो चाँदी के गिलास भी लिए था। यह समान रख कर वह गायब हो गया।
अलादीन ने माँ के मुँह पर पानी की छींटे दिए जिस से वह होश में आ गई। अलादीन ने कहा, अम्मा, भय छोड़ कर उठ बैठो। जल्दी से चल कर खाना खा लो नहीं तो वह ठंडा हो जाएगा। वह उठी तो तरह-तरह से स्वादिष्ट व्यंजन देख कर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। वह सोचने लगी कि इतना अच्छा खाना ऐसे बढ़िया बरतनों में किस ने भेज दिया। कहीं ऐसा तो नहीं है कि बादशाह ने हमारी दशा पर तरस खा कर हमें यह चीजें भिजवाई हों। अलादीन ने कहा, अब सोच-विचार मत करो, जल्द आ कर खाना खा लो। फिर मैं तुम्हें इस का पूरा-पूरा हाल बताऊँगा।
वे दोनों रुचिपूर्वक भोजन करने लगे। बुढ़िया यह भी सोचने लगी कि यह बरतन किस चीज के बने हैं क्योंकि उस के खयाल में नहीं आ सकता था कि खाने के बरतन सोने-चाँदी के हो सकते हैं। पेट-भर खाने के बाद भी बहुत-सा भोजन बच गया जिसे उन दोनों ने उठा कर रख दिया और तीन दिन तक खाते रहे। उस दिन खाना खाने के बाद अलादीन ने बताया कि यह भोजन वही जिन्न लाया था जिसे देख कर तुम डर के मारे बेहोश हो गई थीं। जिसके हाथ में वह दीया होता है उस के अधीन वह जिन्न और उस के अतिरिक्त कई और जिन्न भी होते हैं।
उस की माँ ने कहा, मुझे तो इस बात पर विश्वास नहीं होता। और ऐसा हो तो भी इस दिए को किसी को दे डालो या फेंक दो। मैं उस भयानक जिन्न को नहीं देखना चाहती। तुम इस छल्ले को भी निकाल कर फेंक दो। हमें जिन्नों को बुला कर क्या करना है। हम अपने वैसे ही सीधे-सादे अच्छे हैं। अलादीन ने कहा, वाह, तुम भी खूब बात करती हो। छल्ले के जिन्न के कारण तुम मुझे जीता-जागता देख रही हो। चिराग के जिन्न ने भी स्वादिष्ट भोजन ला कर हमारी भूख मिटाई है। तुम यह भी सोचो वह जादूगर, जो मेरा चचा बना हुआ था, इसी चिराग के लिए अफ्रीका से यहाँ की यात्रा करके आया था और मुझे उस गुप्त स्थान में इसी चिराग को लाने को भेजा था।
माँ को अब भी असंतुष्ट देख कर अलादीन ने कहा, तुम इसे या इस के जिन्न को नहीं देखना चाहती तो मैं इसे उठा कर घर के एक अँधेरे कोने में रख दूँगा और अवसर पड़ने पर इसका लाभ उठाऊँगा। तुम भी किसी से इसका उल्लेख न करना। अगर हमारे पड़ोसी इस बात को जान गए तो वे हम से ईर्ष्या करने लगेंगे ओर संभव है कि कोई हमें हानि पहुँचाने के लिए बादशाह से शिकायत कर दे। अब तुम इस दीये को बिल्कुल भूल जाओ, मैं इसे तुम्हारी नजरों से छुपा कर रखूँगा। लेकिन यह जादू का छल्ला मैं अपनी उँगली से अलग नहीं कर सकता। मैं तुम्हें बता चुका हूँ कि इसी छल्ले के कारण मेरी जान बची है वरना मैं गढ़े के अंदर ही घुट-घुट कर मर गया होता। क्या मालूम आगे भी कोई मुसीबत पड़े तो इसी की मदद से मैं उस से छुटकारा पाऊँ। अलादीन की माँ ने कहा, अच्छा भाई, जो चाहो सो करो लेकिन यह ध्यान रखना कि तुम्हारे जिन्न मेरे सामने न आएँ, वरना मैं डर के मारे मर ही जाऊँगी।
इस के बाद माँ-बेटे ने दो दिनों तक बचे हुए भोजन से काम चलाया। इस के बाद फिर भोजन का प्रश्न उठा तो माँ की सलाह से अलादीन ने एक चाँदी की तश्तरी ली और उसे बेचने के लिए बाजार में गया। उस की भेंट एक यहूदी से हुई जो सोने-चाँदी की चीजों का व्यापार करता था। यह यहूदी महाधूर्त था। जो तश्तरी अलादीन के पास थी वह बहुत बड़ी थी और उस पर ऐसी बढ़िया नक्काशी थी कि उस का दाम बहुत अधिक था। अलादीन तो उस का दाम जानता ही नहीं था। यहूदी ने उस से पूछा, कि तुम इसका क्या लोगे तो अलादीन बोला कि जो तुम ठीक समझो वह दे दो, मुझे तो इसका दाम मालूम नहीं है। यहूदी ने देखा कि लड़का बिल्कुल बुद्धू है तो उस ने कहा, मैं इसे एक अशर्फी में ले सकता हूँ। यद्यपि उस का दाम कई अशर्फियाँ थीं जैसा अलादीन को बाद में मालूम हुआ, किंतु अलादीन ने बड़ी खुशी से यह मंजूर कर लिया। यहूदी अब यह सोच कर पछताने लगा कि यह लड़का इतना मूर्ख है तो उसे एक अशर्फी से भी कम क्यों नहीं दिया। कुछ देर विचार करने के बाद वह अलादीन के पीछे दौड़ा कि उस से अपनी अशर्फी ले कर और सस्ता सौदा करे किंतु अलादीन इतनी दूर निकल गया था कि यहूदी की समझ में नहीं आया कि वह किधर गया।
अलादीन के अशर्फी भुना कर कुछ पैसों से भोजन लिया और घर आ कर शेष रकम माँ को दे दी कि उस से अनाज आदि खाद्य वस्तुएँ ला कर खाना पकाने का इंतजाम करे। कई दिनों तक इस तरह काम चला, फिर जब सारा सामान खत्म हो गया तो अलादीन दूसरी रकाबी यहूदी के पास ले गया। पहले यहूदी ने उस के एक अशर्फी से भी कम दाम लगाए किंतु अलादीन झिझका। यहूदी को डर हुआ कि कहीं अलादीन किसी और से उस का दाम न पूछ बैठे। इसलिए उस ने कहा, यह एक अशर्फी की तो नहीं है फिर भी जो दाम मैं एक बार दे चुका हूँ उस में कमी नहीं करूँगा। यह कह कर उस ने उसे एक अशर्फी दे दी।
अलादीन का काम इसी तरह चलता रहा। जब अशर्फी से खरीदा हुआ सामान खत्म हो जाता तो वह एक रकाबी ले कर फिर उसी यहूदी के हाथ बेच आता। इसी तरह धीरे-धीरे सारी चाँदी की रकाबियाँ खत्म हो गईं। फिर वह सोने का थाल ले कर उसी यहूदी के पास गया। उस थाल का मूल्य सैकड़ों अशर्फियों का था किंतु धूर्त यहूदी व्यापारी ने उस के बदले दस अशर्फियाँ दीं। अलादीन उसी से खुश हो गया।
जादूगर के दो दिन के साथ का एक अच्छा असर यह हुआ कि अलादीन खेल में समय बरबाद करने के बजाय बाजार में जा कर व्यापारियों से बातें करने लगा और उन से क्रय-विक्रय के ढंग सीखने लगा। यद्यपि वे लोग उसे निर्धन बालक जान कर मुँह न लगाते थे किंतु वह चुपचाप ही उनकी बातें सुन कर व्यापार और लेन-देन के व्यवहार की कुछ बातें सीखने लगा। एक-आध व्यापारी उसे पहचान भी गए और कभी-कभी फुरसत में उस के साथ बात भी करने लगे।
थाल की दस अशर्फियाँ भी उस से खर्च हो गईं तो अलादीन ने फिर जादू के चिराग को हलके से रगड़ा। वह जिन्न सामने आ गया और नम्रतापूर्वक बोला, स्वामी, मेरे लिए क्या आज्ञा है? मैं और मेरे अन्य कई साथी जिन्न हर समय उस आदमी की सेवा में तत्पर रहते हैं जिस के पास यह दीया है। आप क्या चाहते हैं? अलादीन ने कहा, मैं भूखा हूँ। पहले की तरह मेरे लिए भोजन लाओ। जिन्न यह सुन कर गायब हो गया और दो क्षण ही में पहले जैसा स्वादिष्ट व्यंजनों से भरा थाल और शराब की सुराहियाँ और चाँदी के गिलास ले कर उपस्थित हो गया और सारा सामान जमीन पर रख कर गायब हो गया।
इस समय अलादीन की माँ बाहर गई हुई थी। लौट कर घर में खाद्य पदार्थों से भरा हुआ थाल देखा तो समझ गई कि अलादीन ने फिर चिराग के जिन्न की मदद ली है। किंतु इस बार वह कुछ न बोली। दोनों ने उस समय और उस के दो दिन बाद तक वही भोजन किया। फिर पहले की तरह अलादीन एक चाँदी की रकाबी ले कर बाजार गया ताकि उसे यहूदी के हाथ बेचे।
रास्ते में एक ईमानदार सर्राफ की दुकान पड़ती थी। अलादीन जब कपड़ों में रकाबी छुपाए उधर से निकला तो सर्राफ ने उसे बुला कर कहा, बेटे, मैं ने कई बार देखा है कि तुम वस्त्रों में कुछ छुपा कर यहूदी व्यापारी के पास जाते हो और फिर बगैर उस वस्तु के वापस आते हो। मालूम होता है कि तुम उस के हाथ कोई चीज बेचा करते हो। शायद तुम्हें यह नहीं मालूम की वह यहूदी एक नंबर का बेईमान है, बाजार में उस से बड़ा ठग कोई नहीं है। उस से एक बार भी सौदा करके लोग उस की धूर्तता को समझ लेते हैं और तुम बराबर उसी से व्यवहार रखते हो। वह निश्चय ही तुम्हें बराबर ठगता रहेगा। तुम अगर कोई चीज बेचते हो तो मुझे दिखाओ। मैं तुम्हें उस चीज का ठीक मूल्य दूँगा और अगर वह चीज इतनी कीमती है कि मैं खुद उसे खरीद न सकूँ तो बाजार में बड़े व्यापारियों के पास जा कर उसे सही दामों पर बिकवा दूँगा।
अलादीन ने यह सुन कर रकाबी अपने कपड़ों से निकाली और सर्राफ को दिखाई। उस ने उसे परख कर कहा, यह तो बहुत मूल्यवान वस्तु है। क्या तुमने ऐसी रकाबियाँ यहूदी के हाथ बेची हैं? और बेची हैं तो उस ने क्या दाम लगाए हैं? अलादीन ने कहा, ऐसी बारह रकाबियाँ मैं यहूदी के हाथ बेच चुका हूँ और उस ने हर रकाबी की कीमत एक अशर्फी दी है। यहूदी ने कहा, बड़ा अनर्थ हो गया। यह रकाबियाँ बहत्तर-बहत्तर अशर्फियों की हैं। मैं तुम्हें इस के बदले में बहत्तर अशर्फियाँ देता हूँ। तुम और जगह जा कर पूछ लो। अगर किसी ने इस से अधिक मूल्य लगाया तो मैं तुम्हें इसका दुगुना दूँगा। लेकिन तुम यह बात यहूदी से न कहना वरना वह मुझ से झंझट करेगा। अलादीन ने उसे धन्यवाद दिया और किसी और जगह सौदा न किया। कई वर्षों तक माँ-बेटे का काम इस धन से बड़ी आसानी से चला। वे चाहते तो जिन्न से असंख्य धन ले सकते थे किंतु उन्हें उस से अधिक की जरूरत ही महसूस नहीं हुई।
इस अरसे में अलादीन अक्सर सर्राफे और जौहरी बाजार में जाया करता और तरह- तरह के रत्नों को देखा करता। अब वह समझ गया कि अपने घर में उस ने जो चीजें पत्थर के फल समझ कर रक्खी थीं वे पत्थर नहीं बल्कि ऐसे रत्न हैं जिन के मुकाबले में जौहरियों की दुकानों में रक्खे हुए रत्न कोई हैसियत नहीं रखते। फिर भी उस की हिम्मत उन का सौदा करने की न हुई, क्योंकि फौरन यह सवाल उठता कि इतने बड़े रत्न कहाँ से आए। उस ने इस बारे में माँ से भी कुछ नहीं कहा। वह या तो इस पर विश्वास न करती या दूसरों से इसका उल्लेख कर देती।
एक दिन अलादीन बाजार में घूम रहा था। उस ने सुना कि बादशाह की तरफ से मुनादी हो रही है कि कल न कोई व्यापारी अपनी दुकान खोले न कोई आदमी बाजार में या सड़कों पर दिखाई दे। कल शहजादी बदर बदौर शहर के बड़े हम्माम में स्नान करेगी और फिर अपने महल को जाएगी। अलादीन स्वभाव से बेफिक्रा तो था ही, उस की इच्छा होने लगी कि किसी तरह उस शहजादी को देखना चाहिए जिसके परदे के लिए इतना प्रबंध हो रहा है। उस ने हम्माम के सामने का एक मकान एक दिन के लिए किराए पर लिया और दूसरे दिन मुँह अँधेरे ही उस में जा कर किवाड़ बंद कर लिए और वहीं बैठ कर किवाड़ों की दरारों से हम्माम की ओर देखने लगा। कुछ देर बार अपनी दासियों के साथ शहजादी आई और हम्माम के बाहर उस ने अपने चेहरे से नकाब उतारा और भारी कपड़े भी उतारे और हम्माम में चली गई।
अलादीन ने उस समय तक अपनी बूढ़ी और कुरूप माँ के अलावा कोई स्त्री देखी ही नहीं थी और जानता ही नहीं था कि स्त्रियों का सौंदर्य कैसा होता है। यहाँ उस के सामने स्वयं राजकुमारी आ गई थी जिस से बढ़ कर सारे चीन देश में कोई सुंदरी नहीं थी। यह उस के अनिंद्य सौंदर्य को देख कर गश खा कर गिर पड़ा। कुछ देर में वह होश में आया तो सोचा कि अब यहाँ ठहरने से कोई लाभ नहीं क्योंकि शहजादी की एक दासी ने उस से कहा था, इस समय आप ने नकाब बाहर उतार दिया तो कोई बात नहीं किंतु हम्माम से खुले मुँह बाहर न निकलिएगा। अलादीन ने दरवाजे में अंदर से जंजीर लगाई और घर के पिछवाड़े से निकल कर छोटी गलियों से छुपता-छुपाता अपने घर पहुँच गया।
घर जा कर वह मुँह ढाँप कर लेटा रहा क्योंकि वह शहजादी के प्रेम में जकड़ चुका था और विरह-व्यथा को सहन नहीं कर पा रहा था। वह रह-रह कर ठंडी साँसें भी भरता था। उस की माँ को देख कर आश्चर्य हुआ कि कल तक तो लड़का ठीक-ठाक था, आज इसे क्या हो गया है। उस ने पूछा, बेटे, क्या तुम्हारी तबीयत खराब है जो इस तरह लेटे हुए आहें भर रहे हो? अलादीन ने कोई उत्तर नहीं दिया। माँ ने उस समय अधिक पूछताछ नहीं की क्योंकि उसे भोजन भी बनाना था। वह भोजन बनाती रही और अलादीन उसी तरह लेटा हुआ आहें भरता रहा। उस की माँ खाना बना कर उस के पास लाई और दोनों खाने लगे किंतु अलादीन ने दो-चार कौर ही खाए और खाने से हाथ खींच लिया। उस की माँ ने फिर पूछा, क्या तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं जो खाना नहीं खा रहे हो? अलादीन ने कुछ बहाना बना दिया और अपनी व्यथा माँ से न कही।
शाम के खाने के समय भी उस का यही हाल रहा तो उस की माँ ने फिर उस के दुख का कारण पूछा। उस ने फिर चुप साध ली। माँ भी पूछते-पूछते थक गई थी और झुँझला कर चुप हो रही कि अपना कष्ट नहीं बताता तो न बताए। अलादीन रात भर शहजादी की याद में तड़पता रहा। लेकिन अब उस की विरह-व्यथा उस के बर्दाश्त के बाहर हो गई थी। वह उठ कर अपनी माँ के पास जा बैठा जो चर्खा कात रही थी। उस ने कहा, अम्मा, तुम कल से मेरी तकलीफ के बारे में पूछ रही हो और मैं छुपाता रहा हूँ। अब मैं तुम से अपना कष्ट कहता हूँ। मुझे कोई बीमारी नहीं है और न मुझे किसी हकीम के पास जाने की जरूरत है। कल शहजादी के हम्माम में जाने की परसों मुनादी हुई थी। कल मैं ने एक जगह छुप कर शहजादी का अनुपम सौंदर्य देखा। उसे देखते ही मेरे मन की ऐसी दशा हो गई जिसे मैं बता नहीं सकता। मैं उस के विरह में व्याकुल हूँ। यही मेरी बीमारी है और इस बीमारी का इलाज सिर्फ यही हो सकता है कि मैं बादशाह से प्रार्थना करूँ कि वह अपनी बेटी का विवाह मेरे साथ कर दे।
उस की माँ यह सुन कर हँसने लगी और बोली, अलादीन, तुम्हारा तो दिमाग खराब हो गया है। मेरे सामने कहा सो कहा, और किसी के सामने ऐसी पागलपन की बात न करना। अलादीन ने कहा, मैं जानता हूँ कि तुम यही कहोगी। मैं तुम्हें बता देना चाहता हूँ कि मैं पागल नहीं हूँ और मैं राजकुमारी से अवश्य विवाह करूँगा। उस की माँ ने कहा, लड़के, तू क्या बेकार की बातें कर रहा है। क्या तुझे याद नहीं रहा कि तू एक मामूली दरजी का बेटा है और तेरा पिता बादशाह की प्रजा में एक निर्धन व्यक्ति था? तुझे क्या यह बात भी नहीं मालूम कि बादशाह लोग विवाह-संबंध या तो बादशाह में करते हैं या फिर मंत्री आदि के कुलीन घरानों में? अगर वे ऐसा न करें तो उनकी प्रजा में कुछ प्रतिष्ठा न रहे और राज्य का प्रबंध भी चौपट हो जाए।
अलादीन ने कहा, अम्मा, जो कुछ तुम ने कहा वह सब ठीक है लेकिन मैं राजकुमारी से विवाह किए बगैर नहीं रह सकता। तुम्हें शाही महल में जा कर शहजादी के साथ मेरे विवाह का प्रस्ताव करना ही पड़ेगा। शहजादी से मेरा विवाह नहीं हुआ तो मैं जीवित न रह सकूँगा। वैसे भी उस के वियोग में आधा तो मर ही चुका हूँ और उस के बगैर मैं जीवन वृथा भी समझता हूँ। उस की माँ यह सुन कर बहुत घबराई। वह कातर हो कर कहने लगी, देखो बेटे, हमें वही काम करना चाहिए जो हमें शोभा दें। और वही बातें कहनी चाहिए जो हमारे मुँह से अच्छी लगें। कहाँ राजा भोज, कहाँ गँगुआ तेली। तुम किसके सपने देख रहे हो। अगर अपनी हैसियत के किसी परिवार की कन्या होती तो मैं बगैर झिझक तुम्हारे विवाह का प्रस्ताव ले कर जाती। लेकिन इतने बड़े बादशाह के सामने ऐसा प्रस्ताव रखने की मेरी हिम्मत कैसे हो सकती है। मेरी तो हालत यह है कि तुम्हारा बाप भी मुझ पर बिगड़ता था तो मैं डर के मारे काँपने लगती थी और तुम कह रहे हो कि मैं बादशाह से बात करूँ और वह भी ऐसे विषय पर जिसे मानने के लिए दुनिया में कोई भी तैयार नहीं होगा।
