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    चरित्र की परीक्षा (Character test) शिक्षाप्रद कहानी :-


    चरित्र की परीक्षा… (Character test)
    देवपुर नामक एक गांव में शिशिर नाम का एक व्यक्ति बहुत हंसी ख़ुशी रहता था। खेती बाड़ी करने के साथ साथ शिशिर बहुत ही धर्म परायण भी था। शिशिर अपनी धर्म परायणता, पुण्य, दान, चरित्र और सम्पन्नता के कारण अपने क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध था। सभी लोगों का मानना था कि शिशिर जैसा नेक और ईमानदार व्यक्ति पूरे गांव में नहीं है।

    जब शिशिर के इस गुण गान की खबर ‘पाप और वासना’ ने सुनी तो उन्होंने शिशिर की परीक्षा लेना चाहा। पाप ने एक बूढ़े ब्राह्मण का रूप बनाया और वासना ने एक सुन्दर युवती का और दोनों शिशिर के घर की तरफ चल दिए।

    एक दिन की बात है। शाम होने लगी थी और रौशनी भी काली चादर ओढ़ने लगी थी। दिन भर के थके किसान और मज़दूर अपने अपने घरों में लोट रहे थे। शिशिर भी अपने घर पंहुचा ही था कि दरवाज़े पर खटखटाने की आवाज़ सुनाई दी। आवाज़ सुनकर शिशिर ने दरवाज़ा खोला तो सामने एक बूढ़ा ब्राह्मण और एक ख़ूबसूरत युवती खड़ी थी।

    बूढ़ा ब्राह्मण को देखकर
    शिशिर ने कहा,, - “आप कौन हैं और मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूँ।
    बूढ़ा ब्राह्मण बोला,, -  ‘मैंने आपका बहुत नाम सुना है और आपके यश ज्ञान से प्रभावित होकर मैं आपके पास आया हूँ।

    हम मुसाफिर हैं और बहुत दूर से आ रहे हैं और हमे आज रात ही आगे एक गांव में पहुंचना है। रास्ता सूनसान है और रास्ते में नदी नाले हैं और चोर, गुंडों का भय भी है। इसी परिस्थिति में मैं अपनी युवा पुत्री को अपने साथ लेकर नहीं जा सकता हूँ। आपसे निवेदन है की कृपया आप मेरी पुत्री को आज रात अपने घर पर रख लीजिये। लौटते वक्त मैं अपनी पुत्री को ले जाऊंगा।

    शिशिर सोचने लगा।
    तभी बूढ़े व्यक्ति ने कहा,, -  ‘आप क्या सोच रहे हैं। ” आप जैसे धर्मशील व्यक्ति के चरित्र पर तनिक भी संदेह की कोई गुंजाईश नहीं है। मेरी दुर्लभ अवस्था को देखिये। रात्रि में मैं अपनी जवान पुत्री को लेकर कैसे जा सकता हूँ। शिशिर ने धर्म की मर्यादा और अतिथि सम्मान को समझते हुए उस ब्रह्मांड की पुत्री को अपने घर रख लिया।

    पाप अपनी कुटिल योजना की पहली सफलता से बहुत खुश था। वासना रुपी सुंदरी भी घर में पैर रखते है शिशिर पर अपना माया जाल फैलाने लगी। नाना श्रृंगार बनाकर, अपने मीठे बोल से, रूप यौवन दिखाकर उसे रिझाने लगी। संगत का ऐसा ही प्रभाव होता है। शिशिर का मन उस सुंदरी के मायाजाल में भटकने लगा। लेकिन शिशिर ने अपने मन को नियंत्रक में रखा और धर्म रक्षा का भाव उसके मन में आने लगा।

    काफी दिन हो गए बूढ़ा ब्राह्मण नहीं लोटा क्योंकि यह तो पाप की कुटिल योजना थी। युवती के रहते कई दिन बीत गए। वासना के जाल में शिशिर धीरे धीरे फसने लगा। आलस्य और प्रमोद शिशिर को अपनी गिरफ्त में लेने लगा।
    "तभी एक रात शिशिर को सपना आया कि एक ज्योतिमय देवी उसके घर से बाहर निकल रही थी। शिशिर ने पुछा आप कौन हो देवी और मेरे घर से बाहर क्यों जा रही हो ? देवी ने कहा तुम धर्म से हटने लगे हो। मैं सौभाग्य लक्ष्मी हूँ। मैं अब इस घर में नहीं रह सकती, इसलिए जा रही हूँ" !

    उधर वासना रुपी कन्या का प्रेमजाल बढ़ता जा रहा था।

    "दूसरी रात शिशिर को फिर सपना आया। एक दिव्य देवी घर से बाहर जा रही थी। शिशिर के पूछने पर उन देवी ने जबाब दिया “तू वासना रुपी उस युवती के चक्कर में पड़ गया है। मैं यशलक्ष्मी हूँ इस कारण यहाँ से जा रही हूँ" !

    "तीसरे दिन शिशिर ने फिर सपना देखा। एक देवी प्रकट होकर कहने लगी तुम वासना के जाल में फसते जा रहे हो। मैं कुलदेवी हूँ और ऐसे में मैं इस घर में नहीं रह सकती। मैं जा रही हूँ। इतना कहकर वो भी चली गई" !

    कुछ दिन और बीत गए। वासना रुपी युवती शिशिर से और निकटता बढ़ाने लगी।
    "तभी उस रात शिशिर को एक और सपना आया। एक दिव्य पुरुष घर से निकल रहा था। उन्हें देखकर शिशिर ने उनके पैर कसकर पकड़ लिए और पुछा आप कौन हो और घर से क्यों जा रहे हो। उस दिव्य पुरुष ने कहा “मैं धर्म हूँ। तुम्हारे घर से सौभाग्य, यश और कुल तीनों देवियां चली गई। मैं अकेला इस घर में नहीं रह सकता। इस कारण मैं भी जा रहा हूँ" !

    इतना सुनते ही शिशिर ह्रदय से रो पड़ा। उसकी आखों में आंसू आने लगे।
    धर्म के पैर पक़र बोला,, - भगवान मैं जो कुछ किया है धर्म की रक्षा के लिए ही किया है। आपके कारण ही उस कन्या को घर में जगह दी। मैंने अतिथि धर्म की रक्षा की है। मुझे क्षमा कर दें और मेरे घर से ना जाएँ। वासना से मेरा कोई सम्बन्घ नहीं है मैंने तो धर्म की रक्षा की है।

    "जागने पर शिशिर पहले की तरह धर्म का पालन करने वाला हो गया और उसी समय वासना रूपी युवती भी घर से गायब हो गई"

    इस कहानी से हम सीख सकते हैं
    कि अपने मन को वश में रखकर हम कोई भी कुसंगति को छोड़ सकते हैं। धर्म का पालन ही सर्वश्रष्ठ है। जहाँ आपका अच्छा आचरण, दूसरों के प्रति आदर आपको सम्मान दिलाता है और आप जीवन के उच्च स्तर पर पहुंचने हैं उसी प्रकार कुसंगति, बुरे विचार, क्रोध, अहंकार आपको नीचे गिरा देता है।

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