पसीने की कमाई (Hard Work Earnings) शिक्षाप्रद कहानी (Didactic story)
कड़ी मेहनत की कमाई का महत्व
(Importance of Hard Work)
एक नगर में एक गरीब ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था। वो भिक्षा मांग कर अपना जीवन गुजारता और भगवान की पूजा में लगा रहता था। वह उतनी ही भिक्षा मांगता जिससे उसके और उसके परिवार का पेट भर सके।
उस नगर का राजा बहुत धनवान और ब्राह्मणों का आदर करने वाला था। राजा किसी भी ब्राह्मण को अपने महल से खाली हाँथ नहीं जाने देता था। दूर दूर से ब्राह्मण राजा के पास आते और मुँहमाँगा दान लेकर आशीर्वाद देते हुए चले जाते।
एक दिन ब्राह्मण की पत्नी ने ब्राह्मण से कहा की “दूर दूर के ब्राह्मण राजा से मनचाहा दान लेकर चले जाते हैं और तुम यहाँ के यहाँ एक दिन भी राजा के पास नहीं गए, जन्म भर कंगाली कहा तक झेलू। आज तुम जाओ और राजा से कुछ मांग कर लाओ।”
ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा “तू तो बाबरी है, हमें धन की क्या जरूरत। हमें इतना तो मिल ही जाता है जिससे हम अपना पेट भर सकें और राजा का धन अच्छा नहीं होता, वो हमें नहीं लेना चाहियें।”
ब्राह्मण की पत्नी जिद पर अड़ गई और बोली “मैं तुम्हारी एक भी बात सुनने वाली नहीं हूँ। कब तक हम कंगाली में जीते रहेंगे। तुम तो रोज़ माला लेकर बैठ जाते हो। अपने बच्चों को क्या खिलाएं और क्या पहनायें। जब बचें दूसरे बच्चों को पहनते, ओढ़ते और खाते पीते देखते हैं तो उनका मन भी ललचाता है। आज तुम राजा के पास जाओ। राजा बहुत भला व्यक्ति है वो हमें जरूर मुँह माँगा दान देगा।”
मज़बूर होकर ब्राह्मण राजा के महल की और चल दिया पर राजा उस समय महल में नहीं था। ब्राह्मण को वापिस लौटना पड़ा। दूसरे दिन ब्राह्मण की पत्नी ने ब्राह्मण को फिर से महल भेजा परन्तु राजा फिर से महल में नहीं मिला।
तीसरे दिन राजा महल में मिल गया और उसने ब्रह्मण का स्वागत किया और उसे आसन पर बैठाया। और दो दिन न मिल पाने के लिए क्षमा भी मांगी। राजा ने कहा “मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ।”
ब्रामण ने कहा “जो मैं मांगू वो आप दें सकेंगे।” राजा ने कहा “हाँ हाँ कहिये मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ।” ब्राह्मण ने निवेदन दिया “महाराज मैं कुछ और नहीं चाहता बस आप मुझे अपनी ‘पसीने की कमाई’ से चार पैसे दान में दे दीजिये।”
ब्राह्मण की बात सुनकर राजा चौंक गया और सोचने लगा, खजाने में बहुत सारा धन पड़ा है पर मेरे मेहनत की एक कोड़ी भी नहीं है। राजा ने ब्राह्मण से कहा “आप मुझे एक दिन का समय दें मैं कल आपको आपका मुँह माँगा दान दे दूंगा।”
ब्राह्मण को जब खाली हाँथ देखा तो पत्नी बोली “क्या हुआ राजा ने कुछ नहीं दिया।” ब्राह्मण बोला “राजा ने कल देने के लिए कहा है।” ब्राह्मण की पत्नी सोचने लगी, शायद इन्होने बहुत सारा धन माँगा होगा और राजा को इसकी व्यवस्था करने में समय लग रहा होगा इसीलिए कल बुलाया है।
दूसरी और राजा ने अपने राजसी कपडे बदलकर फटे पुराने कपडे पहने और मज़दूर जैसा भेष बना लिया। जब राजा की पत्नी ने देखा और कारण पूछा तो राजा ने सब कुछ बताया। रानी बोली “मैं भी आपके साथ चलूंगी।” राजा के हाँ कहने पर रानी भी पुरानी साड़ी पहन कर आ गई। इस प्रकार राजा रानी मज़दूरी की तलाश में शहर निकले।