अलादीन इस पर भी अपनी जिद पर अड़ा रहा और रोता-पीटता रहा तो उस की माँ ने कहा, अच्छा, मैं बादशाह के पास चली जाऊँगी। लेकिन बड़े लोगों विशेषतः बादशाहों के पास कोई जाता है तो खाली हाथ नहीं जाता, कुछ भेंट ले कर जाता है। बादशाह के पास जाने के लिए कोई भेंट भी होनी चाहिए जो उस की प्रतिष्ठा के अनुकूल हो। मेरे पास ऐसी कौन-सी चीज हो सकती है जो बादशाह को भेंट कर सकूँ? तुम क्यों ऐसी बात पर जिद कर रहे हो जो हो ही नहीं सकती। तुम शहजादी का खयाल दिल से निकाल दो।
अलादीन ने कहा, अम्मा, तुम क्या कर रही हो? शहजादी का प्रेम मेरे हृदय में इतना गहरा जम चुका है कि या तो शहजादी का आलिंगन करूँगा या मृत्यु का। मैं तुम से विनय करता हूँ कि अगर तुम्हें मेरे जीवन से जरा-सा लगाव है तो तुम यह ऊहापोह छोड़ कर बादशाह से बात करने चली जाओ। मेरा मन कहता है कि तुम्हें सफलता अवश्य मिलेगी। और जो तुम ने यह कहा कि तुम्हारे पास बादशाह को भेंट देने योग्य कोई वस्तु नहीं है तो मैं उस का उपाय भी बताता हूँ। जिन अलभ्य रत्नों को मैं गुफा से लाया था और जिन्हें तुम अभी तक रंग-बिरंगे पत्थर समझे हुए हो वे अमूल्य हैं। पहले मैं भी नहीं जानता था कि वे क्या चीज हैं किंतु इतने वर्षों से बाजार में घूम कर मैं ने देख लिया है कि यहाँ के जौहरियों की दुकानों में जितने रत्न हैं उन सभी से कहीं बड़े और चमकदार मेरे लाए हुए रत्न हैं। इनसे बढ़ कर बादशाह को कोई भी व्यक्ति कुछ भेंट नहीं दे सकता। तुम अंदर जा कर उन रत्नों को उठा लाओ। मैं उन्हें रगड़ कर और चमका दूँगा और आकार तथा रंग के अनुसार उन्हें एक चीनी पात्र में सजा दूँगा जिस से वे बादशाह के सामने पेश किए जाए। तुम देखोगी तो खुद ही उन्हें पसंद करोगी।
अतः अलादीन की माँ अंदर के ताक से उन ढेर सारे रत्नों को उठा लाई। अलादीन ने उन्हें रगड़ कर चमकाया और फिर चीनी के एक सुंदर पात्र में सजा कर रखा तो वे सूर्य के प्रकाश में ऐसी चमक देने लगे कि उन पर निगाह नहीं ठहरती थी। अलादीन ने अपनी माँ से कहा, अब इन्हें देखो। तुम विश्वास करो कि इनसे बढ़ कर बादशाह को कोई और भेंट नहीं दी जा सकती। अब तुम बताओ कि तुम्हें बादशाह के पास जाने में क्या दिक्कत है।
यद्यपि रत्न बहुत ही जगमगा रहे थे तथापि बुढ़िया उनका मूल्य न जानने के कारण तकरार करती रही। वह बोली, इन बेकार पत्थरों में क्या रखा है? इस भेंट से बादशाह कैसे खुश हो सकते हैं? तेरा मनोरथ पूरा न होगा और मैं यूँ ही वापस आ जाऊँगी। मैं जो कुछ कहती हूँ वही होगा। फिर मान लो कि मैं ने बादशाह से तेरे विवाह का प्रस्ताव किया भी तो वह मेरी बात पर हँसेगा और मुझे पागल समझ कर दरबार से धक्के दे कर निकलवा देगा। यह भी संभव है कि कुपित हो कर मुझे और तुम्हें दोनों को मरवा डाले। बेटा, मैं फिर कहती हूँ कि तुम यह नादानी छोड़ दो और अपने जैसे किसी परिवार की लड़की से शादी कर लो।
अलादीन इस पर भी अपनी जिद पर अड़ा रहा तो उस की माँ ने कहा, अच्छा, यह बताओ कि अगर बादशाह ने मुझ से पूछा कि तुम कहाँ रहती हो और तुम्हारी आर्थिक हैसियत क्या है तो मैं क्या जवाब दूँगी? क्या मैं उस से यह कहूँगी कि मैं गरीब दरजी की विधवा हूँ और झोपड़े जैसे मकान में रहती हूँ? अलादीन ने कहा, तुम इस की भी चिंता न करो। मेरे पास जादू का चिराग है। चिराग का जिन्न इतना शक्तिशाली है कि मैं उस से जो कुछ भी माँगूगा वह तुरंत प्रस्तुत कर देगा। तुम तो कई बार यह देख चुकी हो कि कुछ भी माँगा है तो उस जिन्न ने तुरंत ला कर दे दिया है।
जिन्न की बात सुन कर बुढ़िया को भी भरोसा हुआ और उस का साहस बँधने लगा और उसे आशा होने लगी कि उस का मनोरथ सिद्ध हो जाएगा। उस ने स्वीकार कर लिया कि कल वह शाही दरबार में जाएगी और विवाह का प्रस्ताव करेगी। अगर वह यह वादा न करती तो और करती भी क्या, अलादीन तो बुरी तरह उस के पीछे पड़ गया था और किसी तरह मानता ही न था। अलादीन ने, जो अब बाहर घूम कर फिर कर लोक-व्यवहार में कुशल हो गया था, माँ से यह भी कहा कि यह प्रस्ताव बादशाह को छोड़ कर और किसी के कानों में नहीं पड़ना चाहिए। माँ ने यह मंजूर कर लिया।
यह सब तय करने के बाद दोनों अपने-अपने बिस्तरों में चले गए। बुढ़िया तो सो गई किंतु अलादीन को अपनी प्रेयसी की याद में नींद नहीं आई। रात भर वह तड़पता रहा। सुबह जल्दी ही उठ कर उस ने माँ को जगाया और कहा, दरबार का समय होनेवाला है। तुम शीघ्र ही नए वस्त्र पहन कर दरबार को जाओ। बुढ़िया ने रत्नों के पात्र को एक रेशमी रूमाल से बाँधा। इस के बाद उसे भी एक दूसरे कपड़े में बाँध कर वह दरबार को गई। वहाँ जा कर वह चकरा गई। दीवानखाना बहुत बड़ा था, मंत्री और सभासदों के अलावा प्रजाजनों की भी भीड़ थी जो अपनी-अपनी फरियादें ले कर आए थे। बादशाह सब की बातें धैर्यपूर्वक सुनता था और उचित निर्णय देता था। सारे मुकदमों का फैसला करके बादशाह राजमहल में चला गया। वहाँ अपने विशेष राजकक्ष में उस ने मंत्री से आने को कहा और बाकी लोग धीरे-धीरे दरबार से विदा हो गए। कुछ देर में मंत्री भी राज्य-प्रबंध के आदेश ले कर निकल आया और बाकी दरबार भी बर्खास्त हो गया। अलादीन की माँ भी यह सोच कर घर वापस आ गई कि बादशाह से भेंट न होगी।
अलादीन ने उसे वस्त्रों की पोटली के समेत देखा तो समझ गया कि इसकी भेंट बादशाह से नहीं हुई हैं। वह व्यग्र हो कर माँ से सारा हाल पूछने लगा। माँ ने कहा, मुझ से किसी ने रोक-टोक नहीं की। मैं ने बादशाह को अच्छी तरह देखा। मैं बहुत देर तक उस के सामने खड़ी रही लेकिन बादशाह को इतनी फुरसत नहीं मिली कि मुझ से मेरी बात पूछता। हाँ, मैं ने यह जरूर देखा कि बादशाह अनावश्यक रूप से किसी पर क्रोध नहीं करता और सब का हाल धैर्यपूर्वक सुन कर ठंडे दिमाग से फैसले करता है। वह हर एक छोटे-बड़े की बातें ध्यानपूर्वक सुनता है, सचमुच उस जैसा प्रजापालक नरेश कोई नहीं होगा। आज उसे मुझ से बात करने का अवकाश नहीं मिला। लेकिन मैं कल फिर जाऊँगी और आशा है उस से बात कर सकूँगी। अलादीन को यह सोच कर संतोष हुआ कि माँ की हिम्मत खुल गई है, वह देर-सवेर विवाह का प्रस्ताव कर ही देगी।
बुढ़िया दूसरे दिन फिर उसी तरह तैयार हो कर दरबार पहुँची। किंतु उस का जाना व्यर्थ ही सिद्ध हुआ। दरबार का द्वार बंद था और वहाँ के कर्मचारियों ने उसे बताया कि दो दिनों तक दरबार में छुट्टी रहेगी। अतएव वह दरबार से वापस लौट आई और दरबार की छुट्टी की बात अलादीन को बताई। तीसरे दिन फिर वह दरबार में गई किंतु उस दिन भी बड़ी भीड़ थी और उसे बादशाह से बात करने का मौका नहीं मिला। इस के बाद वह बराबर कई दिनों तक दरबार में पहुँची लेकिन कभी उस ने बादशाह से बात करने का अवसर नहीं पाया। रोजाना आधा दिन वहाँ बिताती और फिर घर वापस आ जाती।
एक दिन बादशाह ने मंत्री से कहा, मैं कई दिनों से देख रहा हूँ कि वह बुढ़िया रोज यहाँ आती है और चुपचाप खड़ी रहती है। यह अपने हाथ में भी कोई पोटली लिए रहती है। यह कौन है और मुझ से क्या चाहती है? वास्तव में मंत्री को बुढ़िया से उस का मंतव्य पूछ रखना चाहिए था किंतु उस ने आलस्यवश ऐसा नहीं किया था, इसलिए कहा, पृथ्वीपाल, यह स्त्रियाँ जरा-जरा-सी बात के लिए राजदरबार में पहुँच जाती हैं। यह भी ऐसी ही कोई नालिश ले कर आई होगी कि कसाई ने गोश्त या कुंजड़े ने सब्जी खराब कर दी या तौल में कम दी। बादशाह को इस उत्तर से संतोष न हुआ। उस ने कहा, ऐसी बात नहीं मालूम होती। इन बातों के लिए कोई दिन-प्रतिदिन नहीं खड़ा रहता। कल अगर यह आए तो इसे सबसे पहले पेश किया जाए। मंत्री ने सिर झुका कर यह आदेश स्वीकार किया किंतु उस का पालन न किया। दूसरे दिन बुढ़िया के आने पर मंत्री ने उसे आगे न बढ़ाया। बादशाह ने खुद मंत्री से कहा कि इस बुढ़िया को मेरे पास क्यों नहीं लाते, तो मंत्री को विवश हो कर उसे पेश करना पड़ा।
बुढ़िया ने, जो इतने दिनों तक दरबार का अदब-कायदा देख चुकी थी, अपने सिर को भूमि से लगाया और सिंहासन के सामने बिछे हुए सुंदर कालीन को चूम कर देर तक धरती से सिर लगाए रही। उस ने तभी सिर उठाया जब कि बादशाह ने आदेश दिया कि उठ कर अपनी बात कहो। वह खड़ी हुई तो बादशाह ने कहा, मैं कई दिनों से तुम्हें यहाँ आते देख रहा हूँ। तुम क्या चाहती हो? बुढ़िया ने एक बार फिर धरती चूमी और बोली, हे दीनबंधु प्रजापालक न्यायमूर्ति महाराज, यदि मुझे प्राणदान का आश्वासन दिया जाए तो मैं अपना मनोरथ आप के सामने रखूँ। किंतु मैं जो कुछ कहना चाहती हूँ आप से एकांत में कहना चाहती हूँ। बादशाह ने आदेश दिया कि दरबार खाली हो जाए। अतएव सभी लोग बाहर चले गए, केवल प्रधानमंत्री ही वहाँ रह गया क्योंकि उस से कोई बात गुप्त नहीं रखी जाती थी, साथ ही बादशाह की सुरक्षा के लिए भी एक आदमी का रहना जरूरी था।
बादशाह ने कहा, अब कहो, क्या कहती हो? अलादीन की माँ ने कहा, पहले आप आश्वासन दें कि मेरी बात से क्रुद्ध न होंगे और मेरा कोई अपराध भी समझेंगे तो क्षमा करेंगे। बादशाह ने यह आश्वासन दिया कि निर्भय हो कर अपनी बात कहे। बुढ़िया ने विस्तारपूर्वक बताया कि अलादीन ने किस प्रकार छुप कर शहजादी को देखा था और कैसे उस के विरह में मृत्यून्मुख हो रहा है। उस ने कहा, मैं अपने पुत्र की प्राणरक्षा के हेतु उस के साथ शहजादी के विवाह का प्रस्ताव ले कर आई हूँ।
बादशाह ने इस पर नाराजगी तो न दिखाई किंतु कुछ कहा भी नहीं। फिर बोला, तुम इस पोटली में क्या चीज रोज ले कर आती हो?
मंत्री को इस बात से दुख हुआ। उसे विश्वास था कि शहजादी का विवाह उस के पुत्र ही से होगा और बाद में उस के पुत्र को चीन का विशाल राज्य मिलेगा। इस समय रत्नों के कारण बादशाह की राय बदलते देख कर वह दुखी हुआ और कहने लगा, शहजादी के सामने यह रत्न क्या चीज हैं? मेरा पुत्र तीन महीने में इन से अच्छे रत्न ला सकता है।
बादशाह जानता था कि अलादीन की माँ की दी हुई भेंट से अधिक मूल्यवान कोई भेंट नहीं हो सकती किंतु उस ने मंत्री की बात मान ली। लेकिन उस ने ऊँची आवाज में अलादीन की माँ से कहा, हमने शहजादी से तुम्हारे पुत्र के विवाह का प्रस्ताव स्वीकार किया। लेकिन हमें अपनी बेटी के लिए समुचित दहेज की व्यवस्था करने में कुछ समय लगेगा। यह दहेज लगभग तीन महीने में तैयार होगा। इसलिए तुम तीन महीने बाद मेरे पास आना। तब मैं शादी के समारोह की रूपरेखा बनाऊँगा। अलादीन की माँ ने यह सुन कर कई बार झुक कर भूमि स्पर्श की और खुश घर वापस आई। उस की प्रसन्नता कई कारणों से थी - एक तो यह कि उस के बेटे की मनोकामना पूरी हो गई, दूसरे यह कि उसे बादशाह के कोप ओर उस के फलस्वरूप मिलनेवाले कठोर दंड का भय था, वह भय दूर हो गया और उसे बादशाह की प्रसन्नता प्राप्त हुई। तीसरे यह कि रोज-रोज की दरबार तक आने-जाने की और दरबार में घंटों खड़े रहने की मुसीबत से छुट्टी मिल गई।
अलादीन ने दूर ही से माँ को देख कर समझ लिया कि उसे अपने काम में सफलता मिली है। वह और दिनों की अपेक्षा प्रसन्न भी थी और दरबार से जल्द ही वापस आ गई थी। जब वह घर पहुँची तो अलादीन ने कहा, अम्मा, सब खैरियत तो है? उस की माँ दरबार के वस्त्र उतारती हुई बोली, बेटे, अब तू खुश हो जा, तुझे मैं अच्छी खबर सुनाने जा रही हूँ? फिर उस ने सारा हाल बता कर कहा, मुझे अभी बादशाह ने हाँ ना कुछ भी नहीं की थी, इस से पहले ही मंत्री ने चुपके से बादशाह से कुछ कहा। मैं तो डर गई थी कि अब मुझे इनकार में जवाब मिलेगा किंतु बादशाह ने प्रस्ताव स्वीकार करके मुझे तीन महीने बाद आने को कहा है। अलादीन यह सुन कर खुशी से फूला न समाया और एक-एक दिन करके तीन महीने की अवधि समाप्त की प्रतीक्षा करने लगा।
दो महीने बाद एक दिन उस की माँ को मालूम हुआ कि दीया जलाने का तेल नहीं है। वह तेल लेने बाजार गई तो देखा कि बाजार में बड़ी धूमधाम और सजावट हो रही है और हर जगह दीपों की कतारें लगी हैं। हर जगह उच्च कर्मचारी सुनहरे रुपहले काम के वस्त्र पहने घूम रहे हैं और विवाह के योग्य सजावट का सामान राजमहल की ओर ले जाया जा रहा है। उस ने कजस तेली से तेल लिया था, उस से पूछा कि यह सब कैसी धूमधाम है। तेली ने उत्तर दिया, तुम मालूम होता है परदेशी हो। इस शहर में तो सभी जानते हैं कि आज रात को मंत्री के पुत्र से शहजादी का विवाह होगा। एक घड़ी के बाद शहजादी हम्माम में स्नान करने आएगी, उस के लिए यह सब राजकर्मचारी घूम रहे हैं। शादी के लिए जरूरी सामान भी राजमहल की ओर इसीलिए भेजा जा रहा है।
यह सुन कर अलादीन की माँ फौरन घर लौटी और अलादीन से बोली, बेटा, यह तो बड़ी गड़बड़ हुई। मेरी सारी मेहनत बेकार गई। बादशाह ने मुझे जो वचन दिया था उस से फिर गया है।
यह कह कर उस ने बाजार में सुना हुआ सारा हाल बताया और कहा कि आज शहजादी हम्माम में जाएगी और फिर मंत्री के पुत्र से उस का विवाह होगा। अलादीन ने यह सुना तो उस पर बिजली-सी टूट पड़ी। कुछ देर तक तो वह पागल की तरह आँखें फाड़े देखता रहा फिर जब कुछ जी ठिकाने हुआ तो सोचने लगा कि यह तो मेरे लिए डूब मरने की बात होगी कि शहजादी बदर बदौर का विवाह किसी और से हो, लेकिन इतनी देर हो गई है कि अब किया ही क्या जा सकता है, साथ ही यह कि अपनी प्रियतमा को दूसरे की पत्नी बनने दिया भी कैसे जा सकता है।
सहसा उसे जादू के चिराग का ध्यान आया और वह खुश हुआ। वह माँ के सामने चिराग से काम लेना नहीं चाहता था इसलिए माँ से बोला, कर लेने दो मंत्री पुत्र को विवाह, किंतु वह अपनी पत्नी को भोग नहीं सकेगा। तुम खाना बनाओ, मैं जरा अंदर जाता हूँ। उस की माँ समझ गई कि उस का चिराग से काम लेने का इरादा है। अब उसे इस में कोई आपत्ति भी नहीं रही थी। अलादीन अंदर के कमरे में गया जहाँ वह चिराग रखा था। उस ने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया और चिराग को रगड़ा। तुरंत ही जिन्न आ गया और बोला, मैं और कई जिन्न आप के अधीन हैं। क्या आज्ञा है?
