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    राजकुमारी दिया और मेंढक की कहानी (Story of princess diya and frog) परियों की कहानियां :-


    बहुत समय पहले की बात है।  खड़ग सिंह नाम का एक राजा था।  वह अपने वचन का पक्का था।  वह अगर किसी को जबान देता तो उसे हर हाल में पूरा करता था।

    राजा की एक बेटी थी।  उसका नाम दिया था। वह बहुत रूपवती थी।  उसे अपनी सुंदरता पर बहुत नाज था। वह किसी से सीधे मुंह बात नहीं करती थी।
    उसके पिता राजा खड़ग सिंह उसे हमेशा समझाते थे कि, ” तुम एक राजकुमारी हो।  तुम्हे सभी से शिष्टता से पेश आना चाहिए।  इस तरह से घमंड में नहीं रहना चाहिए। ”

    एक बार की बात है।  गर्मी के दिन थे।  राजकुमारी दिया अपनी गोल्डन बॉल ( जिसे उसके पिता राजा खड़ग सिंह ने उसके जन्मदिन पर दिया था ) के साथ खेल रही थी।

    खेलते – खेलते वह घर से बाहर आ गयी।  वह अपने खेल में इतनी व्यस्त थी कि वह कब खेलते हुए पास की झील तक आ पहुंची उसे पता ही नहीं चला।
    उसे वहा आनंद आ रहा था।  वहाँ की हरियाली, रंग – बिरंगे फूल और तरह – तरह के पक्षी देखकर वह खुश थी।  तभी उसने अपनी गोल्डन बॉल को हवा में उछाला लेकिन उसे वह पकड़ नहीं सकीय और बॉल झील में जा गिरी।
    राजकुमारी बहुत दुखी हुई।  उसे वह बॉल बहुत ही प्रिय थी।  वह जोर – जोर से रोने लगी।  तभी उसे एक आवाज सुनाई दी, ” क्या हुआ राजकुमारी जी, आप रो क्यों रही हैं।  क्या मैं आपकी कुछ मदद कर सकता हूँ ? ”

    राजकुमारी ने उस तरफ देखा जहां से यह आवाज आ रही थी तो उसकी आखे फटी की फटी रह गयी।  उसने देखा कि एक मेंढक मनुष्य की आवाज में बात कर रहा था।

    राजकुमारी ने मन ही मन सोचा, ” यह भला कैसे हो सकता है।  लगता है इसने मनुष्यों से भाषा सीख ली है।  लेकिन यह कितना बदसूरत है और इसकी आवाज भी कितनी बेसुरी और कर्कश है।  खैर मुझे क्या, मैं  अपना काम करवा लेती हूँ।  ”

    उसके बाद राजकुमारी ने कहा मेरी गोल्डन बॉल इस झील में गिर गयी है।  वह मुझे बहुत प्रिय थी।  क्या तुम इसे निकाल सकते हो ? यह कहकर राजकुमारी रोने लगी।

    तब मेंढक बोला, ” मैं यह गेंद तो निकाल सकता हूँ, लेकिन इससे मेरा किया फ़ायदा होगा ? तुम मुझे क्या दे सकती हो ? ”
    राजकुमारी ने मन ही मन सोचा, ” यह मेंढक बदसूरत होने के साथ – साथ लालची भी है। ” कुछ देर सोचने के बाद वह बोली, ” ठीक है।  तुम गेंद लाओ।  उसके बाद तुम्हे जो कुछ चाहिए वह मिलेगा।  सोना, चांदी, अच्छे कपडे सब कुछ।  ”

    इस पर मेंढक हँसते हुए बोला, ” राजकुमारी जी, यह सब चीजे मेरे किस काम की।  मैं इनका क्या करूंगा।  तुम मुझसे वादा करो कि गेंद निकालने के बाद तुम मुझे अपने साथ महल लेजाओगी, अपने ही थाली में  भोजन कराओगी और अपने ही बेड पर अपने साथ सुलाओगी।  तब मैं यह गेंद लाऊंगा।  ”

    राजकुमारी को वह  गेंद किसी  भी हाल में चाहिए थी सो उसने हाँ कह दिया। जब मेंढक गेंद लेने पानी में गया तब राजकुमारी ने सोचा, ” इस मेंढक ने कितनी अजीब मांग की है।
    अगर मैं  इसके साथ इस तरह रहूंगी और उसकी मांग को मान लुंगी तो मेरी कितनी बेइज्जती होगी।  नहीं, जैसे ही मेंढक गेंद लाएगा, मैं उससे गेंद लेकर तेजी से महल की तरफ भाग जाउंगी।  वह मेरे पीछे नहीं आ सकेगा।  ”
    राजकुमारी यह सब सोच ही रही थी कि मेंढक गेंद लेकर आ गया।  राजकुमारी ने उचककर गेंद उससे ले ली और सरपट महल की तरफ भाग खड़ी हुई।
    मेंढक चिल्लाता रहा लेकिन राजकुमारी ने पीछे पलट कर देखा तक नहीं।  राजकुमारी महल पहुंची और चैन की सांस लेती हुई बोली, ” चलो जान छूटी उस बदसूरत मेंढक से।  ”