लुहारों के महुल्ले में जाकर राजा ने आवाज़ लगाई “किसी को मज़दूर चाहियें मज़दूर” आखिर एक लुहार ने उन्हें बुला लिया जो पहियें पर हाल चढाने के तैयारी कर रहा था। उसने राजा से कहा “देखो तुम्हें पहले खलात धौकनी पड़ेगी और जब आग आ जाये उसके बाद घन पीटना होगा।” फिर रानी की और देखकर कहा “तुम्हें कुएं से पानी लेकर होदी भरनी पड़ेगी। और कोयले वाले घर से कोयला लेकर भट्टी में डालना होगा। तुम दोनों को दिन भर में दो दो आने मिलेंगे अगर काम पसंद हो तो बोलो नहीं तो अपना रास्ता नापो।”
राजा-रानी लुहार के बताये काम को करने लगे। राजा खलात धौकने लगा पर उससे काम ठीक से नहीं हो पा रहा था। लौहार नाराज़ होकर राजा को ठीक से काम करने के लिए कहता। राजा जैसे तैसे अपना काम करने लगा। रानी भी कुए से पानी भरकर लाने लगी। रानी के हाँथ में फफोले पड़ गए। किसी तरह बड़ी कठनाइयों से उसने पानी का हौज़ भरा। उसके बाद रानी कोयला लाकर भट्टी में डालने लगी। कोयल भरने से रानी के गोर हाँथ और कपडे काले हो गए।
भट्टी में आग आने पर लुहार ने पाँत भट्टी में से निकालकर पहियें पर जमाई और एक धन अपने हाँथ में लेकर और एक राजा के हाँथ में देकर कहा “देखो बारी बारी से धन इस पर पटकना। हाँथ इधर उधर न होने पाए।” राजा जोर जोर से धन पटकने लगा, लेकिन उसका निशाना ठीक नहीं बैठना था। कभी धन हाल पर गिरता तो कभी पहियें पर। मज़दूरों का यह हाल देखका लुहारिन बड़बड़ाती हुई आई और लुहार से कहने लगी “तुमने कहाँ से यह नौसिखये मज़दूर काम पर लगाए हैं। इनसे काम नहीं होगा, यह सस्से मज़दूर तुम्हारा सब काम बिगाड़ देंगे।”
राजा रानी उन दोनों की फटकार सुनने सुनने अपना काम मन लगाकर करते रहे। घन पटकते पटकते राजा का शरीर पसीन से तर हो गया और जोर जोर से साँस चलने लगी। रानी भी पानी भरते भरते और कोयला झोकते झोकते थक कर चूर हो गई।
दोनों ने पूरे दिन बहुत मेहनत की। लुहार ने राजा रानी को दो दो पैसे दिए जिसे वो बड़ी ख़ुशी ख़ुशी लेकर महल आ गए। आज उन्हें पता चला की मेहनत की कमाई कैसी होती है। राजा ने चार पैसे अलग रख दिए और अगले दिन ब्राह्मण को बुलाकर उसे दे दिए।
ब्राह्मण राजा को आशीर्वाद देकर घर लोटा और ब्राह्मणी से कहा “लो मैं राजा के यहाँ से दक्षिणा ले आया हूँ। ब्राह्मणी खुश होकर दौड़ती हुई आई। पर जब उसने चार पैसे देखे तो वो ठिठक कर रह गई और उन्हें दूर फेंक किया। वो जलभुनकर ब्राह्मण से बोली “तुम जैसे दरिद्र से राजा के यहाँ जाकर भी कुछ न माँगा गया। शर्म भी नहीं आती” कहकर रूठ कर चली गई और बहुत देर तक बड़बड़ करती रही।
ब्राह्मण ने उन चार पैसों का उठाकर तुलसी घर के पास रख दिए। और सोचा जब ब्राह्मणी शांत हो जायगी तो ज़रुरत पड़ने पर उठा लेगी। परन्तु कई दिनों तक पैसे वही रखे रहे। और फूल बेलपत्र ऊपर से गिर कर मिटटी में दब गए। ब्राह्मण और ब्राह्मणी दोनों ही उन सिक्कों के बारे में भूल गए।