अलादीन ने कहा, अभी तक मैं ने भोजन माँगने के अलावा और कोई काम तुम से नहीं लिया। अब एक बड़े काम के लिए कहता हूँ। मैं ने यहाँ के बादशाह से प्रार्थना की थी कि अपनी बेटी बदर बदौर को मुझ से ब्याह दे। उस ने यह मंजूर भी कर लिया था लेकिन बाद में वह अपनी बात से फिर गया। मुझ से तीन महीने का समय माँगा था और आज दो महीने बाद ही रात को उसे मंत्री के पुत्र से ब्याहनेवाला है। मुझे अभी-अभी यह समाचार मिला है। तुम्हें यह करना है कि ज्यों ही नव दंपत्ति पलंग पर जाए तुम दोनों को पलंग समेत मेरे घर ले आओ। जिन्न ने कहा कि यह तो मामूली काम है, इस के अलावा भी कुछ काम हो तो बताओ। अलादीन ने कहा कि अभी तो इतना ही काम है। यह सुन कर वह जिन्न गायब हो गया।
अलादीन इस के बाद माँ के पास गया और उस के साथ हँसी-खुशी की बातें करता रहा और कहता रहा कि बदर बदौर मेरे अतिरिक्त किसी और की नहीं हो सकती। खाना बन जाने पर उस ने मन से पेट भर भोजन किया और अपनी माँ से इधर-उधर की बहुत-सी बातें करता रहा। इस के बाद उस की माँ अपने कमरे में सोने को चली गई और अलादीन भी अपने पलंग पर लेट गया। इस समय उसे कोई दुख नहीं था फिर भी उत्तेजना के कारण उसे नींद नहीं आई। वह इसका इंतजार कर रहा था कि जिन्न कब उन दोनों को यहाँ लाता है। वैसे उसे कभी-कभी यह शंका भी होने लगती थी कि जिन्न उस के लिए यह काम करेगा भी या नहीं।
उधर शाही महल में जब मंत्री के पुत्र और बदर बदौर की शादी की सारी रस्में पूरी हो गईं और रात काफी बीत गई तो मंत्री के पुत्र को सुहागरात के कमरे में पहुँचा दिया गया जहाँ वह पलंग पर लेट गया। शहजादी की दासियों ने उसे रात के कपड़े पहना कर कमरे में भेज दिया और द्वार बंद कर दिया। शहजादी के पलंग पर बैठते ही जिन्न ने दोनों के पलंग को अलादीन के घर पहुँचा दिया। अब अलादीन ने जिन्न से कहा कि मंत्रि-पुत्र के पाजामे के अलावा सारे कपड़े उतार कर उसे घर के तंग और बदबूदार शौचालय में बंद कर दे। उस ने वह भी कर दिया। बेचारे मंत्रि-पुत्र की बदबू और सर्दी से बुरी हालत हो गई। अलादीन ने शहजादी से अधिक बात नहीं की। उस ने सिर्फ यह कहा, तुम्हारे पिता ने मुझ से तुम्हें ब्याहने का वादा किया था। वे अपने वचन से फिर गए हैं। मैं ने यह सब सिर्फ इसलिए किया है कि मंत्रि-पुत्र तुम्हारा अंग स्पर्श न कर सके। वह बेचारी वैसे ही इस अद्भुत व्यापार को देख कर हक्का-बक्का हो रही थी, अलादीन की बातें सुन कर चुपके से पलंग पर दुबक गई। फिर अलादीन ने अपनी पगड़ी और ऊपरी वस्त्र उतारा और शहजादी के पलंग पर उस की ओर पीठ करके और बीच में नंगी तलवार रख कर सो गया। यह इस बात का प्रतीक था कि यद्यपि वह शहजादी को अपना समझता था किंतु विवाह के पूर्व संभोग का अपराध नहीं करना चाहता था। अपनी प्रेमिका की पवित्रता बचा सकने पर उसे बहुत संतोष हुआ और वह रात भर आराम की नींद सोया। उधर मंत्रि-पुत्र रात भर पाखाने में सड़ता रहा और सर्दी में ठिठुरता रहा और शहजादी भी अपने और अपने शैय्या के साथी के बीच में नंगी तलवार देख कर भयभीत रही और बहुत कम सोई।
सुबह जिन्न बगैर बुलाए ही आ गया और अलादीन से बोला, मालिक, अब मुझे क्या आज्ञा है? अलादीन ने बीच से तलवार हटा दी और पलंग से उतर कर कहा, अब मंत्रि-पुत्र को पलंग पर लिटा कर दोनों को मय पलंग के उन के कमरे में पहुँचा दो। वह जिन्न मंत्रि-पुत्र को शौचालय से निकाल कर लाया और उसे उस के कपड़े पहना दिए, फिर उसे शहजादी के पलंग पर पटक दिया। इस बार जिन्न ने स्वयं को गुप्त नहीं रखा बल्कि अपने स्वाभाविक महाभयानक आकार में बना रहा। शहजादी बदर बदौर और मंत्रि-पुत्र दोनों की उस का विकराल रूप देख कर घिग्घी बँध गई। कोई आश्चर्य की बात न होती अगर वे दोनों डर के मारे ही मर जाते। लेकिन भाग्यवश दोनों केवल अधमरे हो गए।
उस देश की रीति थी कि सुहागरात के बाद की सुबह को कन्या का पिता आ कर उस से इशारे से पूछता था कि रात स्वाभाविक रूप से बीती या नहीं। बादशाह भी सुबह यह हाल लेने के लिए आया।
उस की आहट सुनते ही मंत्रि-पुत्र पलंग से कूदा और दूसरे दरवाजे से निकल गया क्योंकि वह अपनी दुर्दशा छुपाना चाहता था। बादशाह ने कमरे में जा कर बेटी से मुस्कुरा कर पूछा, रात आराम से तो बीती? उस ने आगे बढ़ कर प्यार से उस का माथा चूमा तो उसे दिखाई दिया कि शहजादी को असीम दुख महसूस हो रहा है। बादशाह को आश्चर्य हुआ और वह यह न समझ सका कि शहजादी लज्जावश कुछ नहीं कह रही या रात उसे बहुत कमजोरी आ गई है या उसे वास्तव में कोई दुख है जिसके कारण वह चुप्पी साधे है। वह वहाँ से अपनी बेगम के पास गया और उसे शहजादी की विचित्र दशा बताई और कहा कि कुछ समझ में नहीं आता। बेगम ने कहा, सरकार, कुछ चिंता न करें। कई लड़कियाँ ऐसी होती हैं कि प्रथम संसर्ग में उन्हें बड़ा कष्ट होता है और किसी-किसी लड़की की तो दो-तीन दिन तक खराब हालत रहती है। मैं स्वयं जा कर उस से उस का हाल पूछूँगी और आप से आ कर बताऊँगी।
इस के बाद मलिका शहजादी के महल में गई और उसे गले लगा कर उस का हाल पूछा। शहजादी इस पर भी चुप रही और उस के चेहरे की उदासी जरा भी कम नहीं हुई। मलिका ने बड़े प्यार से आग्रहपूर्वक कई बार पूछा तो वह ठंडी साँस ले कर बोली, माता जी, मैं जो कुछ कहूँगी उस में आप को अगर धृष्टता लगे तो पहले ही से उस की क्षमा माँग लेती हूँ। वास्तविकता यह है कि रात को ऐसी विचित्र घटनाएँ हुईं जिन पर किसी को विश्वास नहीं होगा। किंतु उन घटनाओं ने मेरे होश-हवास गायब कर दिए और उन बातों को याद करके अब तक मेरा हृदय काँप रहा है। रात को जब मेरी दासियाँ मुझे इस कमरे में बंद करके चली गईं और मैं पलंग पर बैठी उसी समय किसी ने हम दोनों को मय पलंग किसी मामूली-से कमरे में पहुँचा दिया। वहाँ मंत्रि-पुत्र को वह गुप्त व्यक्ति कहीं ले गया और रात भर कहीं और रखा। इधर एक जवान आदमी ने मुझे बहुत दिलासा दिया और उसी पलंग पर मेरी ओर पीठ करके सो गया और मेरे और अपने बीच में नंगी तलवार रख ली। सुबह मंत्रि-पुत्र को एक भयानक जिन्न ने मेरे साथ लिटाया और हम दोनों को मय पलंग के यहाँ वापस पहुँचा दिया। सुबह जब पिता जी मेरे कमरे में आए तो मैं भय और शोक में इतनी डूबी थी कि उस ने कुछ भी बात न कर सकी। मेरा दुख उन्हें मालूम होगा तो वे मुझे अवश्य क्षमा करेंगे।
बदर बदौर ने जब बीती रात की पूरी घटना सुनाई तो उस की माँ को उस पर बिल्कुल विश्वास नहीं हुआ। उस ने कहा, तुम ने मुझ से कहा सो ठीक किया लेकिन किसी और से यह पागलपन की बातें न करना। इस से क्या फायदा कि लोग तुम्हें पागल समझें।
शहजादी बोली, मैं पागल नहीं हूँ, अपने पूरे होश-हवास में हूँ। तुम्हें मेरी बात का विश्वास नहीं तो मैं क्या करूँ। तुम चाहो तो मेरे पति मंत्रि-पुत्र से पूछ लो। वह भी यही कहेगा जो मैं कह रही हूँ। मलिका ने कहा, अच्छी बात है। मैं तुम्हारे पति से पूछूँगी। अगर उस ने तुम्हारी बात का समर्थन किया तो तुम्हारी बात सच समझूँगी। इस समय तुम इन बातों को भूल जाओ। देखो, नगर में चारों तरफ से गायन-वादन की आवाजें आ रहीं है जो तुम्हारे विवाह के उपलक्ष्य में हो रही हैं। तुम क्यों इस राग-रंग को अपनी बेकार बातों से भंग करना चाहती हो? इस पर शहजादी चुप हो गई।
मलिका ने बादशाह को जा कर वह सब बताया जो बदर बदौर ने कहा था। उस ने यह भी कहा, मुझे तो यह दुःस्वप्न मात्र मालूम होता है। फिर भी अच्छा है कि जैसा वह कहती है उस के पति से भी पूछ लिया जाए। बादशाह ने मंत्री-पुत्र को बुला कर पूछा, क्या तुमने भी रात को वही देखा है जो शहजादी ने देखा है? उसने कहा, मुझे नहीं मालूम उस ने क्या देखा है। असलियत यह थी कि रात के घोर कष्ट के बाद भी वह सोचता था कि अब वह कष्ट फिर न होगा और शादी वह तोड़ना नहीं चाहता था क्योंकि इस से उसे तत्कालीन प्रतिष्ठा और भविष्य में बड़ा राज्य मिलता। जब उसे बताया गया कि बदर बदौर क्या कहती है तो उस ने कहा, शहजादी को भ्रम हुआ होगा। ऐसी कोई बात नहीं हुई। कल सुबह तक वह ठीक हो जाएँगी।
उधर अलादीन ने फिर दीया रगड़ कर जिन्न को बुलाया और उस से महल का हाल पूछा। उस ने बताया कि मंत्रि-पुत्र कल रात की बातें मानने से इनकार करता है। अलादीन ने कहा, आज भी वे दोनों पलंग पर लेटें तो उस के भोग-विलास से पहले यहाँ पर कल की तरह ले आना। जिन्न ने ऐसा ही किया और बदर बदौर तथा मंत्रि-पुत्र के पलंग पर लेटते ही वह पलंग को उन दोनों के साथ अलादीन के घर उठा लाया। अलादीन ने गत रात की तरह मंत्रि-पुत्र को शौचालय में बंद करवा दिया और खुद नंगी तलवार बीच में रख कर शहजादी के पलंग पर उस की ओर पीठ करके सो गया। शहजादी उस रात को भी रात भर यह विचित्र बातें देख कर काँपती रही और मंत्रि-पुत्र तंग और बदबूदार पाखाने में रात भर सरदी और मल की दुर्गंध से कष्ट उठाता रहा। सुबह फिर जिन्न ने उसे शहजादी के पलंग पर मंत्रि-पुत्र को लिटा दिया और दोनों को मय पलंग राजमहल में वापस पहुँचा दिया।
दूसरी सुबह को बादशाह फिर शहजादी के पास पहुँचा और उसे पिछले दिन से भी अधिक चिंतित और दुखी पाया। बादशाह को पूरे दिन खटका तो लगा ही रहा था, वह व्यग्र हो कर बोला, बेटी, तुम बताओ तो आखिर क्या बात है। शहजादी चुप ही रही। बादशाह के बहुत पूछने पर भी वह कुछ न बोली तो बादशाह का धैर्य छूट गया। उस ने म्यान से तलवार खींच ली और गरज कर बोला, तू सच्ची बात बता वरना मैं अभी तेरे टुकड़े-टुकड़े किए डालता हूँ। बदर बदौर घबरा कर रोने लगी और बोली, पिताजी, मुझ से कोई अपराध हुआ हो तो क्षमा कर दें। आप जोर देते हैं तो मैं पिछली दो रातों का हाल आप को बताए देती हूँ परंतु आप को इस पर विश्वास नहीं होगा। इसीलिए मैं अब तक चुप थी। यह कह कर बादशाह को अपने मुँह से सारा हाल बताया। फिर कहने लगी, आप को विश्वास न हो रहा हो तो मंत्रि-पुत्र से पूछ लीजिए। बादशाह ने कहा, बेटी, मैं तुम्हें किसी तरह दुख नहीं देना चाहता। मैं ने तुम्हारा विवाह तुम्हारी प्रसन्नता के लिए किया था, दुखी करने के लिए नहीं। खैर, अब तुम चिंता छोड़ो। अब तुम्हें ऐसा अनुभव नहीं होगा।
इस के बाद बादशाह अपने महल में आया और उस ने वहाँ मंत्री को बुलाया। उस ने मंत्री से पूछा, क्या तुमने अपने बेटे से बात की और उस का हाल पूछा? उस ने कहा मैं ने नहीं पूछा। बादशाह ने बदर बदौर का बताया हुआ पूरा किस्सा उसे सुनाया और कहा, यद्यपि मैं अपनी पुत्री की बात विश्वास करता हूँ फिर भी तुम्हारे बेटे द्वारा इसकी पुष्टि चाहता हूँ। तुम जा कर अपने बेटे से यह बात पूछो। मंत्री अपने घर गया और अपने बेटे को बुला कर कहने लगा, शहजादी ने बादशाह से यह बातें कही हैं, तुम इस बारे में क्या कहते हो?
मंत्रि-पुत्र पिछले दिन विवाह टूटने के भय से झूठ बोल गया था किंतु दूसरे दिन भी वही अनुभव हुआ तो उस की हिम्मत टूट गई। उस ने कहा, कल मैं ने इस बात से इनकार कर दिया था लेकिन वास्तविकता यह है कि शहजादी ठीक कहती है। दो रातों से एक महाभयानक जीव हम दोनों को पलंग समेत उठा कर कहीं पहुँचा देता है। फिर मेरे कपड़े सिवा पाजामे के, उतार कर मुझे एक तंग शौचालय में बंद कर देता है जहाँ भरे हुए मल की बदबू से रात भर मेरा दिमाग फटता रहता है और मैं सरदी से ठिठुरता रहता हूँ और हाथ-पाँव भी नहीं हिला पाता। मुझे पता नहीं कि रात भर मेरी पत्नी के साथ क्या होता है। सुबह वही जीव मुझे निकाल कर कपड़े पहनाता है और पलंग पर लिटा कर हम दोनों को पलंग समेत महल में वापस ले आता है। मैं ऐसी शादी से बाज आया। दो-तीन दिन और यही हाल रहा तो मर ही जाऊँगा।
मंत्री ने देखा कि दो दिन में उस का बेटा बदहवास ही नहीं, दुबला भी हो गया था। वह भी इस नतीजे पर पहुँचा कि इसे शहजादी से अलग रखना चाहिए वरना वास्तव में चार-छह रोज में मर जाएगा। उस के बाद वह बादशाह के पास गया और बोला, सरकार, शहजादी बिल्कुल ठीक कहती है। मेरे बेटे ने कल शादी टूटने के डर से झूठ बोला था लेकिन आज उस ने सच्ची बात बताई है। उसे दो रातों से तंग गंदे पाखाने में बंद कर दिया जाता है। अब मेरा विचार है कि पति-पत्नी को साथ न सोने दिया जाए और राज्य में विवाह के सिलसिले में जो समारोह हो रहे हैं उन्हें बंद कर दिया जाए।
बादशाह ने भी इस बात को पसंद किया और विवाह के समारोह रोक दिए गए। मंत्री के पुत्र को महल में आ कर पत्नी से मिलने से भी रोक दिया गया। नगरवासियों में जोरों से इस बात की चर्चा होने लगी। लोग तरह-तरह की अटकलें लगाते थे कि क्यों विवाह समारोह बंद कर दिए गए और क्यों मंत्री के पुत्र को राजमहल से निकाल दिया गया। कारण केवल दूल्हा-दुल्हन, उन के माता-पिता और अलादीन को ज्ञात था। अलादीन ने अब दीया रगड़ कर जिन्न को बुलाने की जरूरत न समझी और अपनी तीन महीने की मियाद बीतने की प्रतीक्षा करने लगा। उस ने ऐसा प्रकट किया जैसे बदर बदौर के मंत्रि- पुत्र से ब्याहे जाने के बारे में उसे कुछ पता ही न हो।
तीन महीने की मियाद बीतने के बाद अलादीन ने फिर अपनी माँ को बादशाह के पास भेजा। बुढ़िया फिर दरबार के लायक कपड़े पहन कर दरबार में गई और बादशाह के सिंहासन के सामने खड़ी हो गई। बादशाह उसे देख कर समझ गया कि वह वादा याद दिलाने को आई है। मंत्री भी इस बात को ताड़ गया और उस ने कोशिश की कि बादशाह को किसी और बात में उलझाए रखे। बादशाह ने उसे रोक दिया और कहा, वह बुढ़िया जो सामने खड़ी है उसे हाजिर करो। मंत्री ने चोबदार द्वारा उसे बुलवा लिया। बुढ़िया ने पहले की तरह भूमि चूमी। बादशाह ने कहा, बोलो, क्या कहना चाहती हो? उस ने कहा, सरकार ने तीन महीने पहले मुझ से कहा था कि शहजादी का विवाह मेरे पुत्र अलादीन से तीन महीने बाद कर देंगे। आज मैं आप को आप का वही वचन याद दिलाने आई हूँ।
समझ तो बादशाह पहले भी गया था कि वृद्धा इसी बात को कहने के लिए आई है फिर भी चूँकि उसे अलादीन के बारे में कुछ पता नहीं था इसलिए विवाह की स्वीकृति देने में हिचकिचा रहा था। उसे परेशानी यह थी कि अमूल्य रत्नों के उपहार से प्रभावित हो कर उस ने शादी का वादा दिया था।
अब उस से साफ मुकरने से उस की प्रतिष्ठा में जो बट्टा लगता वह भी उसे मंजूर नहीं था। उस ने अपनी कठिनाई मंत्री को चुपके से बताई। उस ने चुपके से कहा, कोई परेशानी नहीं है। आप अलादीन को कहला भेजें कि शहजादी का मेहर बहुत बड़ा होगा, तुम में वह देने की सामर्थ्य हो तो मैं विवाह को राजी हूँ वरना आगे से विवाह की बात भी मेरे आगे न चलाना, और मेहर आप इतना भारी माँगें कि वह दे ही न सके। बादशाह को यह सलाह पसंद आई। उस ने अलादीन की माँ से कहा, देवी जी, मैं ने तुम्हें जो वचन दिया है उस से मैं फिरता नहीं हूँ। मैं उसे जरूर पूरा करता लेकिन शहजादी ने एक बेढब शर्त रखी है। वह कहती है कि मैं उसी आदमी से शादी करूँगी जो मुझे काफी बड़ा मेहर दे। तुम अपने पुत्र से कहो कि शहजादी का विवाह उस से तभी होगा जब वह चालीस हब्शी गुलामों के सरों पर धरे हुए चालीस स्वर्ण पात्रों में उसी तरह के रत्न भर कर भेजे जैसे तुमने भेंट में दिए थे। हर एक हब्शी गुलाम के आगे एक सुंदर गोरे रंग का गुलाम भी होना चाहिए। सभी गुलामों की पोशाकें बहुमूल्य जरदोजी की होनी चाहिए। साथ ही जिन स्वर्ण पात्रों में रत्न भेजे जाएँ उन के ढकनों पर सुंदर चित्रकारी मीना के काम में होनी चाहिए। तुम यह शर्त अपने पुत्र को बताओ और पूछो कि क्या कहता है। वह जो कुछ उत्तर दे वह कल आ कर बताना। सीधे मेरे पास चली आना, मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा।
अलादीन की माँ ने सिंहासन का पाया चूमा और घर वापस हुई। रास्ते भर वह अपने बेटे की मूर्खता पर झुँझलाती रही। वह सोचती रही कि वे रंगीन पत्थर तो अलादीन उस गुफा से लाया था जहाँ उसे जादूगर ने भेजा था। अब वैसे पत्थर और वे भी पचास स्वर्ण पात्रों में भरे हुए कहाँ मिलेंगे, वह गुफा तो बंद हो गई है। फिर कीमती पोशाकें पहने अस्सी गुलाम कहाँ से आएँगे। इस लड़के ने बेकार मुझे दौड़ा कर मेरे पाँव तोड़ दिए।
घर आ कर उस ने अलादीन से कहा, बेटा, मैं तुम से कहती थी कि शहजादी को भूल जाओ। वही बात हुई। बादशाह शहजादी के लिए तैयार है और अपना वादा नहीं भूला है। लेकिन उस ने मेहर इतना बड़ा माँगा है जो तुम कयामत तक नहीं दे सकोगे। फिर उस ने सविस्तार बादशाह की माँग बताई। अलादीन बोला, अम्मा, तुम कुछ परवा न करो। वास्तव में शहजादी तो अद्वितीय है। उस के लिए इतना मेहर भी कम है। देखो मैं कोशिश करता हूँ कि इस मेहर का प्रबंध करूँ। यह कह कर वह इधर-उधर की बातें करने लगा।