    राज को राजकुमारी अपने माता – पिता के साथ रोज की तरह भोजन करने बैठी कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।  राजकुमारी डरी  कहीं वह मेंढक तो सच में नहीं आ गया।  डरते हुए उसने दरवाजा खोला तो देखा सच में वही मेंढक खड़ा था।
    राजकुमारी ने तुरंत ही दरवाजा बंद कर दिया और वापस लौटने लगी कि फिर से दस्तक हुई।  तब राजा ने पूछा, ” बेटी कौन है दरवाजे पर ? ” तब राजकुमारी ने डरते हुए सारी बात राजा को बता दी।
    इस पर राजा ने कहा, ” यह गलत बात है बेटी।  तुम्हे अपना वादा निभाना चाहिए।  जाओ और उस मेंढक को लेकर आओ।  ” राजकुमारी ने बुझे  मन से दरवाजा खोला और मेंढक को ले आयी।

    मेंढक आते ही झट से मेज पर चढ़ गया और राजकुमारी के साथ भोजन करने लगा।  राजकुमारी ने मुश्किल से एक दो कौर खाया होगा।  वह तो सोच रही थी कि इस मेंढक को उठा कर पटक दे लेकिन पिता की वजह से चुप थी।

    मेंढक ने खाना खाने के बाद डकार लेते हुए बोला, ” वाह ! मजा आ गया।  बड़ा ही स्वादिष्ट भोजन था।  राजकुमारी अब मुझे नींद आ रही है।  चलो मुझे अपने कमरे में ले चलो। ”

    राजकुमारी उसे अपने कमरे में ले गयी।  वह ठाठ से तकिये पर लेट गया और कुछ ही देर में खर्राटे भरने लगा।  राजकुमारी को तो नींद ही नहीं आ रही थी।

    काफी देर बाद वह भी सो गयी।  देर से सोने की वजह से वह सुबह देर से उठी।  उठते ही उसने तकिये पर देखा तो मेंढक नहीं था।  वह बड़ी प्रसन्न हुई।  उसने थोड़ा इधर – उधर देखा लेकिन उसे कहीं भी मेंढक दिखाई नहीं दिया।
    राजकुमारी खुश हुई कि तभी उसे एक मधुर आवाज  सुनाई दी, ” क्या हुआ राजकुमारी जी, मेंढक को ढूंढ रही हो।  ” राजकुमारी से विस्मय से देखा।  वहाँ एक खूबसूरत राजकुमार खड़ा था।

    राजकुमारी को बड़ा ही आश्चर्य हुआ।  उसने पूछा तुम कौन हो और मेरे कमरे में कैसे आये और तुम्हे मेंढक वाली बात कैसे पता है ?  तब राजकुमार ने मुस्कुराते हुए कहा, ” राजकुमारी जी मैं ही वह मेंढक हूँ।  मुझे जंगल में एक साधू ने श्राप दे दिया था।  ”

    ” मेरा नाम उदय सिंह है।  मैं आपके पडोसी राज्य के राजा सूरज सिंह का पुत्र हूँ।  मैं जंगल में शिकार के के लिए गया था।  वहा मूक जानवरों के वध से क्रोधित होकर एक साधु ने मुझे मेंढक बना दिया।  ”

    काफी अनुनय – विनय के बाद उन्होंने कहा कि जब एक राजकुमारी अपनी गेंद लेने इस झील में आएगी और तुम उसके महल जाओगे और उसकी थाली में भोजन करोगे और उसके विस्तर पर सोओगे तब यह श्राप कटेगा।

    तब से  में उस झील में तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा था।  आज मेरा श्राप ख़त्म हुआ।  इसके लिए तुम्हारा धन्यवाद।  इधर जब राजकुमारी काफी सुबह होने पर भी कमरे से बाहर नहीं आयी तो राजा खड़ग उसे जगाने पहुंचे और दरवाजा खुलने पर अंदर का नजारा देख आश्चर्यचकित रह गए।

    उन्होंने अपनी बेटी से पूछा, ” यह सब क्या हो रहा है ? मुझे तो कुछ समझ  ही नहीं आ रहा है।  वह मेंढक कही दिख नहीं रहा है और राजकुमार उदय सिंह जो कई दिनों से लापता थे वह यहां कैसे आये ? ”

    उसके बाद राजकुमारी और राजकुमार ने  पूरी कहानी बता दी।  उसके बाद राजा सूरज सिंह को सूचना भिजवाई गयी।  दोनों राजा बहुत ही प्रसन्न थे।  राजकुमारी और राजकुमार एक दूसरे को पसंद करने लगे और कुछ ही दिनों में उनका विवाह हो गया और सभी ख़ुशी से रहने लगे।

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