कुछ दिनों बाद तुलसी घर में चार पोधे उगे। चरों पौधे बहुत सुन्दर थे। यह देख ब्राह्मणी रोज़ उनमे पानी डाल देती। चार महीने बाद वो पौधे बड़े हो गए और उनमें फूल लगने लगे। फूल सूखने पर इनसे मोती झड़ने लगे। ब्राह्मण और ब्राह्मणी ने कभी मोती नहीं देखे थे वो समझे की कोई बीज है।
हर रोज़ कई फूल झड़ते और बहुत मोती पूरे तुलसी घर में बिखर जाते। ब्राह्मणी उन मोतियों को समेत कर घर के एक कोने में डाल देती। इस तरह वहां मोतियों का ढेर लग गया।
एक दिन एक सब्ज़ी वाली आई। ब्राह्मणी को सब्ज़ी लेनी थी पर उसके पास पैसे नहीं थे। उसने सब्ज़ी वाली से कहा क्या तुम इन चमकदार बीजों के बदले सब्ज़ी दे सकती हो। सब्ज़ी वाली ने देखा तो वो पहचान गई की ये तो मोती हैं। उसने ख़ुशी ख़ुशी ब्राह्मणी को उन मोतियों के बदले उसकी मन पसंद सब्ज़ी दे दी। अब से हर रोज़ ऐसा होने लगा।
ब्राह्मणी और सब्ज़ी वाली दोनों खुश थे। सब्ज़ी वाली यह सोचकर खुश थी की मुझे एक पैसे की तरकारी के बदले हज़ारों का माल मिलता है और ब्राह्मणी यह सोच कर खुश थी की इस बीजों के बदले सब्ज़ी मिल जाती है। इस प्रकार कई महीने बीत गए।
उधर राज महल में कई राजहंस थे जो मोती चुगते थे। राजा का यह नियम था जब राजहंस मोती चुगलेते थे उसके बाद ही राजा और उसका परिवार भोजन करता था। एक समय बाद राजा का सारा धन उन मोतियों और दान देने में खर्च हो गया। अब राजा को मोती खरीदने के पैसे तक नहीं बचे। यह खबर पूरे नगर में फ़ैल गई।
ब्राह्मण और ह्मणी को जब यह पता चला तो उन्होने यही विचार किया की राजा बहुत दानी और नेक दिल है। उसने अपना सबकुछ दान कर दिया। यहाँ तक की शायद उनके पास खाने को भी कुछ नहीं है। ऐसे हालत में हमें उन लोगों की सहायता करनी चाहियें।
ब्राह्मण ने ब्राह्मणी से कहा “अगर तू कहे तो इसमें से कुछ बीज राजा को दे दूँ। तू कहती है इससे सब्ज़ी और खाने के चीज़े मिल जाती हैं।” ब्राह्मणी ने कहा “हाँ मैं रोज़ इसके बदले सौदा लिया करती हूँ।” ऐसा कहकर ब्राह्मणी एक टोकरी बीज भर लाई। ब्राह्मण राजा के पास पहुंचा और उसे वो मोती दिए और राजा को सारी बात बताई।
राजा उन मोतियों को देखकर चौक गया। उसने मोती राजहंस को दिए। राजहंस उन्हें चुगने लगे। यह देख राजा ने ब्राह्मण से कहा “एक एक मोती सैकड़ों रुपए का है! सच बतायें – आपके पास इतने मोती कहाँ से आये।”
ब्राह्मण बोला “महाराज ऐसे बीज तो हमारे घर पर बहुत हैं।” और राजा को पूरी बात बताई। राजा अपने मंत्रियों के साथ ब्राह्मण के घर पहुंचें और उन चारों पेड़ों को देखा। पूछताछ में उन सिक्कों वाली बात सामने आ गई। जब पेड़ों को देखा तो उनकी जड़ के पास वही सिक्के चिपके हुए थे।
आज ब्राह्मण – ब्राह्मणी को मालूम हुआ की उनके पास लाखों करोड़ों की दौलत है, जिसे वो साधारण बीज समझते थे। ब्राह्मण ने सोचा की मेरे लिए यह धन किस काम का। ऐसा सोच ब्राह्मण ने सारे मोती राजा को दान में दे दिए।
राजा की आखें भी खुल गईं। मेहनत के धन की कीमत उन्हें मालूम पड़ गई। उस दिन राजा ने प्रण कर लिया की मैं खजाने के पैसों से एक भी पैसा अपने खर्च में नहीं लगाऊंगा। अपना खर्चा मेहनत करके चलाऊंगा। खजाने और ब्राह्मण के दान से राजा ने जनता के हित में कई धर्म कर्म के काम शुरू कर दिए।