दूसरे दिन सवेरे उस ने माँ से कहा, अम्मा, बड़ी भूख लगी है। तुम बाजार से कुछ खाने को ले आओ, घर में बनाने में देर लगेगी। वह बेचारी बाजार चली गई। इधर अलादीन ने चिराग को रगड़ा। जिन्न प्रकट हुआ और कहने लगा, क्या आज्ञा है? अलादीन ने कहा, भाई, अब बादशाह मेरे साथ शहजादी का विवाह करने के लिए राजी हो गया है लेकिन उस ने मेहर बड़ा कीमती माँगा है। वह कहता है कि चालीस हब्शी गुलाम चालीस स्वर्ण पात्रों में, जिनके ढक्कनों पर मीनाकारी से सुंदर चित्र बने हों, उसी तरह के रत्न भर कर लाएँ जैसे मैं जादू के बाग से लाया था। हब्शी गुलामों के साथ चालीस गोरे रंग के सुंदर गुलाम भी हों और सभी गुलाम जरदोजी की पोशाक पहने हुए हों। अब तुम यह चीजें प्रस्तुत कर दो तो मैं अपनी माँ के साथ यह मेहर बादशाह के पास भेज दूँ।
जिन्न ने कहा, यह सब मैं अभी लाए देता हूँ। यह कह कर वह गायब हो गया और कुछ ही क्षणों में मेहर के साथ फिर उपस्थित हो गया। अलादीन का घर चालीस हब्शी और चालीस गौर वर्ण गुलामों से भर गया। सभी गुलाम जरदोजी के ऐसे मूल्यवान वस्त्र पहने थे जो अमीरों को भी नसीब नहीं होते। हब्शियों के सिरों पर स्वर्ण पात्र थे जिनके मीनाकारी के काम के ढक्कन थे। सब ने स्वर्ण पात्रों को खोल कर दिखाया। उन सभी में उसी तरह के बड़े-बड़े हीरे, मोती, नीलम, लाल, पुखराज आदि भरे हुए थे। अलादीन का घर रत्नों, स्वर्ण पात्रों और जरी की पोशाकों से जगमगाने लगा। जिन्न ने पूछा कि और कोई काम तो नहीं है? अलादीन ने कहा, अभी कोई काम नहीं है। लेकिन जरूरत होगी तो फिर बुलाऊँगा।
अलादीन की माँ बाजार में आई तो यह साज-सामान देख कर स्तंभित रह गई। अलादीन ने उस से कहा, अम्मा, तुम जल्दी से नाश्ता करो और मेरे खाने-पीने की चिंता छोड़ कर इस मेहर को ले कर बादशाह के दरबार में चली जाओ। ऐसा न हो कि बादशाह की मति फिर पलट जाए। अभी बादशाह इस मेहर को देखेगा तो इतना अभिभूत होगा कि इनकार न कर सकेगा। इसलिए तुम जाने की जल्दी करो।
बुढ़िया ने जल्दी-जल्दी खाया-पिया और दरबारी पोशाक पहनी। उस बीच अलादीन ने गुलामों को पंक्तिबद्ध किया और यह बताया कि किस प्रकार दरबार में प्रवेश करें और किस भाँति एक-एक करके स्वर्ण पात्रों को बादशाह को ढक्कन खोल कर दिखाएँ। उस ने एक-एक हब्शी गुलाम के आगे एक-एक गोरे रंग गुलाम खड़ा किया और उनका दर्शनीय समूह बना दिया। उन के पीछे माँ को भेज कर वह अपने घर में व्यग्रता से परिणाम की प्रतीक्षा करने लगा।
यह काफिला चला तो नगरवासी मार्ग के दोनों ओर भीड़ लगा कर तमाशा देखने को खड़े हो गए। एक-एक गुलाम की पोशाक ही एक-एक लाख रुपए की होगी और उन के वस्त्रों तथा स्वर्ण पात्रों से निकलनेवाली चमक से देखनेवालों की आँखें चौंधियाई जाती थीं। गुलामों का समूह जब शाही दरबार के सामने पहुँचा तो हरकारों ने बादशाह को उस की खबर दी। उस ने आदेश दिया कि उन्हें दरबार में हाजिर करो। वे सभी कायदे से चलते हुए अर्ध गोलाकार रूप में सिंहासन के सामने खड़े हो गए। फिर उन गुलामों ने सम्मानपूर्वक ढकने हटा कर रत्नों को पेश किया। अलादीन की माँ ने आगे बढ़ कर सिंहासन का पाया चूमा और कहा, मेरे बेटे ने कहलवाया है कि यद्यपि यह भेंट आप के सम्मान के अनुकूल नहीं है फिर भी आशा है कि इसे स्वीकार करके मुझे अपनी गुलामी में लेंगे। बादशाह ने मंत्री से कहा, जो आदमी ऐसा मेहर दे सकता है वह निस्संदेह मेरा दामाद होने के योग्य है। मंत्री ने उस की मति को फेरना चाहा और ऊँच-नीच समझाया किंतु बादशाह ने उस की न मानी।
बादशाह ने अलादीन की भेंट स्वीकार कर ली और उस की माँ से कहा, तुम अपने बेटे को यहाँ लाओ। मैं उसे देखना चाहता हूँ। मैं ने जो वचन दिया है उसे जरूर पूरा करूँगा। अलादीन की माँ यह सुन कर दौड़ी हुई अपने घर आई। उधर बादशाह भी दरबार से उठ कर अपने महल में आ गया।
उस ने दासों और सेवकों को आज्ञा दी कि रत्नों से भरे सारे पात्र शहजादी के महल में पहुँचा दिए जाएँ। वह स्वयं भी शहजादी के महल में गया ताकि उन रत्नों को भली-भाँति देखे। शहजादी के महल के आँगन में जब सजे-धजे अस्सी गुलाम आ कर खड़े हुए और शहजादी ने चिक की आड़ से उन्हें देखा तो उन के वैभव को देख कर बड़े आश्चर्य में पड़ी। उस ने इतने विशाल राज्य की राजकुमारी होने पर भी ऐसी तड़क-भड़क और ऐसे अमूल्य रत्न कभी नहीं देखे थे।
अलादीन की माँ ने घर जा कर पुत्र से कहा, तुम भगवान को धन्यवाद दो। तुम्हारा भाग्य खुल गया। बादशाह ने तुम्हारी भेंट पसंद कर ली और कहा कि शहजादी का विवाह तुम से होगा। अन्य दरबारियों ने भी सहमति प्रकट की। बादशाह ने तुम्हें बुलाया है ताकि तुम्हारे हाथ में अपनी पुत्री का हाथ दे दे। अलादीन यह सुन कर खुशी से झूम उठा। उस ने माँ से कहा, अम्मा, तुम्हें थोड़ी ही देर प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। मैं तैयार हो कर अभी चलता हूँ। यह कह कर वह अंदर के कमरे में गया। उस ने चिराग को रगड़ा और जिन्न प्रकट हो कर आदेश की माँग करने लगा। अलादीन बोला, एक तो मैं हम्माम में स्नान करना चाहता हूँ, इस के बाद तुम मेरे लिए बादशाहों के जैसे कपड़े ले आओ। जिन्न ने उस का हाथ पकड़ा और उसे उड़ा कर एक संगमरमर के बने हम्माम में ले गया। अलादीन ने कपड़े उतार कर गर्म पानी से मल-मल कर नहाया और तरह-तरह की सुगंधियाँ अपनी देह में लगाईं। उस का शरीर गोरा और नरम हो गया और बदन के एक-एक जोड़ में चुस्ती आ गई और उस का चेहरा चाँद की तरह दमकने लगा। जब वह उस जगह आया जहाँ उस ने कपड़े उतारे थे तो वहाँ एक भारी कमख्वाब का जोड़ा अपने लिए रखा पाया।
वहाँ जिन्न भी आ गया जिसने कपड़े पहनने में अलादीन की सहायता की। फिर जिन्न ने कहा, अब क्या आज्ञा है? अलादीन ने कहा, मेरे लिए एक ऐसा बढ़िया घोड़ा लाओ जिसके मुकाबिले का कोई घोड़ा शाही अस्तबल में मौजूद न हो। उस का साज-सामान भी लाखों रुपए का होना चाहिए। इस के अलावा बारह गुलाम मेरे दाएँ-बाएँ और पीछे चलने के लिए हों और बीस सिपाही मेरी सवारी के आगे चलने के लिए। छह दासियाँ अच्छे कपड़े पहने हुए मेरी माँ की सेवा में चलें और दो दासियाँ दो भारी और अति मूल्यवान कपड़ों के जोड़े उठाए हुए साथ चलें, एक मेरी माँ के लिए और दूसरा मेरी भावी पत्नी के लिए। इस के अलावा दस तोड़े अशर्फियों के मेरे लिए हों जिन्हें मैं रास्ते में लुटाता चलूँ।
जिन्न यह आदेश पा कर गायब हो गया और दो क्षणों में यह सारी चीजें ला कर दे दीं। अलादीन ने अशर्फियों के चार तोड़े अपनी माँ को दिए ताकि शाही महल में इनाम- इकराम के काम आएँ और छह तोड़े अपने साथ चलनेवाले बारह गुलामों में से छह को दिए कि मुट्ठी भर-भर कर अशर्फियाँ फकीरों और गरीबों के लिए बादशाह के महल तक लुटाते चलें। अपनी माँ के आगे छह दासियाँ करके कहा, यह छह तो तुम्हारी सेवा के लिए हैं। इनके अलावा यह दो दासियाँ बहुमूल्य वस्त्र लिए हैं, इनमें एक जोड़ा जो तुम चाहो बदर बदौर को दे देना और दूसरा अपने लिए रख लेना। फिर उस ने जिन्न से कहा कि इस समय तुम जाओ, जब फिर जरूरत पड़ेगी तो तुम्हें बुलाऊँगा। जिन्न यह सुन कर गायब हो गया।
इस के बाद अलादीन ने एक दास को शाही दरबार में भेजा कि बादशाह से कहे कि अलादीन आना चाहता है। वह जा कर वापस हुआ और बोला, बादशाह और सारे सरदार आप की प्रतीक्षा में हैं। अलादीन कभी घोड़े पर न बैठा था किंतु उस बढ़िया घोड़े पर शान से बैठा और उसे कुदाता हुआ बाजार से निकला। लोगों की भीड़ लग गई और अलादीन के दासों ने अशर्फियाँ लुटानी शुरू कर दीं। लोगों ने अलादीन को हमेशा फटेहाल देखा था। उसे इस ठाठ-बाट में देख कर कोई पहचान न सका और लोग आपस में बातें करने लगे कि यह शानदार आदमी जो इतने खुले हाथों से अशर्फियाँ लुटा रहा है, कौन है। सारे शहर में उस की चर्चा होने लगी और जानकार लोगों ने बताया कि कुछ ही देर पहले इस ने बादशाह के लिए ऐसी बहुमूल्य भेंट भेजी है जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। उन्होंने यह भी बताया कि इसी आदमी से शहजादी का विवाह होना निश्चित हुआ है। यह सुन कर लोग बड़े खुश हुए और कहने लगे कि वास्तव में शहजादी के लिए इस से अधिक उपयुक्त वर का मिलना असंभव था।
जब अलादीन महल के बाहरी फाटक पर पहुँचा तो उस ने चाहा कि घोड़े से उतरूँ। लेकिन वहाँ उस के स्वागत के लिए मंत्री, सरदार और अमीर-उमरा जो जमा हुए थे उन्होंने उसे उतरने नहीं दिया और उसे घोड़े पर बिठाए हुए ही प्रांगण में से ले गए। जब वह दरवाजे पर पहुँचा तो इन लोगों ने उसे घोड़े से उतारा और दो पंक्तियाँ बना कर उन के बीच में अलादीन को करके सम्मानीय अतिथि के रूप में बादशाह के सामने ले गए। अलादीन का रूप-रंग और वेशभूषा देख कर बादशाह को योग्य दामाद के पाने पर बड़ी प्रसन्नता हुई। अलादीन ने चाहा कि बादशाह के पाँवों पर गिरे किंतु बादशाह ने उसे ऐसा करने से रोक दिया और उसे अपने साथ ही सिंहासन पर बिठा लिया।
बादशाह ने कहा, तुम किस देश से आए हो? अलादीन ने कहा, मैं आप ही की प्रजा में से हूँ, यहीं का निवासी हूँ, किंतु शहजादी के बगैर जिंदा नहीं रह सकता इसीलिए आप की सेवा में आया हूँ। बादशाह ने उसे गले लगा कर कहा, मैं अन्यायी नहीं हूँ। मैं ने जो वचन दिया है उस पर कायम हूँ। मेरे सामने मरने-जीने की बातें न करो, तुम मुझे बहुत प्यारे हो। मैं ने जैसी तुम्हारी प्रशंसा सुनी थी वैसा ही तुम्हें पाया। यह कह कर बादशाह ने इशारा किया तो चारों ओर से तरह-तरह के बाजे बजने लगे। फिर बादशाह अलादीन का हाथ पकड़ कर उसे महल के अंदर ले गया और दोनों ने साथ-साथ भोजन किया। बादशाह ने उस से विभिन्न विषयों पर बातें कीं और देखा कि वह हर बात का बुद्धिमानी और शालीनता के साथ उत्तर देता है। बादशाह इस बात से बहुत खुश हुआ। भोजन से निवृत्त हो कर उस ने काजी को बुलाया और निकाह पढ़ने की तैयारी के लिए कहा।
वह अलादीन को भेंटवार्ता के कक्ष में लाया जहाँ सरदारों और अमीरों ने अलादीन से बातें कीं और उस की बुद्धिमत्ता की प्रशंसा की। विवाह के बाद बादशाह ने अलादीन से कहा कि आज तुम इसी महल में रहो ताकि सुहागरात यहीं हो। अलादीन ने कहा, मैं आप की आज्ञा से बाहर नहीं हूँ किंतु मैं चाहता हूँ कि नया महल अपनी पत्नी के लिए बनवाऊँ और उसी में उस से भेंट करूँ। बादशाह ने कहा, अच्छी बात है, लेकिन तुम्हारा महल मेरे महल के पास ही होना चाहिए। मेरे महल के सामने एक बड़ा मैदान है। उस में तुम जहाँ भी चाहो अपना महल बनवा लो। यह कह कर उसे गले लगा कर विदा किया। अलादीन वापसी में भी दोनों ओर अशर्फियाँ लुटाता हुआ आया और प्रजाजन ने उस की दानशीलता और वैभव की और अधिक प्रशंसा की।
घर आ कर अलादीन अंदरूनी कमरे में गया। वहाँ उस ने चिराग को रगड़ कर फिर जिन्न को बुलाया। जिन्न ने सदा की भाँति उस से कहा, स्वामी, आज्ञा करें। अलादीन ने जिन्न से कहा, भाई, तुम प्रशंसा योग्य हो। जो कुछ भी मैं ने तुम से कहा है तुमने किया है। अब मैं तुम से एक बड़ा काम करने को कहता हूँ। बादशाह के महल के उस तरफ जो बड़ा मैदान है उस में तुम मेरे लिए एक बहुत ही शानदार महल बनाओ। तुम खुद ही जो पत्थर उचित समझो उस का महल बनाना। उस में एक बड़ी बारहदरी हो जिसकी छत गुंबददार हो और सिर्फ सोने-चाँदी की बनी हो। उस के चारों ओर के चौबीस दरवाजों में सिर्फ एक दरवाजा छोड़ कर बाकी में असंख्य रत्न जड़े हों। महल में एक बड़ा दीवानखाना और बहुत ही सुंदर फूलों का बाग भी होना चाहिए। उस का बावर्चीखाना ऐसा हों जिस में हजारों आदमियों का भोजन बन सके। उस के खजाने में असंख्य रत्न, अशर्फियाँ और रुपए हों। उस के भंडार गृह में हर मौसम के लायक कपड़ों की बहुतायात हो। उस की घुड़साल में सैकड़ों असील घोड़े हों और उन के लिए साईस भी। बहुत-से दास-दासियाँ और सेवक भी चाहिए। इस के अलावा मैं जो कुछ इस समय भूल रहा हूँ वह भी ला कर महल को सब प्रकार से संपूर्ण कर देना। जिस समय अलादीन ने जिन्न से यह सब करने को कहा उस समय संध्या हो रही थी। जिन्न ने कहा, कल सुबह जब आप जागेंगे तो आप को महल तैयार मिलेगा। यह कह कर जिन्न गायब हो गया और अलादीन अपने घर के शयन कक्ष में चला गया।
रात को अलादीन को काफी देर में नींद आई क्योंकि वह शहजादी के विरह में व्याकुल रहा। सवेरे कुछ देर में उस की आँख खुली तो जिन्न उस के पास आया और बोला कि चल कर देख लीजिए, जैसा महल आप ने कहा था वैसा बन कर तैयार हो गया है। अलादीन ने जा कर देखा तो उस की तबीयत खुश हो गई। अलादीन ने देखा कि महल काफी विस्तृत है और उस का प्रत्येक कक्ष इस तरह से सुसज्जित है जैसा अन्य कहीं मिलना मुमकिन नहीं है। हर जगह लाखों रुपए की सजावट है और सारा महल दास-दासियों से भरा हुआ है। सभी चुस्ती से अपना काम करने में लगे थे।
खजाने में सैकड़ों संदूक अशर्फियों, रुपयों तथा रत्नों से भरे हुए रखे थे। अलादीन को यह सब देख कर बहुत अच्छा लगा और उस ने जिन्न की बड़ी प्रशंसा की।
फिर वह जिन्न उसे घुड़साल में ले गया। वहाँ सारे देशों के अच्छी जातियों के घोड़े बँधे थे। हर एक के लिए एक होशियार साईस था और जड़ाऊ जीन लगामें थीं। कई घुड़साल के दारोगा भी साईसों के ऊपर नियुक्त थे। यह सब दिखाने के बाद जिन्न उसे भंडार गृह में ले गया। वहाँ जीवन की प्रत्येक आवश्यक वस्तु भरी पड़ी थी। इसी तरह कई तहखाने और कई ऊपरी कक्ष भी जिन्न ने उसे दिखाए। फिर वह खास बारहदरी दिखाई जिस के लिए अलादीन ने कहा था। यह सारा वैभव देख कर अलादीन बहुत खुश हुआ। फिर उस ने जिन्न से कहा, यह सब बहुत अच्छा है लेकिन एक चीज रह गई है जिसे प्रस्तुत करने के लिए तुम से कहना मैं भूल गया था। मैं चाहता हँ कि एक काफी चौड़ाईवाला मखमली कालीन मेरे महल से ले कर राजमहल के द्वार तक बिछ जाए ताकि रास्ते पर मेरी स्त्री उस पर चल कर आए। जिन्न ने तुरंत ही मखमली कालीन भी बिछवा दिया।
राजमहल के सेवकों ने सुबह जब द्वार खोले तो देखा कि महल के सामने के मैदान में एक बहुत बड़ा भवन बना हुआ है। यह देख कर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। इस से भी अधिक आश्चर्य की बात यह थी कि उस महल के द्वार से राजमहल के द्वार तक एक चौड़ा मखमली कालीन बिछा हुआ है। उन्होंने महल में सब लोगों से यह कहा। मंत्री जब दरबार में आया तो उसे भी यह सब देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ। दरबार के समय उस ने बादशाह से सिर नवा कर कहा, सरकार, राजमहल के सामने के मैदान में एक बड़ा भारी महल दिखाई देता है। कल तक वह मौजूद नहीं था। मुझे तो ऐसा लगता है कि काम जादू का है।
बादशाह ने मंत्री से बिगड़ कर कहा, तुम बिल्कुल गलत कहते हो। यहाँ जादू की कोई बात नहीं है। कल शादी के बाद जब मैं ने उस से राजमहल में रात बिताने को कहा तो उस ने मुझ से आज्ञा माँगी कि मैदान में अपने लिए महल बनवा लूँ और शहजादी का वहीं स्वागत करूँ। तुम्हें उस से जलन है इसलिए जादू आदि की बात करते हो। असली बात यह है कि अलादीन के पास अपार धन है। अगर उस ने लाखों लोगों को काम पर लगा कर एक रात में महल तैयार करवा लिया तो आश्चर्य की क्या बात है। चूँकि दरबार का समय आरंभ हो गया था इसलिए इस विषय पर बादशाह और मंत्री के बीच ओर कोई बातचीत न हो सकी।
अलादीन जिन्न को विदा दे कर अपने पुराने घर में आया। उस की माँ राजमहल में जाने के लिए कपड़े पहन रही थी। अलादीन ने कहा, अम्मा, तुम राजमहल उस समय जाना जब बादशाह दरबार खत्म करके अंतःपुर में जाए। तुम राजमहल में इन दो दासियों के साथ जाना और जिन्न ने हमें जो पोशाकें ले जाने के लिए दी हैं, यह दोनों जोड़े और जेवर तुम शहजादी ही को दे देना। यह सुन कर उस ने वस्त्र पहनना समाप्त किया और बुरका ओढ़ कर राजमहल को गई। इधर अलादीन पिछले दिन की तरह अशर्फियाँ लुटाता हुआ अपने नए महल में आया।
उस की माँ राजमहल में पहुँची तो चोबदारों ने उस के आगमन की सूचना बादशाह को दी। उस ने उस के स्वागतार्थ बाजों के बजाए जाने की आज्ञा दी। महल के बाहर भी बाजे बजने लगे। यह इस बात की सूचना देने के लिए कि शहजादी आज ससुराल जानेवाली है। सारे नागरिकों ने उत्सव मनाना शुरू कर दिया। रात की दीप मालिकाओं का प्रबंध किया जाने लगा। व्यापारी लेन-देन छोड़ कर अपनी दुकानों और घरों की सजावट करने लगे। हर दरवाजे पर वंदनवार और बैठक में कीमती कालीन बिछाए गए। लोग बड़ी तादाद में आ कर शहजादी के जाने के मार्ग पर जमा हो गए। सभी को अलादीन द्वारा बनवाए हुए नए महल तथा राजमहल से उस महल तक के मार्ग पर बिछे हुए कालीन को देख कर बड़ा आश्चर्य था।
