वास्तविक ज्ञान (Actual knowledge) आध्यात्मिक कथा :-
Actual knowledge(वास्तविक ज्ञान )
कनखल के समीप गंगा किनारे महर्षि भारद्वाज और महर्षि रैभ्य के आश्रम थे। दोनों में मित्रता थी। रैभ्य और उनके दोनों पुत्र परम विद्वान् थे तथा लोक में सम्मानित भी। भारद्वाज तपस्वी थे, किन्तु अध्ययन में रूचि न थी। भारद्वाज के पुत्र यवक्रीत भी पिता की भांति अध्ययन से दूर रहे। जब उन्होनें रैभ्य और उनके पुत्रों की ख्याति देखि, तो वैदिक ज्ञान प्राप्त करने की कामना से उन्होनें उग्र तप प्रारंभ कर दिया। देवराज इन्द्र जब उपस्थित होकर कथूर तप का कारण पूछा, तो यवक्रित ने कहा - गुरु के मुख से वेदों की सम्पूर्ण शिक्षा शीघ्रता से नहीं पाई जा सकती। अतः कठोर तप से शास्त्र ज्ञान पाना चाहता हूं। इंद्र ने सलाह दी, यह उलटा मार्ग है, आप योग्य गुरु के सान्निध्य में अध्ययन कर शास्त्र ज्ञान प्राप्त करें। इंद्र चले गए, किन्तु यवक्रित ने भी तप जारी रखा। एक दिन इंद्र वृद्ध ब्राह्मण के वेश में उस स्थान पहुंचे, जहां से यवक्रित गंगा में स्नान के लिए उतरते थे। यवक्रित जब स्नान कर लौटे, तो देखा वृद्ध ब्राह्मण मुट्ठी भर-भरकर गंगा में रेत डाल रहा है।
यवक्रित ने कारण पूछा तो वृद्ध ब्राह्मण ने उत्तर दिया - लोगों को यहां गंगा के उस पार जाने में असुविधा होती है, अतः मैं इस रेत से नदी पर सेतु निर्माण कर रहा हूं। यवक्रित ने कहा - भगवन! इस महाप्रवाह को बालूरेत बांधना असंभव है। आप निष्फल प्रयत्न कर रहे है। तब वृद्ध ब्राह्मण ने यवक्रित से कहा - ठीक उसी तरह तुम उग्र तप से गुरु के बगैर वैदिक ज्ञान प्राप्त करना चाहते हो। तत्काल यवक्रित ने ब्राह्मण को पहचान लिया। यवक्रित ने इंद्र से क्षमा मांगी और स्वीकारा कि गुरु के बगैर ज्ञान असंभव है। विशेषकर यदि उसमे हठ और अंहकार है, तब तो वह सम्भव हो ही नहीं सकता। विद्या के लिए गुरु कि कृपा और निरन्तर अध्ययन अनिवार्य है। यदि कोई हठ कर स्वयं ही विद्या प्राप्त करने का प्रयास करे तो उसके प्रयास निष्फल होने का खतरा बना रहता है। अतः गुरु कृपा की अनदेखी नहीं करनी चाहिए।
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