जैसे ब्राह्मण और राजा ने धर्म का पालन किया भगवान करे सब ऐसा ही करें।
(Importance of Hard Work)
एक नगर में एक गरीब ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था। वो भिक्षा मांग कर अपना जीवन गुजारता और भगवान की पूजा में लगा रहता था। वह उतनी ही भिक्षा मांगता जिससे उसके और उसके परिवार का पेट भर सके।
उस नगर का राजा बहुत धनवान और ब्राह्मणों का आदर करने वाला था। राजा किसी भी ब्राह्मण को अपने महल से खाली हाँथ नहीं जाने देता था। दूर दूर से ब्राह्मण राजा के पास आते और मुँहमाँगा दान लेकर आशीर्वाद देते हुए चले जाते।
एक दिन ब्राह्मण की पत्नी ने ब्राह्मण से कहा की “दूर दूर के ब्राह्मण राजा से मनचाहा दान लेकर चले जाते हैं और तुम यहाँ के यहाँ एक दिन भी राजा के पास नहीं गए, जन्म भर कंगाली कहा तक झेलू। आज तुम जाओ और राजा से कुछ मांग कर लाओ।”
ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा “तू तो बाबरी है, हमें धन की क्या जरूरत। हमें इतना तो मिल ही जाता है जिससे हम अपना पेट भर सकें और राजा का धन अच्छा नहीं होता, वो हमें नहीं लेना चाहियें।”
ब्राह्मण की पत्नी जिद पर अड़ गई और बोली “मैं तुम्हारी एक भी बात सुनने वाली नहीं हूँ। कब तक हम कंगाली में जीते रहेंगे। तुम तो रोज़ माला लेकर बैठ जाते हो। अपने बच्चों को क्या खिलाएं और क्या पहनायें। जब बचें दूसरे बच्चों को पहनते, ओढ़ते और खाते पीते देखते हैं तो उनका मन भी ललचाता है। आज तुम राजा के पास जाओ। राजा बहुत भला व्यक्ति है वो हमें जरूर मुँह माँगा दान देगा।”
मज़बूर होकर ब्राह्मण राजा के महल की और चल दिया पर राजा उस समय महल में नहीं था। ब्राह्मण को वापिस लौटना पड़ा। दूसरे दिन ब्राह्मण की पत्नी ने ब्राह्मण को फिर से महल भेजा परन्तु राजा फिर से महल में नहीं मिला।
तीसरे दिन राजा महल में मिल गया और उसने ब्रह्मण का स्वागत किया और उसे आसन पर बैठाया। और दो दिन न मिल पाने के लिए क्षमा भी मांगी। राजा ने कहा “मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ।”
ब्रामण ने कहा “जो मैं मांगू वो आप दें सकेंगे।” राजा ने कहा “हाँ हाँ कहिये मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ।” ब्राह्मण ने निवेदन दिया “महाराज मैं कुछ और नहीं चाहता बस आप मुझे अपनी ‘पसीने की कमाई’ से चार पैसे दान में दे दीजिये।”
ब्राह्मण की बात सुनकर राजा चौंक गया और सोचने लगा, खजाने में बहुत सारा धन पड़ा है पर मेरे मेहनत की एक कोड़ी भी नहीं है। राजा ने ब्राह्मण से कहा “आप मुझे एक दिन का समय दें मैं कल आपको आपका मुँह माँगा दान दे दूंगा।”
ब्राह्मण को जब खाली हाँथ देखा तो पत्नी बोली “क्या हुआ राजा ने कुछ नहीं दिया।” ब्राह्मण बोला “राजा ने कल देने के लिए कहा है।” ब्राह्मण की पत्नी सोचने लगी, शायद इन्होने बहुत सारा धन माँगा होगा और राजा को इसकी व्यवस्था करने में समय लग रहा होगा इसीलिए कल बुलाया है।
दूसरी और राजा ने अपने राजसी कपडे बदलकर फटे पुराने कपडे पहने और मज़दूर जैसा भेष बना लिया। जब राजा की पत्नी ने देखा और कारण पूछा तो राजा ने सब कुछ बताया। रानी बोली “मैं भी आपके साथ चलूंगी।” राजा के हाँ कहने पर रानी भी पुरानी साड़ी पहन कर आ गई। इस प्रकार राजा रानी मज़दूरी की तलाश में शहर निकले।