महल के ख्वाजासराओं का सरदार अलादीन को सम्मानपूर्वक महल के अंदर ले गया। शहजादी ने भी उठ कर सम्मानपूर्वक अपनी सास की अगवानी की। अलादीन की माँ ने वे वस्त्राभूषण जो अपने साथ लाई थी शहजादी को पहनाने के लिए दिए। सेविकाओं और दासियों ने वे वस्त्राभूषण शहजादी को पहनाए। जब वह ससुराल से आए वस्त्राभूषण पहन चुकी तो बादशाह भी उसे देखने को आया। उस ने पहली बार अलादीन की माँ का खुला चेहरा देखा (क्योंकि अब दोनों में रिश्तेदारी हो गई थी) और कहने लगा, मैं तो आप को खूसट बुढ़िया समझे हुए था। अब देखता हूँ तो आप बुद्धिमती ही नहीं बल्कि सुंदर और जवान भी लगती हैं।
दिन भर उत्सव और दावतें होती रहीं। शाम को दुल्हन अपनी ससुराल के लिए विदा हुई। बादशाह और शहजादी गले मिल कर रोए। फिर शहजादी पतिगृह को चल दी। उस के पीछे सौ दासियों को ले कर अलादीन की माँ चली। यह जुलूस जब महल के मुख्य द्वार पर आया तो वहाँ से एक पार्श्व में सौ सरदार तथा दूसरे में उतने ही ख्वाजासरा शहजादी के आगे हो लिए। इन सब के बीच में सुंदरता की प्रतिमूर्ति शहजादी मखमली कालीन पर हंस की गति से चलने लगी। अलादीन के महल से डोमिनियों और मोरासिनों ने शहजादी को आते देख कर उस की अगवानी में गीत गाए। वह महल के द्वार पर पहुँची तो अलादीन उस के स्वागत के लिए आया। उस की माँ ने बताया कि शहजादी कौन है क्योंकि बढ़िया पोशाकें पहने हुए बीसियों सुंदरी दासियाँ वहाँ मौजूद थीं। शहजादी ने भी पहली बार अलादीन को देखा था क्योंकि विवाह के समय तो लज्जावश वह सिर ही नहीं उठा सकी थी। अलादीन को स्वस्थ और सुंदर देख कर उसे बड़ी प्रसन्नता हुई। अलादीन ने बड़ी सुशीलता के साथ उस से कहा, मेरे बड़े भाग्य हैं कि मैं ने तुम जैसी भुवनमोहिनी कोमलांगी वैभवशाली राजकुमारी को पाया है यद्यपि मेरी हैसियत कुछ नहीं है। भगवान ने शायद तुम से सुंदर किसी को रचा ही नहीं।
शहजादी ने भी वैसी ही शालीनता दिखाते हुए कहा, ऐ मेरे सिरताज, वैसे तो मैं लड़की होने के कारण विवाह में अपने पिता की इच्छा की पाबंद हूँ और वे जिसे मेरा पति बनाते उसे मैं प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लेती। किंतु अब आप को देख कर अपना भाग्य सराहती हूँ कि मेरे पिता ने मेरे लिए कितना अच्छा वर तलाश किया है। अलादीन यह शालीन उत्तर सुन कर प्रसन्न हुआ। फिर उस ने सम्मानपूर्वक पत्नी का हाथ चूम कर कहा, पर तुम इतनी दूर पैदल चलने में बहुत थक गई होगी। हम लोग चल कर बारहदरी में बैठें और कुछ जलपान करें।
बारहदरी में इतनी जबर्दस्त सजावट थी कि आँखें चौंधियाई जाती थीं। सैकड़ों मोमबत्तियों की रोशनी में सारी छत और दीवारें, परदे आदि जगमगा रहे थे। रेशमी दस्तरख्वानों पर बीसियों सोने-चाँदी की तशतरियाँ रखी थीं जिनमें भाँति-भाँति के स्वादिष्ट व्यंजन थे। लाखों रुपए का सामान अकेली उस बारहदरी में लगा था। शहजादी कहने लगी, मैं तो समझती थी कि मेरे पिता के महल से ज्यादा शानदार और कोई जगह न होगी किंतु इस महल के आगे तो वह कुछ भी नहीं है।
अलादीन, शहजादी और अलादीन की माँ भोजन करने बैठे तो गायिकाओं ने सुंदर साजों पर मधुर गायन आरंभ किया। शहजादी फिर कहने लगी कि मैं ने जीवन में कभी ऐसा मोहक गायन नहीं सुना। उस बेचारी को क्या पता था कि यह गानेवालियाँ खुद परियाँ हैं जिन्हें चिराग का जिन्न लाया है। शहजादी या किसी को भी सिवा अलादीन और उस की माँ के चिराग का भेद भी ज्ञान नहीं था।
फिर दासियों ने खाने के बरतन उठा दिए और नर्तकियों का एक समूह आया। उस ने तरह-तरह के नृत्य और नाटक उपस्थित किए। जब आधी रात हो गई तो शहजादी और अलादीन भी नाचे क्योंकि चीन में यही रिवाज था कि शादी की पहली रात को दूल्हा-दुल्हन भी नाचते थे। फिर अलादीन और शहजादी अपने शयन कक्ष में गए। रात भर अलादीन आराम से सोया। दूसरे दिन सवेरे दासियाँ उसे पहनाने के लिए नए कपड़े लाईं। यह वस्त्र उसी तरह के थे जैसे पहले दिन के कपड़े थे यद्यपि वे उनसे रंग में किंचित भिन्न थे। सोने-चाँदी की जरदोजी का काम इन पर भी वैसा ही था। इस के बाद उस की सवारी के लिए एक घोड़ा लाया गया जो पिछले दिनवाले घोड़े से भिन्न था किंतु तेजी में उसी तरह का था।
अलादीन घोड़े पर सवार हो कर बिजली जैसी तेजी से राजमहल पहुँचा। उस के साथ दासों का एक दल भी था। बादशाह ने पिछले दिन की भाँति ही उस से सम्मान के साथ भेंट की और अपने साथ ही तख्त पर बिठाया। कुछ देर दरबार में रहने के बाद जहाँ उस ने कई मुकदमों में अलादीन से सलाह ली, वह दरबार खत्म करके महल में आया और अलादीन को भी हाथ पकड़ कर अपने साथ लाया।
अपने विश्राम कक्ष में बैठने के बाद उस ने आज्ञा दी कि भोजन प्रस्तुत किया जाए। अलादीन ने निवेदन किया, आज इस दास को यहाँ न खिलाइए बल्कि इसी के घर में रूखा-सूखा भोजन ग्रहण करके इसे अनुग्रहीत कीजिए। बादशाह ने यह निमंत्रण स्वीकार किया। वह दाईं ओर अलादीन, बाईं ओर मंत्री और पीछे दरबारियों को ले कर आया। सभी ने अलादीन के नए महल के प्रत्येक भाग को देखा। हर एक कक्ष को देख कर उन सभी को बड़ा आश्चर्य होता था। अंत में अलादीन सभी को बारहदरी में ले गया। बादशाह ने वहाँ बैठ कर मंत्री से कहा कि मेरे खयाल में दुनिया भर में इतना शानदार महल कोई नहीं होगा। मंत्री ने कहा, पृथ्वीपालक, परसों तक इस महल का कहीं नामोनिशान नहीं था, कल सुबह ही यह दिखाई दिया है। मैं ने ही आप को सब से पहले इस के तैयार होने की सूचना दी थी। बादशाह ने कहा, यह सच है। तुम्हीं ने मुझे इस के बारे में बताया था और मुझे यह बात भूली नहीं है। लेकिन मैं यह नहीं समझता था कि इतना सुंदर महल अलादीन ने बनवाया होगा। हम लोग जहाँ संगमरमर की दीवारों और छतों को बहुत समझते हैं वहाँ यहाँ सोने और चाँदी की ईटों का प्रयोग हुआ है। हम लोग जहाँ लोहे और पीतल से दरवाजों को सजाते हैं वहाँ इन दरवाजों में जवाहरात लगे हैं। यहाँ के तो ठाठ ही निराले हैं।
बादशाह उत्सुकतावश बारहदरी के दरवाजों को घूम-घूम कर गौर से देखने लगा। फिर उस ने आश्चर्यान्वित हो कर मंत्री से कहा, इस बारहदरी के तेईस दरवाजों में तो बहुमूल्य रत्न ऊपर से नीचे तक जड़े हैं किंतु एक दरवाजा बिल्कुल सादा रह गया। शायद अलादीन को इसमें रत्न जड़वाने का समय नहीं मिला। यह भी संभव है कि उस के पास के जवाहरात खत्म हो गए हों और यह दरवाजा छूट गया हो। खैर, कोई बात नहीं है। बाद में वह फुरसत से इस दरवाजे पर भी रत्न जड़वा देगा।
उस समय अलादीन किसी काम से गया था। उस के आने पर बादशाह ने पूछा कि एक दरवाजा बगैर रत्नों के कैसे रह गया। अलादीन ने कहा, इस के सादा रहने का कोई कारण नहीं था, किसी तरह यूँ ही सादा रह गया। अब आप की कृपा होगी तो इसमें भी जवाहरात जड़ जाएँगे।
बादशाह ने कहा, तुम्हारी इच्छा हैं तो ऐसा ही होगा। मैं इसे रत्नजटित करवा दूँगा। यह कह कर उस ने नगर के सारे जौहरियों को बुलाया। इधर अलादीन बादशाह को भोजन कक्ष में ले गया जहाँ शहजादी भी अपने पिता से मिली। वह बहुत प्रसन्नवदन दिखाई दे रही थी। वहीं जमीन पर बहुमूल्य दस्तरख्वान बिछे थे और रत्नजटित स्वर्ण पात्रों में नाना प्रकार का भोजन परोसा रखा था। एक जगह शहजादी और बादशाह के साथ अलादीन और दूसरी जगह मंत्री और दरबारी बैठ कर भोजन करने लगे। भोजन करने के बाद बादशाह ने व्यंजनों की प्रशंसा की और कहा कि यद्यपि मेरा बावर्चीखाना बहुत अच्छा है किंतु मैं ने भी ऐसे स्वादिष्ट व्यंजन नहीं खाए।
कुछ देर में मंत्री ने बादशाह से कहा कि आप ने जिन जौहरियों को बुलाया था वे सब आ गए हैं। बादशाह ने उन्हें बुला कर कहा, इन तेईस दरवाजों के रत्नों की बनावट और सज्जा तुम भली-भाँति देख लो। तुम लोगों को चौबीसवाँ दरवाजा भी ऐसा ही जड़ाऊ बनाना है। उन लोगों ने अच्छी तरह देख-भाल कर कहा, हम रत्न जड़ तो सकते हैं किंतु हमारे पास ऐसे मूल्यवान रत्न नहीं है। बादशाह ने कहा, इसकी चिंता न करो। शाही खजाने से जितने जवाहरात चाहो ले लेना। मंत्री ने भी अपनी वफादारी दिखाने के लिए कहा, मैं अपने पास से सारे रत्न दे दूँगा। किंतु दरवाजा ठीक वैसा ही बनना चाहिए जैसे अन्य दरवाजे हैं।
बादशाह अपने महल में गया। उस ने और मंत्री ने सारे रत्न, जिनमें अलादीन की माँ द्वारा भेंट किए हुए रत्न भी थे, जौहरियों के हवाले कर दिए। उन्होंने अपने कारीगर लगवा कर बारहदरी के खाली दरवाजे पर अन्य दरवाजों के नमूने पर रत्न जड़वाए। एक महीने के काम के बाद देखा गया कि बादशाह और मंत्री के दिए हुए सारे रत्न खत्म हो गए लेकिन दरवाजा पूरा फिर भी न भरा। वे लोग परेशान होने लगे कि बादशाह से जा कर क्या कहेंगे। उस समय अलादीन ने उन से कहा, तुम लोगों ने भरसक प्रयत्न किया। अब तुम यह जड़े हुए रत्न उखाड़ कर बादशाह और मंत्री के पास वापस पहुँचा दो। दरवाजे की फिक्र न करो, वह जड़ जाएगा।
वे लोग रत्न उखाड़ कर ले गए तो अलादीन ने अकेले में फिर चिराग को रगड़ा और जिन्न के आने पर कहा, अब तुम इस दरवाजे को भी दूसरे दरवाजे की तरह बना दो। जिन्न गायब हो गया। अलादीन भी कहीं चला गया। दो क्षण बाद उस ने आ कर देखा कि सादा दरवाजा भी दूसरे दरवाजों की तरह बन गया है। उस ने दास भेज कर सारे जौहरियों को वापस बुलाया और दरवाजा दिखा कर कहा, रत्नों को वापस करते समय यह भी कह देना कि अलादीन ने सादा दरवाजा भी रत्नजटित करवा दिया है। सारे जौहरियों को इस बात पर घोर आश्चर्य हुआ लेकिन वे चुपचाप चले गए।
उन्होंने जा कर बादशाह और मंत्री को रत्न वापस किए और अलादीन का दिया हुआ संदेश भी देना चाहा किंतु बादशाह उन की बात सुने बगैर फिर मंत्री को ले कर अलादीन के महल में आ गया और उसे स्वागत-सत्कार का अवसर दिए बगैर बारहदरी में चला गया। वह अलादीन से कहने लगा, बेटे, मैं सिर्फ यह पूछने के लिए यहाँ आया हूँ कि तुमने उस दरवाजे की जड़ाई क्यों रोक दी और मेरे और मंत्री के रत्न क्यों वापस कर दिए। उस ने कहा, मैं ने खुद ही दरवाजा जड़वा लिया, आप देख लें।
बादशाह ने जा कर देखा तो पहचान ही न सका कि कौन-सा दरवाजा था जिसकी नई जड़ाई हुई है। वह यह देख कर बहुत खुश हुआ। वह कहने लगा, बेटे, तुम जैसा कोई आदमी नहीं हो सकता। तुम हमेशा ऐसे काम करते हो जो मनुष्य की सामर्थ्य के बाहर हैं। तुम वाकई हर बात में कमाल करते हो। अलादीन ने विनयपूर्वक सिर झुका कर कहा, यह सब आप की महत्ता और आप का मुझ पर अनुग्रह है जो यह प्रशंसा कर रहे हैं वरना मैं तो किसी योग्य भी नहीं हूँ। इस के बाद बादशाह अपने महल में चला गया। वहाँ उस ने मंत्री से अलादीन के महल की प्रशंसा की। मंत्री ने कहा कि मुझे तो यह सब जादू लगता है। बादशाह ने हँस कर कहा, तुम्हें अब भी अलादीन से इसलिए जलन है कि तुम्हारे बेटे के बजाय उसे दामाद बना लिया। वह कसक तुम्हारे दिल से नहीं गई इसीलिए तुम अलादीन की प्रशंसा नहीं सुन सकते। मंत्री यह सोच कर चुप हो रहा कि बादशाह मूर्ख है और धोखे ही में रहना चाहता है। बादशाह रोज अपने महल की छत पर खड़ा हो कर अलादीन के महल को देखता और मन ही मन उस की प्रशंसा किया करता।
अलादीन शौकीन भी था और दिल का अच्छा भी। वह सप्ताह में एक दिन बाजार में सवार हो कर निकलता, कभी मसजिद में सबके साथ नमाज पढ़ने जाता, कभी मंत्री और अन्य अमीरों-सरदारों के घर उनसे मिलने जाता और अपने घर पर भी उनकी दावतें करता। उस ने दासों को यह काम सौंप रखा था कि जब उस की सवारी निकले तो दोनों ओर फकीरों और निर्धनों के लिए अशर्फियाँ लुटाते चलें। इस कारण जब वह सवार हो कर निकला तो रास्ते में भीड़ हो जाती और लोग उस की शान-शौकत और उदारता की प्रशंसा करते। जो भिखमंगे और निर्धन उस के घर पर जा कर सहायता प्राप्त करने में असमर्थ होते उन्हें भी वह इस प्रकार मदद देता। इस के अलावा हर हफ्ते वह एक बार शिकार के लिए भी जाता था। कभी तो नगर के पास ही शिकार खेल कर वापस चला आता था और कभी जंगल में इतनी दूर निकल जाता कि दो-चार दिन बाद आता।
उस ने अपनी दानशीलता के कारण नगर में किसी को निर्धन न रहने दिया था। इस उदारता के कारण जनसाधारण उसे बहुत प्यार करने लगे थे। यहाँ तक कि उस के सिर की कसम खानेवाले पर भी तुरंत विश्वास कर लिया जाता। साथ ही वह बादशाह को भी प्रसन्न रखता था। वह उसे अपने पराक्रम से भी प्रभावित करना चाहता था। उसे जल्दी ही इसका अवसर मिल गया। बादशाह ने यह इरादा किया कि अपने एक पुराने वैरी बादशाह पर हमला करके उस का राज्य ले ले।
इसलिए उस ने बड़ी फौज जमा की। अलादीन ने कहा, इतनी अधिक सेना की क्या जरूरत है। मुझे आज्ञा दें तो मैं थोड़ी-सी ही सेना ले कर वैरी को खत्म कर दूँ। बादशाह ने अनुमति दे दी और अलादीन ने युद्ध कौशल से थोड़ी-सी सेना के बल पर ही दुश्मन को हरा दिया। बादशाह इस विजय का समाचार सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ, उस की शक्ति बहुत बढ़ गई। अलादीन का भी दूर-दूर तक नाम हुआ। अलादीन इसी प्रकार कई वर्ष तक सम्मानपूर्वक रहा।
जिस जादूगर ने अलादीन को गढ़ेवाली गुफा में बंद किया था उसे विश्वास था कि अलादीन वहीं मर-खप गया होगा। फिर भी एक दिन उसे बैठे-बैठे खयाल आया कि देखें तो उस का क्या हाल है।
उस ने अपने दालान में बैठ कर संदूकचे से रमल की पुस्तकें और यंत्र निकाले और कई घंटों तक विचार करता रहा कि अलादीन का क्या हाल है। उसे यह देख कर आश्चर्य हुआ कि बार-बार रमल फेंकने पर भी यही मालूम हुआ कि अलादीन अत्यंत धनवान हो गया है और उस का विवाह चीन की राजकुमारी से हो गया है। इस बात को जान कर उस के हृदय में ईर्ष्या की लपटें उठने लगीं। उस का चेहरा लाल हो गया ओर आँखों से जैसे खून टपकने लगा। वह सोचता रहा कि भाग्य की विडंबना देखो कि सारी मेहनत मैं ने की और उस का फल भोग रहा है वह आवारा दरजी का बेटा।
उस ने कई दिनों तक इस बात पर विचार किया और अंत में इस नतीजे पर पहुँचा कि घर में पड़े-पड़े पछताने से कोई लाभ नहीं हैं, एक बार फिर चीन की यात्रा करनी चाहिए। किसी तरह अलादीन से वह जादू का चिराग लेना चाहिए जिस से वह इतना अमीर बना है कि शहजादी को ब्याह सके। उस ने यह भी सोचा कि अगर संभव हो तो अलादीन को मार भी डालना चाहिए। अजीब बात यह थी कि अलादीन को जादू का छल्ला देने के बाद वह उस के बारे में भूल ही गया था। अलादीन को भी उस की याद न रही थी। दोनों चिराग से अभिभूत थे।
जादूगर घोड़े पर बैठ कर चीन को चल पड़ा। उस ने रातों को सरायों में सोने के अलावा कहीं दम न लिया और कुछ महीनों में चीन जा कर अलादीन के नगर में, जो राजधानी थी, पहुँच गया। उस ने एक सराय में कमरा किराए पर लिया और नगर में घूम कर अलादीन के बारे में पता लगाने लगा। एक दिन बहुत-से लोग अलादीन के विचित्र महल की बातें कर रहे थे। उस ने पूछा, यह अलादीन कौन है? लोगों ने कहा, तुम विदेशी हो इसीलिए उसे नहीं जानते। वह बड़ा ही अमीर है, बादशाह का दामाद है और उस का महल शाही महल से कहीं बढ़ कर शानदार है। हम लोग बताएँगे तो तुम्हें विश्वास नहीं होगा, अपनी आँखों से उस का महल देखोगे तो विश्वास होगा।
जादूगर ने कहा, मैं वास्तव में परदेशी हूँ। मैं अफ्रीका का रहनेवाला हूँ। कल ही यहाँ आया हूँ। आप लोग कृपा करके बताएँ कि अलादीन का विचित्र महल कहाँ पर है तो मैं भी उसे देखूँ। लोगों ने उसे अलादीन के महल का पता बता दिया। उस जादूगर ने जा कर महल को चारों ओर से भली प्रकार से देखा। उसे निश्चय हो गगा कि उसी चिराग के बल पर अलादीन ने यह महल बनवाया है क्योंकि चिराग का जिन्न हर बात कर सकता है। वह सराय में वापस आ कर अपना कमरा बंद करके फिर रमल की पुस्तकें खोल कर बैठ गया और विचार करने लगा कि इस समय वह चिराग कहाँ है। उसे मालूम हुआ कि चिराग किसी आदमी के पास नहीं है बल्कि उसी महल के एक कमरे में रखा हुआ है। साथ ही उसे यह भी मालूम हुआ कि अलादीन इस समय महल में नहीं है और कई दिनों तक महल में नहीं आएगा। वह यह सब जान कर बड़ा प्रसन्न हुआ क्योंकि अलादीन की अनुपस्थिति में वह आसानी से धूर्ततापूर्वक चिराग को हथिया सकता था और चिराग हाथ में आने के बाद उसे अलादीन या किसी और की क्या चिंता थी।
अपनी पुस्तकें आदि बंद करके वह सराय के मालिक के पास गया और अलादीन के विचित्र महल की बड़ी प्रशंसा करने के बाद कहने लगा कि महल देख कर तो मैं बड़ा प्रसन्न हुआ, अब चाहता हूँ कि उस के मालिक को भी देखूँ। सरायवाले ने कहा, यह क्या मुश्किल है। वह हर हफ्ते सवार हो कर शहर में निकलता है। लेकिन अभी पाँच दिन तक न आएगा क्योंकि शिकार खेलने के लिए दूर के किसी जंगल में गया है। जादूगर के लिए इतनी सूचना काफी थी। वह कुछ देर तक सोचता रहा फिर एक ठठेरे की दुकान पर गया जहाँ धातु की वस्तुएँ बनती थीं। उस ने ठठेरे से कहा कि मुझे ताँबे के बारह सुंदर और बड़े चिराग चाहिए। ठठेरे ने कहा, आज तो नहीं हो सकता किंतु कल तुम्हें चिराग मिल जाएँगे। जादूगर ने कहा, कोई हर्ज नहीं। कल ही दे देना। लेकिन यह ध्यान रहे कि उन्हें खूब रगड़ कर देना ताकि वे चमचमाने लगें। दाम जो भी माँगोगे दे दूँगा। ठठेरे ने चिराग बनाना मंजूर कर लिया।
