राजकुमार और परीयां (Prince and fairy) परियों की कहानियां :-
एक जंगल में एक बहुत ही सुन्दर बागीचा था वहा परियां सैर के लिए आया करती थी। एक रात परी उड़नखटोले में बैठकर सैर के लिए निकली।
उड़ते – उड़ते वे एक राजा के महल से गुजारी। चाँदनी रात थी। चाँद अपनी चांदनी से धरा पर शीतलता बिखेर रहा था। परी ने देखा कि छत पर राजकुमार सुखद नींद में सो रहा था।
जब परी ने उस राजकुमार को देखा तो उसका दिल डोल गया। वह उसके प्यार में वह पागल हो गयी। उसने सोचा राजकुमार को साथ ले जाए, लेकिन उसे पृथ्वीलोक का कोई अनुभव नहीं था, इसलिए उसने ऐसा नहीं किया।
वह राजकुमार को बड़ी देर तक निहारती रही। उसके साथ वाली परियों ने उसकी हालत को भांप ली। वे मज़ाक करते हुए बोली, ” हमें मानवों की दुनिया मानवो से मोह नहीं करना चाहिये। चलो, अब चलते हैं। अगर अभी भी जी नहीं भरा है तो कल हम फिर से आ जाएंगे।
परी भी मुस्कुरा उठी और बोली, ” चलो। मैंने कब मना किया है ? लगता है, जिसने मेरे मन को मोह लिया है, उसने तुम पर भी जादू कर दिया है। ” परियां यह सुनकर खिलखिलाकर हंस पड़ीं और राजकुमार की प्रशंसा करती हुईं अपने देश को लौट गईं।
सुबह जब राजकुमार सोकर उठा तो उसके शरीर में बड़ी ही ताज़गी थी। वह बड़ा ही प्रसन्न था। तभी एक सेवक ने आकर उसे खबर दी कि राजा की तबियत बड़ी खराब है। उन्होंने आपको जल्द ही बुलाया है।
राजकुमार की ख़ुशी क्षण भर में ख़त्म हो गयी। वह तेजी से अपने पिताजी के कमरे में पहुंचा। वहाँ राज्य के मुख्य और सबसे भरोसेमंद मंत्री भी थे।
उनके सामने ही राजा ने राजकुमार को राज्य की गद्दी सौप दी और मंत्री जी कहा, ” जिस वफादारी से आपने अब तक मेरा साथ दिया है उसी वफादारी और कर्तव्यनिष्ठा से राजकुमार का भी साथ देना। इसे अपने पुत्र के समान ही समझना। ”
इतना कहने बाद राजा स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गए। राजकुमार फूट – फूटकर रोने लगा। वहाँ सबकी आँखे नम थीं। पुरे राज्य में शोक की लहर थी।
रात को जब परी पुनः छत पर आयी तो उसने देखा राजकुमार बड़ा ही उदास बैठा था। उसे बड़ा ही दुःख हुआ। कुछ देर बाद वह वहाँ से चली गयी।
समय बीता। राजा के मृत्यु के बाद से ही अगल – बगल के राज्यों के राजा इस राज्य को हड़प लेना चाहते थे। उन्होंने एक दिन इस राज्य को चारो तरफ से घेर लिया।
तब मंत्री राजकुमार को एक गुप्त कमरे में ले गए। वहाँ उन्होंने एक जादुई दरवाजे के बारे में बताया। उन्होंने कहा इस दरवाजे के भीतर बहुत सारा धन है। इसिलिये दूसरे राज्य के राजा हम पर हमला करना चाहते हैं !
अब तक राजा जी इसकी सुरक्षा करते आये हैं। उनकी मृत्यु के पश्चात् अब हमें इसकी सुरक्षा करनी होगी। इसपर राजकुमार ने कहा, ” हमारी सेना दुश्मन के मुकाबले में कम है। कई राजा साथ मिलकर हमारे राज्य पर हमला किया है। ऐसे में क्या किया जा सकता है ? हम उनसे कैसे जीत पाएंगे? ”
तब मंत्री जी बोले, ” हमारी मदद परी देश के राजा करेंगे। हमारी उनसे बहुत अच्छी दोस्ती है। हमने उन्हें संदेशा भिजवा दिया है। वे आपके पिताजी के भी अच्छे दोस्त थे। ”
तभी कुछ ही क्षण में परियों की एक विशाल सेना वहाँ पहुंची। उसका नेतृत्व वही परी कर रही थी जिसे राजकुमार से प्यार हो गया था। वहाँ बारी – बारी राजकुमार और परी ने अपने ओजस्वी भाषणों से सेना को उत्साहित किया।
परी सेना और राजकुमार की सेना ने पूरी वीरता से युद्ध लड़ा और तीन दिनों के युद्ध के बाद उन्होंने सभी राजाओं को पराजित कर दिया। इस युद्ध में परी सेना की प्रमुख परी घायल हो गयी थी।
राजकुमार ने उन्हें महल के विशेष कक्ष में रखवा कर उनका उपचार करवाया। उपचार के बाद वह जब ठीक हुई तो उस दिन परी देश के राजा उन्हें लेने आये।
तब राजकुमार ने हाथ जोड़कर उनसे कहा, ” हे राजन ! आप हमारे पिताजी के परम मित्र हैं। आज आपकी सेना और सेना प्रमुख ने बड़ी ही वीरता और कुशलता से हमारे राज्य की रक्षा की है। हम इसके आभारी हैं। हम चाहते हैं कि अब यह मित्रता एक रिश्तेदारी में बदल जाए। हमारे मुख्य सलाहकार और मुख्य मंत्री भी यही चाहते हैं। हम आपकी इस वीर सेना प्रमुख से विवाह करना चाहते हैं। अगर आप और सेना प्रमुख परी इसकी इजाजत दे तो …. ”
परी देश के राजा ने प्रसन्नता से कहा, ” यह तो बहुत ही उत्तम विचार हैं। इससे दोनों ही देशों के सम्बन्ध और मधुर होंगे और दोनों देश पारिवारिक हो जायेगे। ”
इसके बाद उन्होंने परी सेना प्रमुख से इसके बारे में पूछा और उन्होंने भी हाँ कह दी। वह तो पहले से ही राजकुमार से प्यार करती थी। इस तरह से राजकुमार और परी का विवाह धूम – धाम से हो गया और सभी ख़ुशी से रहने लगे।
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