लुहारों के महुल्ले में जाकर राजा ने आवाज़ लगाई “किसी को मज़दूर चाहियें मज़दूर” आखिर एक लुहार ने उन्हें बुला लिया जो पहियें पर हाल चढाने के तैयारी कर रहा था। उसने राजा से कहा “देखो तुम्हें पहले खलात धौकनी पड़ेगी और जब आग आ जाये उसके बाद घन पीटना होगा।” फिर रानी की और देखकर कहा “तुम्हें कुएं से पानी लेकर होदी भरनी पड़ेगी। और कोयले वाले घर से कोयला लेकर भट्टी में डालना होगा। तुम दोनों को दिन भर में दो दो आने मिलेंगे अगर काम पसंद हो तो बोलो नहीं तो अपना रास्ता नापो।”
राजा-रानी लुहार के बताये काम को करने लगे। राजा खलात धौकने लगा पर उससे काम ठीक से नहीं हो पा रहा था। लौहार नाराज़ होकर राजा को ठीक से काम करने के लिए कहता। राजा जैसे तैसे अपना काम करने लगा। रानी भी कुए से पानी भरकर लाने लगी। रानी के हाँथ में फफोले पड़ गए। किसी तरह बड़ी कठनाइयों से उसने पानी का हौज़ भरा। उसके बाद रानी कोयला लाकर भट्टी में डालने लगी। कोयल भरने से रानी के गोर हाँथ और कपडे काले हो गए।
भट्टी में आग आने पर लुहार ने पाँत भट्टी में से निकालकर पहियें पर जमाई और एक धन अपने हाँथ में लेकर और एक राजा के हाँथ में देकर कहा “देखो बारी बारी से धन इस पर पटकना। हाँथ इधर उधर न होने पाए।” राजा जोर जोर से धन पटकने लगा, लेकिन उसका निशाना ठीक नहीं बैठना था। कभी धन हाल पर गिरता तो कभी पहियें पर। मज़दूरों का यह हाल देखका लुहारिन बड़बड़ाती हुई आई और लुहार से कहने लगी “तुमने कहाँ से यह नौसिखये मज़दूर काम पर लगाए हैं। इनसे काम नहीं होगा, यह सस्से मज़दूर तुम्हारा सब काम बिगाड़ देंगे।”
राजा रानी उन दोनों की फटकार सुनने सुनने अपना काम मन लगाकर करते रहे। घन पटकते पटकते राजा का शरीर पसीन से तर हो गया और जोर जोर से साँस चलने लगी। रानी भी पानी भरते भरते और कोयला झोकते झोकते थक कर चूर हो गई।
दोनों ने पूरे दिन बहुत मेहनत की। लुहार ने राजा रानी को दो दो पैसे दिए जिसे वो बड़ी ख़ुशी ख़ुशी लेकर महल आ गए। आज उन्हें पता चला की मेहनत की कमाई कैसी होती है। राजा ने चार पैसे अलग रख दिए और अगले दिन ब्राह्मण को बुलाकर उसे दे दिए।
ब्राह्मण राजा को आशीर्वाद देकर घर लोटा और ब्राह्मणी से कहा “लो मैं राजा के यहाँ से दक्षिणा ले आया हूँ। ब्राह्मणी खुश होकर दौड़ती हुई आई। पर जब उसने चार पैसे देखे तो वो ठिठक कर रह गई और उन्हें दूर फेंक किया। वो जलभुनकर ब्राह्मण से बोली “तुम जैसे दरिद्र से राजा के यहाँ जाकर भी कुछ न माँगा गया। शर्म भी नहीं आती” कहकर रूठ कर चली गई और बहुत देर तक बड़बड़ करती रही।
ब्राह्मण ने उन चार पैसों का उठाकर तुलसी घर के पास रख दिए। और सोचा जब ब्राह्मणी शांत हो जायगी तो ज़रुरत पड़ने पर उठा लेगी। परन्तु कई दिनों तक पैसे वही रखे रहे। और फूल बेलपत्र ऊपर से गिर कर मिटटी में दब गए। ब्राह्मण और ब्राह्मणी दोनों ही उन सिक्कों के बारे में भूल गए।
कुछ दिनों बाद तुलसी घर में चार पोधे उगे। चरों पौधे बहुत सुन्दर थे। यह देख ब्राह्मणी रोज़ उनमे पानी डाल देती। चार महीने बाद वो पौधे बड़े हो गए और उनमें फूल लगने लगे। फूल सूखने पर इनसे मोती झड़ने लगे। ब्राह्मण और ब्राह्मणी ने कभी मोती नहीं देखे थे वो समझे की कोई बीज है।