दूसरे दिन जादूगर ने ठठेरे से बारह सुंदर चमचमाते हुए नए चिराग लिए और उन्हें एक खूबसूरत टोकरी में रख कर अलादीन के महल की ओर चला। जब पास पहुँचा तो ऊँची आवाज में हाँक लगाने लगा, पुराने दीपकों से बदल कर नए चिराग ले जाओ, पुराने दीपकों से बदल कर नए चिराग ले जाओ। गलियों में खेलनेवाले लड़के वहाँ जमा हो गए और पागल समझ कर हो-हल्ला करने लगे और मजाक में उसे अजीब नामों से पुकारने लगे। अधिक अवस्था के लोग भी उस की विचित्र हाँक को सुन कर हँसने लगे और कहने लगे कि यह आदमी पागल हो गया है जो उल्टा व्यापार कर रहा है।
जादूगर ने न तो बड़ी उम्र के लोगों के हँसने की परवा की न लड़कों की भद्दी बातों का बुरा माना। वह बराबर यही आवाज लगाता रहा। पुराने दीपकों से बदल कर नए चिराग ले जाओ। उस समय बदर बदौर अपनी सुसज्जित बारहदरी में बैठी थी। उस ने जादूगर की आवाज सुनी लेकिन समझ न सकी कि वह क्या कह रहा है क्योंकि लड़के बहुत शोर कर रहे थे। इसलिए उस ने एक दासी से, जो उस के पिता के महल से उस के साथ आई थी, कहा कि बाहर जा कर देखो कि कैसा शोर हो रहा है। वह दासी थोड़ी देर बाद हँसती हुई वापस आई तो शहजादी ने कहा, क्यों दाँत निपोर रही है? बताती क्यों नहीं कि क्या बात है? दासी ने अपनी हँसी पर काबू पा कर कहा, मालकिन, एक अजीब पागल आदमी है। नए दीये लिए है। उन्हें बेचता नहीं बल्कि कहता है कि पुराने दीये दे कर नए ले जाओ।
शहजादी हँसने लगी। दासी ने कहा, एक मैला-कुचैला दीया मैं ने अंदर रखा देखा है। ऐसे शानदार महल में वह अच्छा नहीं लगता। आप कहें तो उसे बदल लाऊँ। यह वही जादू का चिराग था। उसे मैला तो होना ही था क्योंकि जरा-सी रगड़ से जिन्न आ जाता था। अलादीन को चाहिए था कि हमेशा अपने ही पास वह चिराग रखता किंतु विनाशकाले विपरीत बुद्धिः। फिर इतने दिनों के ऐश-आराम के बाद वह चिराग की रक्षा की ओर से बेपरवाह भी हो गया। उस ने बादशाह और बदर बदौर को उस के बारे में कुछ न बताया था क्योंकि जादू की बात से शायद उसे धोखेबाज समझा जाता। उस की माँ इस समय तक मर चुकी थी और इस समय अलादीन और जादूगर के अलावा कोई मनुष्य उस चिराग का रहस्य नहीं जानता था।
शहजादी को दासी की बात पसंद आई। उस ने एक दास से कहा, यह दासी जो चिराग बता रही है उसे ले जाओ ओर इस के बदले में नया चिराग ले आओ। वह दास जो चिराग को ले कर जादूगर के पास गया और बोला, यह पुराना दीया लो और नया दीया दे दो। जादूगर इसे देखते ही समझ गया कि यही उस का वांछित चिराग है। उस ने दास के हाथ से चिराग लिया और उस के आगे टोकरी दी कि इनमें से जो दीप कर चाहो छाँट कर ले जाओ। दास ने उस में से सब से अच्छा चिराग ले कर मालकिन को दे दिया। यह होने के बाद लड़कों ने फिर शोर करना शुरू कर दिया।
जादूगर आगे बढ़ा लेकिन अब उस ने आवाज लगाना बंद कर दिया था। अब लड़कों को भी उसे छेड़ने में मजा नहीं आ रहा था इसलिए वे भी इधर-उधर बिखर कर अपने खेलों में लग गए। जादूगर ने जब दोनों महलों के बीच का मैदान पार कर लिया और तंग और सुनसान गलियों में घुसा तो तेज-तेज चलने लगा। एक बिल्कुल निर्जन स्थान में उस ने टोकरी और सारे नए चिराग कूड़े में फेंक दिए और जादू के चिराग को निकाला। वह सराय में भी न गया क्योंकि वह रमल की सामग्री अपने साथ ले आया था और जादू का चिराग पाने के बाद उसे सराय में रखे सामान और घोड़े की क्या चिंता होनी थी। आधी रात तक वह उसी निर्जन स्थान में रहा फिर उस ने चिराग को रगड़ा। जिन्न ने प्रकट हो कर आदेश माँगा तो जादूगर ने कहा कि मुझे और अलादीन के पूरे के पूरे महल को उठा कर अफ्रीका में मेरे निवास स्थान पर पहुँचा दो। जिन्न ने तुरंत उस की आज्ञा का पालन किया और जादूगर के साथ अलादीन के महल को उस के अंदर के सभी लोगों के साथ अफ्रीका पहुँचा दिया।
बादशाह के बारे में पहले ही बताया जा चुका है कि वह रोजाना अपने महल की छत पर चढ़ कर अलादीन के महल को देखा करता था। दूसरे दिन वह हमेशा की तरह उस महल को देखने गया तो उसे साफ मैदान ही दिखाई दिया। उस ने अपनी आँखों को मला। उसे आश्चर्य हुआ कि सूरज साफ चमक रहा है, न बादल हैं न कुहरा, फिर भी अलादीन का महल क्यों नहीं दिखाई दे रहा है। उस ने चारों ओर आँखें फाड़-फाड़ कर देखा किंतु उसे महल नहीं दिखाई दिया। बादशाह को ऐसा मानसिक उद्वेग हुआ कि वह उस मैदान को जहाँ पर कल शाम तक वह महल खड़ा था देखता ही रहा, देखता ही रहा।
वह सोच रहा था कि हो क्या गया और कैसे हो गया। इतना बड़ा और रत्नों और सोने-चाँदी से जगमगाता हुआ महल ऐसे नजर से गायब हो गया जैसे पहले कभी था ही नहीं। उस का जरा-सा भी निशान नहीं दिखाई देता। अगर वह जमीन में धँसा होता तो उसके कंगूरे तो भूमि से निकले दिखाई देते, और यदि किसी कारण गिर पड़ा होता तो उस के मलबे का ढेर दिखाई देता। किंतु यह विश्वास होने पर भी कि महल नहीं है उस ने किसी दास या कर्मचारी से कुछ न कहा क्योंकि बात इतनी अविश्वसनीय थी कि उसे अपना दृष्टि-भ्रम ही समझता था। बार-बार उधर देखने के बाद वह निराश हो कर विश्रांत कक्ष में चला गया।
वहाँ जा कर उस ने मंत्री को बुलाया। वह आया और कहने लगा, पृथ्वीनाथ, आज आप ने इस समय यहाँ क्यों बुलाया है? कोई विशेष बात है क्या? बादशाह ने कहा, इस से अद्भुत बात क्या होगी जो आज हुई है? तुमने मैदान की ओर भी देखा है? मंत्री बोला, आप ने आज बड़े सरदारों की विशेष सभा बुलाई थी, मैं तो सुबह से उसी के प्रबंध में लगा हूँ। मैं ने कुछ नहीं देखा। बादशाह ने कहा, तुम अभी महल की छत पर चढ़ो और देख कर बताओ कि अलादीन का महल दिखाई देता है या नहीं।
मंत्री ने राजाज्ञा के अनुसार ऊपर जा कर देखा तो उसे भी चटियल मैदान के अलावा कुछ न दिखाई दिया। उस ने भी चारों ओर आँखें फाड़-फाड़ कर देखा और जब उसे विश्वास हो गया कि महल अदृश्य है तो नीचे उतर कर बादशाह के समीप आया। बादशाह ने पूछा कि तुम्हें अलादीन का महल दिखाई दिया या नहीं। मंत्री ने हाथ जोड़ कर कहा, स्वामी, इस सेवक ने पहले ही निवेदन किया था कि यह सब जादू के सिवा कुछ नहीं। आप ने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया।
बादशाह ने क्रोध में भर कर कहा, यह समय तुम्हारी बात को सच या झूठ साबित करने का नहीं है। मुझे बताओ कि वह बदमाश और मक्कार अलादीन कहाँ है। मैं उसे मृत्युदंड दूँगा। मंत्री ने कहा, सरकार, वह तीन-चार दिन पहले आप से छुट्टी ले कर एक सप्ताह के लिए शिकार खेलने को गया है। मैं अभी पता लगाता हूँ कि इस समय वह कहाँ है। बादशाह ने गरज कर कहा, तुम चुने हुए तीस बहादुर फौजी अफसरों को भेजो जो चारों तरफ नाकेबंदी भी कर लें। ऐसा न हो कि वह बदमाश कहीं छुप कर निकल जाए।
शाही आदेश पा कर यह तीस अफसर उस तरफ चले जिधर अलादीन शिकार खेलने गया था और सिपाहियों को भी इधर-उधर चौकसी के लिए भेज दिया गया। अलादीन शिकार खेल कर लौट रहा था। शहर से दस बारह मील निकल कर इन अफसरों ने उसे देखा और उसे सलाम करके कहा, बादशाह की आज्ञा है कि हम आप को उन के सामने पहुँचाएँ। अलादीन ने देखा कि अफसरों ने उस के चारों ओर से घेरा डाल लिया है। अलादीन यह तो समझ गया कि यह रंग-ढंग गिरफ्तारी के हैं। वह उन के साथ चलने लगा। जब नगर लगभग एक मील रह गया तो अफसर उस के सामने जंजीरें ले कर आए और कहा कि इन्हें पहन लीजिए। उस ने कहा, मेरा अपराध क्या है जिसके लिए मेरी गिरफ्तारी हो रही है? उन्होंने कहा, यह हम नहीं जानते। हमें तो सिर्फ यह कहा गया है कि आप को जंजीरों में जकड़ कर बादशाह के सामने पेश करें।
अलादीन कहता भी क्या। फौजियों ने उस की गर्दन और हाथ-पाँव को ऐसा जंजीरों से जकड़ा कि वह हिल-डुल भी नहीं सकता था। कुछ देर बाद उसे घोड़े से भी उतार दिया गया और एक सवार ने उस की जंजीर थाम ली। शहर में लोगों ने यह देखा तो उन्हें विश्वास हो गया कि अब इसका प्राणांत होनेवाला है क्योंकि मृत्युदंड के भागी ही को इस तरह से ले जाया जाता है। लोग इस से भड़क गए। अलादीन सभी को प्यारा था और सभी उस के कृतज्ञ थे। चुनांचे जिसे भी जो अस्त्र-शस्त्र मिला वह उसे ले कर दौड़ा आया।
फौजी सवारों ने देखा कि वे लोग अलादीन को छुड़ाने के लिए आ रहे हैं तो उन्होंने उसे एक घोड़े पर लादा और कौशलपूर्वक जनता से बचा कर उसे किले में ले आए और द्वारपाल ने खतरा देख कर किले का द्वार बंद कर लिया। अलादीन को उसी बँधी हुई हालत में बादशाह के सामने पेश किया गया। बादशाह गुस्से में अंधा हो रहा था। उस ने पहले ही जल्लाद को बुला रखा था। अलादीन को देखते ही उस ने चीख कर कहा, इस से बहस करने की कोई जरूरत नहीं है। अभी इसका सिर उड़ा दिया जाए।
जल्लाद ने अलादीन की जंजीर खोल कर उसे बिठाया और उस की आँखों पर पट्टी बाँधी। फिर उस ने हवा में दो-तीन बार तलवार लहराई। जल्लाद लोग यह इसलिए करते हैं कि असली हाथ सधा हुआ पड़े। इतने में मंत्री ने हाथ जोड़ कर कहा, सरकार, अलादीन को मारने में जल्दी न कीजिए। बड़ी गड़बड़ी हो जाएगी। इसका वध होते ही लोग विद्रोह कर देंगे और आप की जान पर बन आयगी। बादशाह ने गुर्रा कर कहा, किसकी हिम्मत है विद्रोह करने की? बकवास मत करो। मंत्री बोला, उधर किले की दीवार पर देखिए। बाहर तो लाखों सशस्त्र लोग जमा हैं। बादशाह ने देखा कि सैकड़ों आदमी किले की दीवार पर चढ़ गए हैं और अंदर कूदनेवाले ही हैं। अब बादशाह सचमुच ही डर गया। उस ने जल्लाद से कहा, तलवार दूर फेंक दो। राजाज्ञा के अनुसार जल्लाद ने तलवार दूर फेंक दी।
बादशाह ने एक बड़े सरदार को आज्ञा दी कि ऊँचे स्वर में घोषणा करे कि बादशाह ने अलादीन का अपराध क्षमा करके उसे छोड़ दिया है। सरदार की घोषणा के बाद नियमानुसार मुनादी करनेवालों ने सारे शहर में इस क्षमादान की घोषणा की। सरदार की घोषणा पर जो नागरिक विद्रोह के लिए शस्त्र धारण करके किले की दीवारों पर चढ़ गए थे वे भी बाहर कूद गए। सारे नगर में यह समाचार तुरंत फैल गया और सभी को इस से बड़ी प्रसन्नता हुई।
इधर अलादीन ने बादशाह से कहा, सरकार, आप ने प्राणदान दे कर मुझ पर बड़ी कृपा की किंतु अब कृपापूर्वक यह भी बता दिया जाए कि मैं ने कौन-सा अपराध किया था जिसकी यह सजा मिलनेवाली थी। बादशाह ने पहले तो केवल घृणापूर्वक उसे देखा किंतु जब उस ने दुबारा यही प्रश्न किया तो उस ने कहा, मक्कार, तू मुझ से ऐसे अपराध पूछता है जैसे कि जानता ही नहीं। मेरे साथ महल की छत पर आ। मैं तुझे तेरा अपराध बताऊँगा नहीं बल्कि दिखाऊँगा। यह कह कर बादशाह उसे महल की छत पर ले गया और उस से पूछने लगा, बताओ, तुम्हारा बनवाया महल कहाँ है?
अलादीन भी आश्चर्य से आँखें फाड़ कर देखने लगा लेकिन उसे महल का निशान भी देखने को न मिला। वह ऐसा हक्का-बक्का हुआ कि जड़वत बहुत देर तक खड़ा रहा। बादशाह ने फिर पूछा, अब चुप क्यों हो? बताओ महल का क्या हुआ। अलादीन ने कहा, महल वाकई गायब है लेकिन इसमें मेरा कोई दोष नहीं है, मेरा तो इतना बड़ा महल चला गया। बादशाह ने कहा, तुम्हारा महल जाए भाड़ में। मुझे तो यह चिंता है कि मेरी बेटी कहाँ गई। मैं उस के दुख में पागल हो गया हूँ। तुम अगर खैरियत चाहो तो मेरी बेटी का पता लगाओ वरना अब जब मैं तुम्हें दंड दूँगा तो ऐसी व्यवस्था करूँगा कि तुम्हारे समर्थक भी कुछ न कर सकें। अलादीन ने कहा, इस की जरूरत नहीं। मुझे भी अपनी पत्नी के गुम हो जाने का दुख कम नहीं है। आप मुझे चालीस दिन का समय दे दीजिए। इस काल में यदि मैं शहजादी का पता न लगा सका तो स्वयं ही अपना सिर काट कर आप के पाँवों पर डाल दूँगा। बादशाह ने यह स्वीकार किया।
बादशाह ने कहा, चालीस दिनों तक तुम्हारी छुट्टी है, तुम जहाँ चाहो खोज कर सकते हो। लेकिन यह न समझना कि तुम मुझ से बच कर निकल सकोगे। तुम संसार में चाहे जहाँ भी रहोगे मैं तुम्हें पकड़वा मँगाऊँगा। अलादीन यह सुन कर महल से बाहर निकला। वह अपने दुर्भाग्य पर रोता हुआ जा रहा था। सरदार और अमीर-उमरा भी उस के दुख से दुखी हो कर उस से मुँह छुपाने लगे, वे उस की तसल्ली के लिए कहते भी क्या। अलादीन ने चालीस दिन की अवधि तो ले ली थी किंतु उस की समझ में खुद भी नहीं आ रहा था कि महल और बदर बदौर को कहाँ ढूँढ़े। तीन दिनों तक वह शहर में भटकता रहा। हर जान पहचानवाले से पूछता, भाई, तुम्हें मालूम हो तो बताओ कि मेरा खोया हुआ महल कहाँ मिल सकता है। लोग उस पर तरस खाते और आपस में कहते, बेचारा पागल हो गया है। कितना भला आदमी है किंतु दुर्भाग्य की मार से किसे छुटकारा मिला है। वे लोग दया करके उसे कुछ खाने-पीने को दे देते। इस से अधिक कर भी क्या सकते थे।
तीन दिन बाद वह बिल्कुल निराश हो गया। कहाँ तो कल तक यह हाल था कि लोगों में अशर्फियाँ लुटवाता था और अपनी बुद्धि और पराक्रम से राजदरबार में बड़ा सम्मान प्राप्त किए था कहाँ यह हाल कि लोग उसे पागल समझ कर तरस खाते और उसे भीख के तौर पर कुछ टुकड़े दे देते। अंत में वह अर्धविक्षिप्त अवस्था में शहर से बाहर निकल कर जंगल में चला गया। बड़ी दूर तक जाने के बाद उसे एक नदी मिली। उस ने सोचा कि मेरी पत्नी तो अब मुझ से मिलने से रही, अब जीवन व्यर्थ है। और जीवन भी कितने दिन का है। अवधि के अंत में बादशाह उसे मरवा ही देगा। उस ने सोचा कि नदी में डूब मरूँ।
फिर उसे खयाल आया कि मुसलमान के लिए आत्महत्या वर्जित है। उस ने सोचा कि मैं नदी में स्नान करके फिर नमाज पढ़ूँगा और भगवान से निरंतर अपने उद्देश्य की सफलता की प्रार्थना करूँगा। यह सोच कर वह नदी में उतरा लेकिन उस का पाँव फिसल गया और वह तैरना नहीं जानता था इसलिए डूबने लगा। तभी उस का हाथ एक छोटी-सी चट्टान पर लगा और उस ने उसे कस कर पकड़ लिया।
यह डूबना भी उस के लिए सौभाग्यपूर्ण हुआ। वह छल्ले को भूल गया था किंतु छल्ले के पत्थर पर रगड़ खाने से छल्ले का जिन्न आ गया और बोला, स्वामी, क्या आज्ञा है? अलादीन ने कहा, पहले मुझे डूबने से बचाओ, फिर तुम से कुछ बात करूँगा। जिन्न ने उसे उठा कर किनारे पर बिठाया। कुछ देर बाद अलादीन सावधान हुआ तो उस ने पूछा, तुम क्या मुझे बता सकते हो कि मेरा महल कहाँ गायब हो गया और मेरी पत्नी यानी शहजादी कैसी है? जिन्न ने कहा, यह मैं बता सकता हूँ। जिस जादूगर ने आप को उस गढ़े में बंद किया था जहाँ से पहली बार मैं ने आप को निकाला था वही जादूगर आप की पत्नी के साथ आप के महल को उड़ा ले गया है। वह अफ्रीका का रहनेवाला है और वहीं पर अपने निवास नगर में महल को ले गया है। उस के हाथ जादू का चिराग लग गया था।
अलादीन ने कहा, क्या तुम शहजादी के समेत महल को वापस ला कर उस की पुरानी जगह पर रख सकते हो? जिन्न ने कहा, यह मेरा काम नहीं है, यह चिराग के जिन्नों का काम है। हम लोग एक-दूसरे के कामों में दखल नहीं दे सकते। अलादीन ने कुछ सोच कर कहा, अच्छा, क्या तुम मुझे उस जगह पहुँचा सकते हो जहाँ वह महल है? जिन्न बोला, यह जरूर कर सकता हूँ। चुनांचे अलादीन ने जिन्न से यही करने को कहा और जिन्न ने कुछ क्षणों ही में अफ्रीका के उस नगर में उसे पहुँचा दिया जहाँ जादूगर रहता था और जहाँ उस ने चीन से महल को ला कर रखा था। अलादीन को उस के महल के सामने उतार कर जिन्न गायब हो गया।
यद्यपि उस समय रात काफी बीत गई थी और अँधेरा हो गया था तथापि अलादीन ने अपना महल पहचान लिया। वह एक पेड़ के नीचे जा बैठा और मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देने लगा जिसने तीन-चार दिन की परेशानी के बाद उसे पत्नी के निकट पहुँचा दिया था। उसे ऐसा संतोष मिला कि वह पेड़ के नीचे भूमि पर ही सो गया। सुबह पक्षियों के कलरव से उस की आँख खुली तो वह अपने महल के और समीप जा कर बैठ गया और महल को ध्यान से देखने लगा।
कुछ देर बाद अलादीन उस खिड़की के सामने टहलने लगा जो बदर बदौर के रहने के कमरे में थी। उसे आशा थी कि शहजादी जाग कर उसे देखेगी। शहजादी रात भर जादूगर की काम चेष्टाओं से बचने की परेशानी में लगी रही थी इसलिए वह बहुत देर तक सोती रही। उधर अलादीन यह सोचने लगा कि आखिर जादूगर इस महल को यहाँ लाया कैसे। उस ने यही निष्कर्ष निकाला कि मैं चिराग को महल में रख कर भूल गया था, वहीं से किसी तरह जादूगर ने उसे हथिया लिया होगा क्योंकि चिराग के जिन्नों के अलावा महल को और कोई ला ही नहीं सकता। वह सोचता रहा कि महल में इतने पहरे के बावजूद जादूगर को चिराग मिला कैसे लेकिन वह बिल्कुल न समझ पाया कि यह संभव कैसे हुआ। उस ने सोचा कि शहजादी से भेंट होने पर ही यह रहस्य खुलेगा किंतु यह भी समस्या थी कि उस से भेंट कैसे हो।
