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    जीवन का सार यही है (This is the essence of life) आध्यात्मिक कथा :-


    एक सन्यासी छोटे से गाँव में गए । ग्रामवासी उनके आसपास एकत्रित हुए और उनके समक्ष अपने अनुरोध रखते हुए विनम्रता से बोले, “प्रिय महोदय, हमारी समस्याओं से छुटकारा पाने में कृपया हमारी सहायता करें; हमारी इच्छाओं को पूर्ण होने दीजिये- केवल तभी हमारा जीवन आनंद से परिपूर्ण होगा.”

         महंत ने शांतिपूर्वक उनकी बात सुनी. अगले दिन वह एक देववाणी होने के लिए सहमत हो हुए. देववाणी एक आवाज़ का जरिया होता है जिसके द्वारा ईश्वर सलाह या भविष्यवाणी करते हैं.

        “कल दोपहर इस गाँव में एक चमत्कार होने वाला है. अपनी समस्त समस्याओं को एक काल्पनिक बोरी में बाँधकर नदी के पार ले जाओ और वहाँ छोड़ आओ. फिर उसी काल्पनिक बोरी में वह सब डालो जो तुम चाहते हो जैसे कि सोना, जवाहरात, अन्न और उसे घर ले जाओ. ऐसा करने से तुम्हारी इच्छाएँ वास्तविकता में बदल जाएंगी.”

          ग्रामवासी संशय में थे कि यह भविष्यवाणी सत्य थी या नहीं. मगर स्वर्ग से आई आवाज़ ने उन्हें चकित कर दिया था. सब ने आपस में विचार-विमर्श करने के बाद फैसला किया कि निर्देश का पालन करने से उन्हें कोई हानि नहीं होगी. यदि वह भविष्यवाणी सत्य थी तो जो वह चाहते थे, वह उन्हें वास्तव में मिलेगा और यदि वह असत्य थी तो भी कोई बड़ी बात नहीं थी. अतः जैसा उन्हें बताया गया था उन्होंने वैसा ही करने का फैसला किया.

             अगले दिन दोपहर में सभी गाँव वालों ने अपनी परेशानियों को एक काल्पनिक बोरी में डाला और नदी के उस पार जाकर छोड़ आए. परेशानियों के बदले सब वह वापस लेकर आए जो उनकी समझ में खुशियों का कारण था जैसे कि सोना, गाड़ी, घर, गहने व हीरे.

           घर लौटने पर सभी ग्रामवासी अवाक थे. भविष्यवक्ता ने जो भी कहा था वह सच हो गया था. जिस व्यक्ति को गाड़ी चाहिए थी, उसे अपने घर के बाहर गाड़ी खड़ी मिली. जिसने आलीशान घर की कामना की थी उसने पाया कि उसका घर महल में बदल गया था. सभी अत्यधिक प्रसन्न थे. उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था. 

    लेकिन अफ़सोस! आनंद और उत्सव-काल कुछ समय तक ही चला. जब वह स्वयं की तुलना अपने पड़ोसियों से करने लगे तो सभी को ऐसा प्रतीत हुआ कि उनका पड़ोसी उनसे अधिक खुश व अमीर था. सभी एक दूसरे से अधिक विवरण जानने के लिए खोद-खोदकर बातें करने लगे. जल्द ही उनका हर्ष और आनंद, पछतावे व अफ़सोस में बदल गया.

        “मैंने एक साधारण सी माला की अपेक्षा की थी जबकि मेरे पड़ोस की लड़की ने सोने के एक अलंकृत हार की माँग की थी और उसे वह मिल गया. मैंने केवल एक घर का ही निवेदन किया था लेकिन विपरीत घर में रहने वाले व्यक्ति ने एक महल की प्रार्थना की थी. हमें भी इस प्रकार की चीज़ों की याचना करनी चाहिए थी. इतना अनोखा अवसर था; जीवन भर का सुनहरा मौका था. हमने अपने मूर्खता से इसे जाने दिया.”

     इस प्रकार के विचार सभी गाँव वालों को परेशान कर रहे थे. अतः एक बार पुनः सभी ग्राम वासी महंत के पास गए और उनके समक्ष अपनी शिकायतों का ढेर लगाया. सारा गाँव एक बार फिर निराशा व असंतोष में डूब गया.

     शिक्षा :-
        बहुतों को लगता है कि अगर उन्हें परेशानियाँ होंगी तो वह खुश नहीं रह पाएंगे. लेकिन हमें अपनी खुशियों को समस्याओं से नहीं जोड़ना चाहिए. परेशानियाँ हर किसी के जीवन में होती हैं. हमें स्वयं से यह कहना चाहिए, मैं प्रसन्नचित्त बना रहूँगा और हँसमुख रहूँगा. इसका अर्थ यह नहीं है कि हमें परेशानियों को सुलझाने के बारे में नहीं सोचना चाहिए.

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