हर रोज़ कई फूल झड़ते और बहुत मोती पूरे तुलसी घर में बिखर जाते। ब्राह्मणी उन मोतियों को समेत कर घर के एक कोने में डाल देती। इस तरह वहां मोतियों का ढेर लग गया।
एक दिन एक सब्ज़ी वाली आई। ब्राह्मणी को सब्ज़ी लेनी थी पर उसके पास पैसे नहीं थे। उसने सब्ज़ी वाली से कहा क्या तुम इन चमकदार बीजों के बदले सब्ज़ी दे सकती हो। सब्ज़ी वाली ने देखा तो वो पहचान गई की ये तो मोती हैं। उसने ख़ुशी ख़ुशी ब्राह्मणी को उन मोतियों के बदले उसकी मन पसंद सब्ज़ी दे दी। अब से हर रोज़ ऐसा होने लगा।
ब्राह्मणी और सब्ज़ी वाली दोनों खुश थे। सब्ज़ी वाली यह सोचकर खुश थी की मुझे एक पैसे की तरकारी के बदले हज़ारों का माल मिलता है और ब्राह्मणी यह सोच कर खुश थी की इस बीजों के बदले सब्ज़ी मिल जाती है। इस प्रकार कई महीने बीत गए।
उधर राज महल में कई राजहंस थे जो मोती चुगते थे। राजा का यह नियम था जब राजहंस मोती चुगलेते थे उसके बाद ही राजा और उसका परिवार भोजन करता था। एक समय बाद राजा का सारा धन उन मोतियों और दान देने में खर्च हो गया। अब राजा को मोती खरीदने के पैसे तक नहीं बचे। यह खबर पूरे नगर में फ़ैल गई।
ब्राह्मण और ह्मणी को जब यह पता चला तो उन्होने यही विचार किया की राजा बहुत दानी और नेक दिल है। उसने अपना सबकुछ दान कर दिया। यहाँ तक की शायद उनके पास खाने को भी कुछ नहीं है। ऐसे हालत में हमें उन लोगों की सहायता करनी चाहियें।
ब्राह्मण ने ब्राह्मणी से कहा “अगर तू कहे तो इसमें से कुछ बीज राजा को दे दूँ। तू कहती है इससे सब्ज़ी और खाने के चीज़े मिल जाती हैं।” ब्राह्मणी ने कहा “हाँ मैं रोज़ इसके बदले सौदा लिया करती हूँ।” ऐसा कहकर ब्राह्मणी एक टोकरी बीज भर लाई। ब्राह्मण राजा के पास पहुंचा और उसे वो मोती दिए और राजा को सारी बात बताई।
राजा उन मोतियों को देखकर चौक गया। उसने मोती राजहंस को दिए। राजहंस उन्हें चुगने लगे। यह देख राजा ने ब्राह्मण से कहा “एक एक मोती सैकड़ों रुपए का है! सच बतायें – आपके पास इतने मोती कहाँ से आये।”
ब्राह्मण बोला “महाराज ऐसे बीज तो हमारे घर पर बहुत हैं।” और राजा को पूरी बात बताई। राजा अपने मंत्रियों के साथ ब्राह्मण के घर पहुंचें और उन चारों पेड़ों को देखा। पूछताछ में उन सिक्कों वाली बात सामने आ गई। जब पेड़ों को देखा तो उनकी जड़ के पास वही सिक्के चिपके हुए थे।
आज ब्राह्मण – ब्राह्मणी को मालूम हुआ की उनके पास लाखों करोड़ों की दौलत है, जिसे वो साधारण बीज समझते थे। ब्राह्मण ने सोचा की मेरे लिए यह धन किस काम का। ऐसा सोच ब्राह्मण ने सारे मोती राजा को दान में दे दिए।
राजा की आखें भी खुल गईं। मेहनत के धन की कीमत उन्हें मालूम पड़ गई। उस दिन राजा ने प्रण कर लिया की मैं खजाने के पैसों से एक भी पैसा अपने खर्च में नहीं लगाऊंगा। अपना खर्चा मेहनत करके चलाऊंगा। खजाने और ब्राह्मण के दान से राजा ने जनता के हित में कई धर्म कर्म के काम शुरू कर दिए।
जैसे ब्राह्मण और राजा ने धर्म का पालन किया भगवान करे सब ऐसा ही करें।
कोई टिप्पणी नहीं