जादूगर ने न जाने किस कारण महल में निवास नहीं किया था। वह निकट ही अपने बने हुए घर में रहता था। दिन में वह आम तौर पर बाहर अपने जादूगरी के कामों में लगा रहता था, केवल शाम से आधी रात तक वह शहजादी के आगे प्रेम निवेदन करके उसे परेशान किया करता था। इस समय भी वह महल में नहीं था। जब शहजादी की आँख खुली तो उस के कमरे में उसे सजाने-सँवारने के लिए दासियों की भागदौड़ होने लगी। एक दासी ने खिड़की से देखा कि अलादीन महल के बाहर टहल रहा है। उस ने बदर बदौर से जा कर कहा, तो उस ने अपनी एक विश्वस्त दासी से कहा कि बाहर जा कर देखो, वह आदमी अलादीन हो तो उसे चोर दरवाजे से यहाँ ले आओ। वह दासी बाहर जा कर होशियारी से अलादीन को ले आई।
इतने दिनों बाद पति-पत्नी मिले तो पहले तो एक-दूसरे से लिपट कर खूब रोए। फिर उन्होंने अपने ऊपर पड़नेवाली विपदाओं का एक-दूसरे से वर्णन किया। फिर अलादीन ने शहजादी से कहा, एक बात अच्छी तरह याद करके बताओ। महल के अंदर के कमरे में एक पुराना चिराग रखा रहता था। वह अभी तक है या नहीं। उस की पत्नी ने कहा, हम लोगों पर जो कुछ मुसीबत पड़ी वह उसी चिराग के संबंध में मेरे द्वारा की हुई मूर्खता के कारण ही पड़ी। यह कह कर उस ने जादूगर द्वारा नए दीपकों के बदले पुराने दीपकों को लेने के छल द्वारा उक्त चिराग के हथियाने का सारा हाल कहा। अलादीन ने कहा, तुम बेकार ही अपने को दोषी समझ रही हो। गलती तो मेरी ही थी कि मैं ऐसी चीज की तरफ से लापरवाह हो गया। मैं ने तुम्हें चिराग के बारे में बताया भी कुछ नहीं था इसलिए अगर तुमने उसे पुराना और बेकार चिराग समझा तो तुम्हें कैसे दोष दिया जाए। शहजादी ने कहा, मैं तो अपनी मूर्खता पर अपने को बार-बार धिक्कारती हूँ। जब अचानक मैं महल समेत इस नई जगह में आ गई तो पहले तो कुछ समझ ही नहीं पाई कि क्या हुआ। फिर उसी दिन जादूगर मेरे पास आया और कहने लगा कि तुम अब अफ्रीका में हो। अपने पति और पिता से मिलने की आशा छोड़ दो। मैं ने पूछा कि मैं यहाँ कैसे आ गई। उस ने हँसते हुए और अपनी चालाकी की शान झाड़ते हुए बताया कि जिस चिराग को तुमने पुराना समझ कर मुझे नए चिराग के बदले में दे दिया था यह सब उसी का चमत्कार है।
अलादीन ने कहा, खैर, यह तो हुआ। अब तुम पहले यह बताओ कि वह चिराग इस समय कहाँ है। और यह भी बताओ कि जादूगर ने अभी तक तुम्हें भ्रष्ट तो नहीं किया है? बदर बदौर बोली, चिराग को वह दुष्ट हमेशा अपने वस्त्रों के अंदर अपने सीने से सटाए रखता है। तुम्हारी दूसरी बात का जवाब यह है कि अभी तक तो भगवान की दया से मेरी पवित्रता बची हुई है, आगे की बात नहीं कह सकती। वह तो रात होने पर रोजाना मेरे पास आता है और तरह-तरह से मुझे फुसलाने का प्रयत्न करता है किंतु मैं उस की तरफ देखती भी नहीं। उस ने बलात्कार शायद इसलिए नहीं किया कि उसे आशा है कि कुछ दिनों में मैं पिता और पति से अलग से अलग होने का दुख भूल जाऊँगी और प्रेमपूर्वक उसकी अंकशायिनी बनूँगी। मैं ने तो तय कर लिया है कि खुद उस से नहीं बोलूँगी और उस ने बलात्कार किया तो आत्महत्या कर लूँगी।
अलादीन ने कहा, वह मेरे प्राणों का शुरू से ग्राहक रहा है और अब भी उसे अवसर मिलेगा तो मारने की चेष्टा करेगा। इस के अतिरिक्त वह तुम से भी पशुवत यौन व्यवहार करना चाहता है, बाद में तुम्हें मार डालेगा। मुझे सुन कर बड़ी प्रसन्नता हुई कि वह तुम्हें भ्रष्ट नहीं कर सका। इस समय बाहर जाता हूँ, दोपहर तक फिर वापस आऊँगा। मैं उसी चोर दरवाजे से आऊँगा। मैं दूसरे कपड़े पहने हुए आऊँगा। इसलिए तुम वहाँ ऐसी होशियार और विश्वस्त दासी को रखना जो मेरे चेहरे को पहचानती हो। तुम मुझे कुछ धन भी दो क्योंकि मुझे हम दोनों की मुक्ति का उपाय करना है और आज का काम भी चलाना है।
बदर बदौर ने उसे अशर्फियों की एक थैली दी क्योंकि अलादीन तो फकीर बन कर चीन के राजमहल से निकला था हालाँकि कपड़े हमेशा जैसे पहने था। शहजादी की वही विश्वस्त दासी अलादीन को चोर दरवाजे से हो कर महल के बाहर कर आई। अलादीन आगे बढ़ने लगा। एक सुनसान रास्ते पर उसे एक गरीब किसान आता मिला। उस ने किसान को रोक कर कहा, मुझे एक खास वजह से तुम्हारे कपड़ों की जरूरत है। तुम मुझे अपने कपड़े दो और उस के बदले में मेरे कपड़े पहन लो। इस के लिए मैं तुम्हें कुछ धन भी दूँगा। किसान को क्या आपत्ति थी, उसे फटे-पुराने कपड़ों के बदले नए कपड़े मिल रहे थे। वह राजी हो गया। अलादीन ने उस से कपड़े बदल कर उसे एक अशर्फी दी और कहा कि कोई पूछे तो कि किसने तुम्हें कपड़े दिए है तो बताना मत।
फिर वह एक पंसारी के यहाँ गया और उस ने एक दुर्लभ वस्तु माँगी। पंसारी ने कहा, मेरे पास वह है तो लेकिन तुम उसे खरीद न सकोगे, वह बहुत ही कीमती है। किंतु अलादीन ने उसे एक अशर्फी दी तो वह फौरन वह चीज, जो वास्तव में महा भयंकर विष था, दे दी। फिर अलादीन ने एक नानबाई की दुकान में जा कर भोजन किया और चोर दरवाजे से फिर महल के अंदर प्रवेश किया। यह सब होशियारी उस ने इसलिए की कि वह अपनी उपस्थिति का तनिक भी संदेह नहीं देना चाहता था।
अब उस ने अपनी पत्नी से कहा, यहाँ से छूटने के लिए तुम्हें नाटक करना होगा। इसे अच्छी तरह समझ लो क्योंकि इस के अलावा छुटकारे की और कोई सूरत नहीं है। तुम अपना शोकवेश त्याग दो और रात में जादूगर के आने तक अपना पूरा श्रृंगार करके बैठ जाओ। जब वह आए तो तुम उस का मुस्कुरा कर स्वागत करना। उस के पूछने पर उस से कहना कि मैं ने सोचा कि कब तक पिता और पति से बिछड़ने का शोक करती रहूँगी। अब तो मैं ने तुम्हीं को पति की जगह मान लिया है और चाहती हूँ कि तुम्हारे ही साथ आनंदपूर्वक समय बिताऊँ और तुम्हारे साथ बैठ कर शराब पियूँ।
शहजादी इस पर चौंकी तो अलादीन ने उसे रोक कर कहा, तुम उस से पुरानी शराब मँगाना जिसे लेने के लिए वह स्वयं ही बाहर जाएगा। इस बीच तुम एक प्याले में शराब भर कर उस में इस पुड़िया की दवा घोल कर रख देना। इसे अन्य प्यालों से अलग रखना। मद्यपान आरंभ होने पर एक दासी तुम्हारे इशारे पर ही प्याला तुम्हारे हाथ में देगी। तुम कहना कि हमारे यहाँ की रस्म है कि प्रेमीजन एक-दूसरे के हाथ का प्याला बदल कर पीते हैं। इस प्रकार तुम यह दवा मिला प्याला उसे दे देना और वह खुशी के मारे इसे पूरा पी जाएगा। इसे पीते ही वह बेहोश हो जाएगा। मैं इस बीच चोर दरवाजे से निकल कर बाहर मैदान में एक पेड़ के नीचे बैठूँगा। जब जादूगर बेहोश हो जाए तो दासी को भेज कर मुझे बाहर से बुला लेना। इतना काम कर सकोगी?
शहजादी ने यह स्वीकार किया। अलादीन उस समय एक अन्य कक्ष में चला गया और दिन ढलते ही चोर दरवाजे से निकल कर एक पेड़ के नीचे जा बैठा। इधर शहजादी ने होशियारी के साथ अपनी साज-सज्जा करवानी शुरू की। अफ्रीका आने के बाद तो उस ने कपड़े भी नहीं बदले थे। उस ने गले में बहुमूल्य मोतियों की माला पहनी और हाथों में रत्नजटित कंगन। उस ने नए वस्त्र पहने जिनमें बढ़िया इत्र लगाया गया था। कमर में उस ने पटका बाँधा और दासियों से कहा कि मैं ने अभी तक जादूगर को अच्छी तरह देखा भी नहीं है, वह आए तो इशारा कर देना कि वही है ताकि उसे मेरे व्यवहार से यह न मालूम हो कि मैं ने उसे नहीं देखा है।
जादूगर के आने पर दासी ने इशारा दे दिया कि चिराग बदलनेवाला छली आ गया। शहजादी मुस्कुराती हुई उस के स्वागत के लिए उठी और उस का हाथ पकड़ कर उसे अपने पास बिठा लिया। यद्यपि वह सम्मानार्थ दूर ही बैठना चाहता था क्योंकि बहरहाल वह राजकुमारी थी। जादूगर इस बात से खुश तो हुआ लेकिन समझ न पाया कि शहजादी के व्यवहार में यह परिवर्तन कैसे हो गया। इसलिए चुपचाप बैठा रहा।
शहजादी ने मोहक मुस्कान बिखेरते हुए कहा, तुम यह सोच रहे हो न कि आज इस ने अपनी सूरत कैसे बदल डाली। बात यह है कि अभी तक मैं अपने पिता से अलग होने और अपने पति के बिछोह में घुली जाती थी। आज मुझे यह खयाल आया कि मेरा पति बेचारा तो कभी का स्वर्ग सिधार गया होगा, मेरे पिता ने मेरे गायब हो जाने पर क्रोध में आ कर उसे मरवा डाला होगा। अब पति तो जिंदा ही नहीं रहा और पिता से मिलने की आशा न है न इच्छा क्योंकि वह मेरे पति का हत्यारा है। मैं ने सोचा है मैं उनकी याद में कब तक घुल-घुल कर जियूँ। इसीलिए मैं ने पति की जगह तुम्हें ही मान लिया है। आज मैं तुम्हारे साथ भोजन करूँगी। किंतु अभी भोजन का समय नहीं हुआ है, तब तक हम लोग कुछ पिएँ-पिलाएँ। मैं ने बहुत दिनों से अच्छी शराब नहीं पी है। तुम्हारे शहर में अच्छी शराब मिलती है?
जादूगर यह सुन कर फूला न समाया और बोला, आप के लायक तो शहर में शराब नहीं मिलेगी लेकिन मैं ने अपने तहखाने में बड़ी पुरानी शराबें रखी हैं। मैं उन्हीं में से ला रहा हूँ। शहजादी ने कहा, तुम क्यों जा रहे हो? किसी आदमी को भेज कर क्यों नहीं मँगा लेते? जादूगर ने कहा, मुझे खुद ही जाना पड़ेगा। न कोई आदमी तहखाने तक जा पाएगा न उस का ताला ही खोल सकेगा। शहजादी ने कहा, अच्छा जाओ लेकिन जल्दी आना। मुझे तुम्हारे बगैर अच्छा नहीं लगता। जादूगर के जाने के बाद शहजादी ने एक प्याले के शराब में दवा घोली और एक दासी के हवाले कर दी।
कुछ ही देर में जादूगर उत्तम मदिरा ले कर आ पहुँचा और दोनों मद्यपान करने लगे। शहजादी शराब के साथ स्वादिष्ट गजक अपने हाथ से उठा-उठा कर जादूगर के आगे रखती। उस ने जादूगर से कहा, अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें गाना भी सुना सकती हूँ लेकिन यहाँ मेरा साथ देने के लिए अच्छे वादक नहीं हैं। इसलिए हम लोग बातें ही करेंगे। जादूगर ऐसे प्रिय वचन सुन कर खुशी से पागल हो गया। शहजादी ने एक जाम भर कर जादूगर के नाम पर पिया। इस के बाद उस ने शराब की बहुत तारीफ की और कहा, तुम ने इस शराब की जितनी प्रशंसा की थी यह उस से भी अधिक अच्छी है। फिर उस ने जादूगर को एक प्याला अपने हाथ से भर कर दिया। उस ने उसे पी कर कहा, यह शराब मेरी ही है किंतु इस ने पहले कभी मुझे इतना आनंद नहीं दिया जितना इस समय दे रही है। इसी प्रकार वे धीरे-धीरे मद्यपान करते रहे और मधुर वार्तालाप करते रहे।
फिर शहजादी ने दासी को संकेत किया और उस ने अफ्रीकी की नजर बचा कर पहले से तैयार किया हुआ प्याला शहजादी को दे दिया। उस ने दूसरा मामूली शराब का प्याला भर कर जादूगर को दिया। शहजादी बोली, हमारे चीन की एक यह भी रस्म है कि दो प्रेमीजन मद्यपान करते हैं तो एक-दूसरे के हाथ से ले कर प्याला पीते हैं। यह कह कर अपना प्याला जिस में दवा के नाम पर विष मिला हुआ था उस ने जादूगर को दिया और बड़े नाज-नखरे के साथ उस के हाथ का मामूली शराब का प्याला अपने हाथ में ले लिया। जादूगर पर उस के हाव-भाव से जो नशा चढ़ा वह शराब से भी अधिक था। उस ने कहा, हे जगत मोहनी, तुम्हारा चीन देश हर तरह से सभ्यता और संस्कृति, विद्या, सौंदर्य आदि में हमारे अफ्रीका से बढ़ा-चढ़ा हे। यह बड़ी ही मनमोहक रीति तुमने मुझे सिखाई। मैं आगे से हमेशा यहाँ के लोगों में इसका निर्वाह और प्रसार करूँगा।
शहजादी ने तो देखने भर के लिए प्याला मुँह से लगाया किंतु मदमत्त जादूगर एक ही बार में गटगट करके जहरीली शराब का पूरा प्याला पी गया। प्याला नीचे रखते ही वह पीठ के बल गिर पड़ा। जब शहजादी ने देखा कि वह हिलडुल तक नहीं रहा है तो उस ने अपनी विश्वस्त दासी से धीरे से कहा कि अब चोर दरवाजे से अलादीन को ले आए। अलादीन अंदर आया तो उस ने देखा कि वही दुष्ट जादूगर जो पहले उस का चचा बन कर उसे मौत के मुँह में झोंक आया था और इस समय भी उस की पत्नी को उड़ा कर, उस की मौत का सामान कर चुका था विष के प्रभाव से मरा पड़ा है। शहजादी भी समझ गई कि यह प्याले में दवा नहीं थी, जहर था। उस ने अलादीन से कहा, तुम ने अपनी बुद्धि से इस दुष्ट को मार कर बहुत अच्छा किया। अलादीन ने कहा, अच्छा अब तुम दूसरे कमरे में चली जाओ, यहाँ मुर्दों के पास अधिक ठहरना ठीक नहीं है।
शहजादी अपनी दासियों समेत जब दूसरे कमरे में चली गई तो अलादीन ने जादूगर के वस्त्र उघाड़ने शुरू किए ताकि चिराग मिले। जैसा शहजादी की बात से मालूम हुआ था जादूगर उसी चिराग को कपड़ों की कई तहों में लपेट कर अपनी सीने से बाँधे रहता था। अलादीन ने चिराग निकाल कर जादूगर की लाश को उस के वस्त्र यथावत पहना दिए। इस के बाद उस ने चिराग को उठा कर हलके से रगड़ा। तुरंत ही जिन्न आ खड़ा हुआ और विनीत भाव से कहने लगा कि मेरे लिए क्या आज्ञा है। अलादीन ने कहा, तुरंत ही इस महल को ले जा कर चीन की राजधानी में उसी जगह स्थापित कर दो जहाँ यह पहले था। जिन्न ने स्वीकृति में सिर हिलाया और गायब हो गया। इस के साथ ही महल हवा में उठा और दो क्षणों में चीन के राजमहल के सामने अपने पुराने स्थान पर स्थापित हो गया।
जिन्न का काम इतना सुचारु था कि किसी को पता भी नहीं चला कि क्या हुआ। केवल उठने और रखे जाते समय महल धीरे से हिला। अब शहजादी उस कमरे में आई और उसे अलादीन ने बताया कि हम लोग अब वापस चीन में हैं। शहजादी बड़ी प्रसन्न हुई किंतु अलादीन ने कहा, खुशी फिर मनाना। इस समय हम दोनों ही इतनी चिंताओं और श्रम के मारे हैं कि हमें आराम चाहिए। हम लोग भूखे भी हैं। अब खाना खाएँ और इसी जादूगर की लाई शराब पिएँ और सो रहें। उन्होंने ऐसा ही किया।
चीन का बादशाह अपनी पुत्री के लिए बड़ा उद्विग्न रहता था और यद्यपि उसे मालूम था कि अलादीन का महल गायब हो चुका है तथापि वह रोज सवेरे अपने महल की छत पर चढ़ कर उस तरफ देखा करता और पुत्री को याद करके रोया करता। उस दिन भी वह सदा की भाँति अपने महल की ऊपरी मंजिल पर गया और उस ने उस दिशा में देखा तो उसे अलादीन का महल अपनी जगह खड़ा हुआ दिखाई दिया। वह कुछ देर आँखें फाड़ कर देखता रहा, फिर जब उसे विश्वास हो गया तो जल्दी से उतर कर उस ने घोड़ा मँगाया और दो-चार नौकरों के साथ ही उधर चल पड़ा। अलादीन ने उसे देखा तो दौड़ कर महल के बाहर आया ताकि सम्मानपूर्वक उस की बाँह पकड़ कर उसे घोड़े से उतारे। किंतु बादशाह ने कहा, मैं तुम से तभी बात करूँगा जब अपनी बेटी को देख लूँगा। अलादीन ने कहा, आप अंदर तो चलें। किंतु बादशाह वहीं खड़ा रहा।
अलादीन ने जा कर अपनी पत्नी से कहा कि तुरंत बाहर जा कर अपने पिता को अंदर लाओ, वे मेरे कहने से नहीं आ रहे हैं। वह दौड़ी हुई बाहर आई और बादशाह को अंदर ले गई। बादशाह को अतीव प्रसन्नता हुई और उस ने पूछा कि तुम इतने दिनों तक कहाँ रहीं और तुम पर क्या बीती। बदर बदौर ने बताया कि अफ्रीका के एक जादूगर ने अपने जादू से मेरे और दास-दासियों समेत सारे महल को उड़ा कर अपने नगर में पहुँचा दिया था। उस ने कहा, अलादीन के पराक्रम और बुद्धि से मैं उस जादूगर की कैद से छूटी। मुझे सब से बड़ा भय यह था कि आप ने क्रोध में आ कर मेरे पति को मरवा डाला होगा। भगवान को बड़ा धन्यवाद है कि आप ने उसे मरवाया नहीं।
बादशाह की समझ में कुछ नहीं आ रहा था तो उसे चिराग की करामात और जादूगर द्वारा छल से उस चिराग के हथियाने की बात बताई गई। अलादीन ने दूसरा कमरा खोल कर जादूगर की लाश भी दिखाई। अब बादशाह को विश्वास हुआ और पश्चात्ताप में भर कर कहने लगा, बेटे, मैं ने तुम्हारे साथ बड़ा अन्याय किया। वह तो भगवान की दया थी कि तुम्हारे प्राण बच गए। बेटी के शोक ने मुझे अंधा बना दिया था। अब तुम मेरी सारी बातें बूढ़े की मूर्खता समझ कर माफ कर दो।
अलादीन ने कहा, मुझे उस बारे में आप से कोई शिकायत नहीं है। जो कुछ हुआ इसी जादूगर के कारण हुआ और मेरे प्राण भी जाते तो उसी के कारण जाते। आप को कभी फुरसत हुई तो मैं विस्तारपूर्वक पहले की कहानी भी बताऊँगा कि इस ने मेरे बचपन में मेरे साथ कैसी दुष्टता की।
बादशाह ने कहा, मैं बाद में जरूर वह कहानी सुनूँगा। पहले तुम इस कुकर्मी की लाश को तो महल से दूर करो। इस के बारे में लोगों को मालूम भी नहीं होना चाहिए वरना शहजादी की भी बदनामी हो सकती है।
अलादीन ने दो विश्वस्त आदमियों को आदेश किया कि अफ्रीकी जादूगर की लाश चोर दरवाजे से ले जा कर घने जंगल में फेंक दें जहाँ पर पशु-पक्षी इसे नोच कर खा जाएँ। फिर बादशाह ने अपने महल में आ कर आदेश दिया कि बदर बदौर के सकुशल वापस आ जाने के उपलक्ष्य में नगर में हर जगह राग-रंग और उत्सव हों। नगर निवासियों ने इस घोषणा का हृदय से स्वागत किया, विशेषतया इसलिए कि वे अलादीन के सकुशल आने और पुनः प्रतिष्ठित होने से बहुत खुश थे।
अलादीन दो बार जादूगर के कारण मारे जाने से बच गया लेकिन तीसरी बार भी उस पर मुसीबत आते-आते बच गई। अफ्रीकी जादूगर का एक छोटा भाई था जो उस की भाँति ही जादू में निपुण था। वह किसी दूर देश में रहता था। दोनों भाई वर्ष में एक बार रमल द्वारा एक-दूसरे के कुशल-मंगल का समाचार जान लेते थे। अतएव कुछ महीनों के बाद जब छोटे भाई ने रमल के नक्शे फैला कर बड़े भाई का हाल जानना चाहा तो उसे मालूम हुआ कि चीन की राजधानी के एक आदमी ने उसे विष दे कर मार डाला है। वह आदमी पहले बहुत निर्धन था किंतु इस समय बड़ा धनवान और बादशाह का दामाद है।
यह जान कर वह बहुत रोया। फिर उस ने सोचा कि कायरों की तरह रो-पीट कर बैठे नहीं रहना चाहिए, अपने भाई के हत्यारे से इस हत्या का बदला लेना जरूरी है। वह अपना जादू का सामान और रुपया-पैसा ले कर घोड़े पर बैठा और मारा-मारा कुछ महीनों में चीन की राजधानी पहुँचा। उस ने उसी दिन एक घर किराए पर लिया और दूसरी सुबह वह शहर घूमने निकला।
घूमते-घूमते वह एक ऐसी जगह पहुँचा जहाँ शहर के बेफिक्रे और निठल्ले लोग जमा हो कर बातचीत में सारा दिन बिताते थे। वह भी चुपचाप उन की बातें सुनने लगा। बहुत देर तक उसे कोई मतलब की बात सुनने को नहीं मिली। वे लोग खा-पी भी रहे थे और गप्पें भी मार रहे थे। कुछ ही देर में उन लोगों में फातिमा बीबी की बातें होने लगीं और उन में से हर एक फातिमा बीबी के स्वभाव और आचार-व्यवहार की प्रशंसा करने लगा। यह बातचीत सुन कर जादूगर को आशा हुई कि इस बात से मेरा मतलब पूरा होने की संभावना है।
वह कुछ देर तक सुनता रहा लेकिन चूँकि विदेशी आदमी था इसलिए उन लोगों की दी हुई सूचनाएँ उस की समझ में नहीं आ रही थीं। उस ने उस समूह के एक व्यक्ति को अलग ले जा कर उस से पूछा कि यह फातिमा बीबी कौन हैं और उनमें क्या विशेषता है। उस ने कहा, तुम परदेशी मालूम होते हो वरना इस नगर में तो हर आदमी फातिमा बीबी को केवल जानता ही नहीं उस का भक्त भी है। वह वृद्धा बड़ा पवित्र और सदाचारी जीवन व्यतीत करती है। सारी उम्र उस ने ईश्वर आराधना के सिवाय कुछ नहीं किया है। उस में ऐसी चमत्कारी शक्ति है कि किसी के सिर में चाहे जितना दर्द हो वह हाथ से छू भी दे देती है तो दर्द दूर हो जाता है। जादूगर ने पूछा कि वह रहती कहाँ है। उस आदमी ने जादूगर को फातिमा बीबी के घर का पता दे दिया।
जादूगर उस की गली को पूछते-पूछते उस के घर जा पहुँचा किंतु उस समय वह अंदर नहीं गया। बाहर ही से देख कर उस ने मकान की पूरी तरह पहचान कर ली। आधी रात के लगभग वह अपने मकान से उठ कर फातिमा बीबी के घर जा पहुँचा। बंद दरवाजे को उस ने अपने साथ लाए हुए औजारों से खोल लिया। अंदर देखा कि वृद्धा अपने आँगन में चाँदनी में खाट पर एक पुराना बिस्तर बिछाए सो रही है। उस ने एक हाथ में नंगी तलवार ली और दूसरे से उसे जगाया और कहा, अगर तुम ने जरा-सी भी आवाज निकाली तो तुम्हें अभी मार डालूँगा। अपनी जान की सलामती चाहती हो तो जैसा कहूँ वैसा करो।
फातिमा बीबी की घिग्घी बँध गई। जादूगर ने कहा, मुझे तुम्हारी और किसी चीज से मतलब नहीं है, सिर्फ तुम्हारे बाहर पहने जानेवाले कपड़े चाहिए। उस बेचारी ने अंदर जा कर खूँटी पर टँगे हुए अपने कपड़े दे दिए। जादूगर ने उन्हें पहन लिया। फिर वह फातिमा बीबी से कहने लगा कि जो-जो निशान तुम्हारे चेहरे पर हैं वह मेरे चेहरे पर बना दो और मेरे चेहरे और हाथ-पाँव की खाल का रंग भी अपने जैसा कर दो। वह जादूगर का मुँह देखने लगी तो जादूगर बोला, तुम डरो मत, इत्मीनान रखो कि मैं तुम्हें जान से नहीं मारूँगा। मैं एक खास जरूरत से तुम्हारा वेश धारण करना चाहता हूँ और बस। वह बेचारी उसे अंदर ले गई। दिया जला कर उस ने एक-दो तरह के लेप और तेल निकाले और उस बदमाश के चेहरे और हाथ-पाँव का रंग अपने जैसा बना दिया। फिर उस के दाढ़ी-मूँछ मुँड़े हुए चेहरे पर अपने चेहरे जैसी झुर्रियाँ भी बना दीं। उस ने उसे अपने सिर की पगड़ी भी दी और अपनी सुमिरनी और लकुटिया भी उसे दे दी। फिर अपना बुरका भी उसे दे दिया और कहा, मैं घर से बाहर बुरका पहन कर निकलती हूँ, तुम भी बाहर जाना तो इसे ओढ़ कर ही जाना। अब जो कुछ तुमने कहा था वह मैं ने कर दिया। शीशा ले कर देख लो, तुम्हारी और मेरी सूरत में अब कोई अंतर नहीं है।
जादूगर ने दर्पण में अपना मुख देखा तो उसे बिल्कुल फातिमा जैसा पाया। यद्यपि उस ने वादा किया था कि उसे मारेगा नहीं फिर भी उस ने बुढ़िया को पटक कर गला दबा कर मार डाला। तलवार से इसलिए नहीं मारा कि उस ने जो फातिमा बीबी के कपड़े पहने थे उन पर खून के छींटे पड़ जाते और उस का छद्म वेश छुपा न रहता। फिर उस ने घर के अंदर बने एक गढ़े में फातिमा बीबी की लाश उठा कर फेंक दी। रात उस ने फातिमा बीबी की खाट पर सो के गुजारी और अगली सुबह घर से निकला। उसे मालूम था कि यह दिन फातिमा बीबी के बाहर आने का नहीं है किंतु इस सिलसिले में भी कोई उस से पूछता तो इस के लिए भी उस ने एक अच्छा बहाना सोच लिया था। वह बाहर निकल कर अलादीन के महल की ओर, जिसे उस ने पहले ही देख रखा था, चला। रास्ते में उस के चारों ओर लोग जमा होने लगे। कोई श्रद्धापूर्वक उस का आँचल चूमता कोई उस से आर्शीवाद माँगता, कोई उस से सिर का दर्द दूर करने की प्रार्थना करता।
जादूगर तो छल-कपट में प्रवीण था ही। वह बराबर कुछ बुड़बुड़ाता जा रहा था। जैसे कोई पवित्र मंत्र पढ़ रहा हो। वह चाहता था कि लोगों की भीड़ अधिक से अधिक हो जाए इसलिए जहाँ जल्दी से निबट सकता था वहाँ भी देर लगाता था। इस प्रकार जब वह अलादीन के महल के सामने पहुँचा तो बड़ी भीड़ जमा हो गई और बड़ा कोलाहल करने लगी। काफी धक्का-मुक्की भी होने लगी क्योंकि हर आदमी उस के पास जा कर उस से आर्शीवाद लेना चाहता था और उस के वस्त्र का स्पर्श करके कृतकृत्य होना चाहता था।
उन दिनों अलादीन शिकार पर गया हुआ था। बदर बदौर ने जब सुना कि महल के बाहर बहुत शोरगुल हो रहा है तो उस ने एक दासी को आज्ञा दी कि बाहर जा कर देखे कि कैसा शोर हो रहा है। दासी ने कुछ देर बाद जा कर बदर बदौर को बताया कि पवित्रात्मा वृद्धा फातिमा बीबी महल के बाहर के मैदान में है। बदर बदौर ने तो पहले ही फातिमा बीबी के बारे में सुन रखा था, अब वह महल के सामने खुद ही आई तो उसे बुलाना भी बदर बदौर ने [RK1] जरूरी समझा। उस ने अंगरक्षकों के सरदार को आज्ञा की कि फातिमा बीबी को महल में ले आओ। सरदार वहाँ पहुँचा तो उसे देख कर भीड़ छँट गई।
जादूगर ने अंगरक्षकों के सरदार को देखा तो खुश हुआ कि महल में जाने को मिलेगा। सरदार ने उसे सलाम करके कहा, देवी जी, शहजादी को आप के दर्शन की बड़ी इच्छा है। कृपया आप मेरे साथ महल में पदार्पण करें। जादूगर ने कहा, मैं जरूर चलूँगी। शहजादी तो बड़ी भली महिला हैं। यह कह कर जादूगर महल में गया। बारहदरी में बदर बदौर ने उस का स्वागत किया।
फातिमा बने हुए जादूगर ने उसे बहुत आशीर्वाद दिए और संसार की असारता और भगवदभक्ति के महत्व पर प्रवचन किया। शहजादी के कहने पर वह एक ओर सिर झुका कर बैठ गया जैसे विनय मुद्रा में हो।
कुछ देर के बाद शहजादी ने कहा, माता, मैं चाहती हूँ कि तुम मेरे पास रहो ताकि मैं तुम से आत्मज्ञान प्राप्त करूँ और परलोक सुधारूँ। जादूगर बोला, बेटी, यह कैसे हो सकता है? तुम्हारे महल में दास-दासियों और सेवकों की हमेशा भीड़ रहती है और बड़ा शोर होता है। यहाँ मेरे भगवत भजन में बड़ी बाधा पड़ेगी। शहजादी ने कहा, अगर महल के अंदर नहीं रहना चाहतीं तो महल के अंतर्गत कई मकान महल से अलग भी बने हैं, तुम उनमें से कोई पसंद करके उस में रह सकती हो।
जादूगर को जैसे मुँहमाँगी मुराद मिल गई। वह जानता था कि महल के अंदर रह कर वह अपनी दुष्टतापूर्ण योजना भली प्रकार लागू कर सकता है। वह बोला, बेटी, मैं संसार त्यागी स्त्री हूँ। मुझे यह उचित तो नहीं मालूम होता कि यहाँ राजमहल के वैभव के बीच रहूँ। किंतु तुम जैसे सच्चे मन से परमार्थ का मार्ग खोजना चाहती हो उसे देख मेरा कर्तव्य हो जाता है कि मैं तुम्हारी सहायता करूँ। मैं किसी भी बाहरी मकान में रह लूँगी। शहजादी यह सुन कर उठ खड़ी हुई और बोली, पहले यही काम निबटा लिया जाए। मेरे साथ चल कर खुद ही खाली मकानों में से किसी को अपने रहने के लिए पसंद कर लो। जादूगर ने उस के साथ जा कर कई मकान देखे और एक को अपने लिए पसंद किया। शहजादी ने सेवक भेज कर फातिमा का हलका-फुलका घरेलू सामान मँगा दिया और जादूगर फातिमा बन कर महल में डट गया।
शहजादी ने उस से कहा कि मेरे साथ ही भोजन करो। जादूगर को डर था कि भोजन के समय कहीं शहजादी मेरा छद्मरूप पहचान न ले। उस ने हँस कर कहा, मुझे तुम्हारे तर माल से क्या लेना-देना? मैं तो दिन में एक बार रोटी के कुछ टुकड़े मेवों की गिरी के साथ खाया करती हूँ। वह तुम मेरे यहाँ भेज देना। शहजादी बोली, ऐसा ही सही। मैं तुम्हारे लायक खाना भिजवाती हूँ। लेकिन तुम भोजन के बाद मेरे पास आना। यह कह कर शहजादी चली गई और उस ने रोटी और मेवे जादूगर के लिए भिजवा दिए। जादूगर ने भोजन लानेवाले सेवक से कहा, जब शहजादी भोजन कर लें तो मुझे बताना।
शहजादी के भोजन करने के बाद सेवक ने आ कर उस से कहा कि शहजादी ने भोजन समाप्त कर लिया है और आप की प्रतीक्षा में हैं। जादूगर उठ कर बारहदरी में गया जहाँ शहजादी बैठी थी। शहजादी ने उठ कर उस का स्वागत किया और फिर इधर-उधर की बातें होने लगीं। शहजादी ने कहा, तुम महल के अंदर नहीं रहना चाहती हो तो न सही लेकिन महल को देख तो लो। यह कह कर वह जादूगर को महल के विभिन्न भाग दिखाने लगी। जादूगर ने इसे भी अपना सौभाग्य समझा क्योंकि अपनी योजना पूरी करने के लिए उसे महल का पूरा नक्शा जानना जरूरी था और योजना के पूर्ण होने के बाद उसे महल से भागने में भी आसानी होती।
सारा महल दिखाने के बाद शहजादी उसे फिर बारहदरी में लाई और कहा, यहाँ की एक-एक चीजें देखो। ऐसी शानदार बारहदरी दुनिया में कहीं और न होगी। जादूगर ने घूम- घूम कर बारहदरी को देखा और हर चीज की प्रशंसा की। अंत में वह शहजादी के साथ बारहदरी ही में वार्तालाप के लिए बैठ गया। कुछ देर में बोला, बेटी, यह बारहदरी अद्वितीय है। किंतु कोई और भी चाहे तो धन व्यय करके ऐसी बारहरदरी बनवा सकता है। अगर इसमें एक चीज आ जाए तो इसका सौंदर्य भी पूर्ण हो जाए और यह सदा के लिए अद्वितीय बनी रहे।
शहजादी ने पूछा कि क्या चीज चाहिए। जादूगर बोला, इस के बीचोबीच छत से रूख नामी पक्षी का विशाल अंडा लटकाया जाए। रुख का अंडा एक ही है। उस जैसी चीज के कारण यह बारहदरी हमेशा के लिए अद्वितीय रहेगी। शहजादी ने कहा, रूख पक्षी कैसा होता है और उस का अंडा कहाँ मिलेगा। जादूगर बोला, मुझे इन दुनियादारी की बातों में न घसीटो। जो यह बारहदरी बना सकता है वह रूख का अंडा भी ला सकता है। अब और कुछ बातें करो। शहजादी ने इस बारे में कुछ न पूछा किंतु मन में यह बात धरे रही।
दो-चार दिन में अलादीन शिकार से लौटा तो उस ने देखा कि शहजादी सदा की भाँति प्रसन्नचित्त नहीं है। उस ने इस उदासी का कारण पूछा। पहले तो शहजादी इस बात पर चुप रही किंतु अलादीन पीछे पड़ गया। उस ने कहा, मुझ से तुम्हारी उदासी नहीं देखी जाती। भगवान के लिए बताओ कि इसका क्या कारण है। मैं वादा करता हूँ कि जो कुछ मुझ से बन पड़ेगा वह मैं तुम्हारी प्रसन्नता के लिए जरूर करूँगा। शहजादी ने कहा, हमारी बारहदरी संसार में इस समय अद्वितीय है। किंतु इसमें एक कमी है, वह पूरी हो जाए तो यह संसार में सदा के लिए अद्वितीय हो जाए। अगर इस के बीच में छत से रूख पक्षी का अंडा लटकाया जाए तो इसका मुकाबला कभी नहीं हो सकेगा।
अलादीन ने कहा, अच्छी बात है। लेकिन तुम जरा देर के लिए दूसरे कमरे में चली जाओ। शहजादी चली गई तो अलादीन ने अपने कपड़ों के बीच से निकाल कर जादू के चिराग को रगड़ा। तुरंत ही जिन्न आ खड़ा हुआ। अलादीन ने कहा, रूख नाम के पक्षी का एक अंडा ला कर इस बारहदरी के बीच में छत से लटका दो।
किंतु जिन्न आज्ञापालन करने के बजाय इतनी जोर से गरजा कि सारा महल हिल गया। अलादीन भी बेहद घबरा गया। जिन्न ने गरजते हुए कहा, दुष्ट कृतघ्न, मैं ने और चिराग के दूसरे जिन्नों ने सदा तेरी आज्ञा का पालन किया और तू जिस योग्य न था वह सब कुछ तुझे दिलाया। तू कमबख्त इसका अहसान मानने के बजाय हमें यह कह रहा है कि अपने असली स्वामी ही को ला कर तेरी बारहदरी की सजावट बनाएँ? अलादीन यह सुन कर थर-थर काँपने लगा।
जिन्न फिर बोला, इस बात पर हमें चाहिए था कि तेरे इस महल के और इस के निवासियों के टुकड़े-टुकड़े करके हवा में उड़ा देते। किंतु तेरी मौत अभी नहीं लिखी। इसीलिए तूने या तेरी स्त्री ने यह बेहूदा माँग अपनी इच्छा से नहीं की है बल्कि किसी के बहकाने से की है। हम तुझे छोड़ देते हैं पर अब तेरी आज्ञा पर न आएँगे। हाँ, जाने से पहले मैं तुझे एक बड़े खतरे से होशियार किए देता हूँ। तेरी स्त्री ने एक जादूगर के बहकावे में आ कर यह माँग की है। यह जादूगर उस जादूगर का छोटा भाई है जिसे तूने विष दे कर मारा था। वह अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए आया है क्योंकि उसे रमल से अपने भाई की हत्या की बात मालूम हो गई थी। उस ने फातिमा बीबी के घर जा कर उसे मार डाला है और उस का वेश बना कर तेरे महल के एक बाहरी मकान में रह रहा है।
उस ने शहजादी को इसलिए बहकाया है कि मैं क्रोध में आ कर तुम दोनों को मार डालूँ। तुम उस से होशियार रहो वरना वह भाई का बदला लिए बगैर नहीं रहेगा। यह कह कर जिन्न गायब हो गया।
अलादीन तो फातिमा के बारे में जानता ही था। उस ने कुछ देर सोच कर अपनी योजना बना ली। वह शहजादी के कमरे में गया। शहजादी उस से रूख के अंडे के बारे में कुछ पूछे इस से पहले वह सिर पकड़ कर लेट गया और हाय-हाय करने लगा। शहजादी के पूछने पर उस ने बताया कि अचानक सिर में बहुत तीव्र पीड़ा होने लगी है जिसने मुझे बेहाल कर दिया है। शहजादी बोली, यह सौभाग्य की बात है कि बीबी फातिमा यहीं हैं, वे चुटकी बजाते ही तुम्हारा दर्द दूर कर देंगी। यह कह कर उस ने एक सेवक से कहा कि बीबी फातिमा को बुला लाओ, मालिक के सिर में दर्द हो रहा है।
जादूगर ने देखा कि जिन्न ने भी अलादीन को नहीं मारा तो वह खुद उसे मारने की तैयारी करके आया। अलादीन ने कहा, माता जी, मेरे सौभाग्य से आप यहाँ हैं वरना मैं सिर दर्द के मारे मर ही जाता। आप की कृपा हो तो मेरी पीड़ा एक क्षण में दूर हो सकती है। मेरे हाल पर दया कीजिए और अपने आशीर्वाद और मंत्रों के द्वारा मेरी पीड़ा दूर कीजिए। इस दर्द ने मेरा बुरा हाल कर रखा है। यह कह कर अलादीन ने अपना सिर झुका कर उस के आगे कर दिया।
जादूगर ने एक हाथ अलादीन के सिर पर रखा और दूसरे से अपने कपड़ों में छुपाई हुई कटार निकालने लगा। अलादीन होशियार था ही। उस ने फुर्ती से उस का हाथ मरोड़ कर कटार छीन ली और उस की छाती में उतार दी। वह एक मिनट तड़प कर मर गया।
शहजादी ने दूर से देखा तो चीख कर कहने लगी, मेरे प्रियतम, यह घोर पाप तुमने क्यों किया क्यों? ऐसी पवित्रात्मा वृद्धा की हत्या कर दी! किंतु अलादीन ने उस से कहा, दास-दासियों को हटा दो और तुम मेरे पास आओ। सब के हटने के बाद शहजादी पास आई तो अलादीन ने जादूगर का मुखावरण हटाते हुए कहा, अच्छी तरह देखो। मैं ने फातिमा बीबी को नहीं, इस नरक के कीड़े को मारा है। शहजादी ने मृत चेहरा देखा तो वास्तव में पुरुष दिखाई दिया।
अलादीन ने कहा, यह दुष्ट तुम्हारा अपहरण करनेवाले जादूगर का छोटा भाई था। यह खुद जादूगर था और अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए यहाँ आया था। इस ने बेचारी फातिमा के घर जा कर उस से अपना रूप बदलवाया और फिर यहाँ आ कर तुम्हें बहका कर हम दोनों को मरवाना चाहा। चिराग के जिन्नों का असली स्वामी रूख का अंडा है। मेरी माँग पर जिन्न बहुत बिगड़ा और कहने लगा कि तुमने अपनी ओर से यह माँग की होती तो तुम्हें, तुम्हारी पत्नी और तुम्हारे महल को अभी खत्म कर देता। किंतु तुमने बहकावे में आ कर यह माँग की है इसलिए छोड़ देता हूँ लेकिन अब तुम्हारे बुलाने पर न आऊँगा। यह कहने के बाद उसी ने उस जादूगर का पूरा हाल मुझे सुनाया।
शहजादी ने यह सुन कर भगवान को धन्यवाद दिया। कमी ही किस चीज की रह गई थी जो जिन्न को फिर बुलाया जाता। दोनों ने विश्वस्त सेवकों द्वारा इस जादूगर की लाश भी जंगल में फिंकवा दी। उस के बाद दोनों पति-पत्नी शांति और सुख से रहने लगे। कुछ वर्ष और बीते तो चीन का बादशाह अति वृद्धावस्था के कारण हलकी-सी बीमारी के बाद मर गया। बदर बदौर के अतिरिक्त उस के और कोई संतान न थी इसलिए उस की मौत के बाद वही रानी बनी और अलादीन के हाथ में सारा राज्य-प्रबंध आ गया। लंबे अरसे तक दोनों ने राज्य सुख भोगा।
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